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“सरकार की आलोचना करने वालों को राष्ट्र विरोधी क्यों कहा जाता है?”

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह

ज्योतिरादित्य सिंधिया काँग्रेस में थे, भाजपा में चले गए। इससे काँग्रेस का नुकसान हो सकता है और भाजपा में जाने से भाजपा को फायदा हो सकता है लेकिन देश की आम जनता के लिए यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है।

यह बात देश की जनता के हितों से बढ़कर नहीं है। किसी नेता का पार्टी छोड़ना और दूसरी पार्टी में जाना टेलीविज़न पर रात-दिन बहस का मुद्दा क्यों बना हुआ है?

पता नहीं टेलीविज़न पर अनावश्यक न्यूज़ ही ज़्यादा क्यों चलाई जा रही है। ऐसा तो नहीं है कि बड़े मीडिया ग्रुप सरकार और पार्टियों के लिए एजेंडा बनाने का काम कर रही हैं? जबकि जनता के मुद्दों का इस प्रकार की न्यूज़ से कोई फायदा नहीं है।

जनता का सवाल तो कुछ और ही है। जैसे- मंहगाई, यस बैंक मामला, बेरोज़गारी, रोज़गार के अवसर, सरकारी नौकरियों में लगातार सीटें कम होना, सरकारी कंपनियां लगातार घाटे में क्यों जा रही हैं? प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ में लोगों की नौकरियां क्यों जा रही हैं  वगैरह।

कम्पनियों के डूबने से क्यों जूं तक रेंग रही?

जेट एयरवेज़ बंद हो गया और हज़ारों लोगों की नौकरियां चली गईं। एयर इंडिया 7600 करोड़ के घाटे में चल रहा है, BSNL के 54000 कर्मचारियों की गर्दन पर तलवार लटक रही है। यानी कभी भी उनकी नौकरियां जा सकती हैं।

एच इ एल के कर्मचारियों के वेतन पर संकट आ चुका है। पोस्टल डिपार्टमेंट 1500 करोड़ के घाटे में जा चुकी है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में लाखों से ज़्यादा नौकरियां जा चुकी हैं।

मारूति ने अपने प्रोडक्ट में 30% की कमी कर दी है। देश का रियल एस्टेट बिज़नेस ठप पड़ चुका है। एयरसेल डूब गया, जेपी ग्रुप लगभग खत्म हो गया, टाटा डोकोमो खत्म हो गया। जो ONGC पिछले साल HPCL को खरीदने वाली थी, वह घाटे में जा चुकी है।

NPA लगातार बढ़ रहा है लेकिन सरकार इन सब पर ध्यान नहीं दे रही है। देश की GDP लगातार गिर रही है मगर सरकार के पास कोई ठोस वित्तीय नीति नहीं है।

देश भर में जो भी हो खबर तो हिन्दी-मुसलमान की चलती है

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हर चैनल हिन्दू-मुसलमान करने में लगा हुआ है, क्योंकि देश की आम मासूम जनता को बुनियादी मुद्दों से भटकाकर सरकार की नाकामी को छुपाने का काम भारतीय टेलीविज़न चैनलों और कुछ बड़े नाम वाले पत्रकारों ने पिछले कुछ सालों से बखूबी निभाने का काम किया है। सवाल यह उठता है कि सरकार को हिन्द-मुस्लिम डिबेट से बहुत फायेदा हुआ है क्या?

देश के अंदर आम जनता में एक बहुत नकारात्मक सोच पैदा हो चुकी है, जहां पर अब बड़े मीडिया ग्रुप्स और सरकारी संस्थानों का केंद्र सरकार द्वारा दुरुपयोग करने के कारण आम जनता में विश्वास की कड़ी कमज़ोर हो रही है।

आज देश में एक ऐसा भी वर्ग है जो सब कुछ समझने के बाद बोलने से डर रहा है। इन सबके बीच देश के अंदर जिस प्रकार से मीडिया और सरकारी संस्थाओं ने सरकार के तरीके पर एक्शन लिया है, देश में एक नई परंपरा भी उत्पन्न हुई है।

जिसमें कोई भी राजनीतिक पार्टी और देश का कोई भी नागरिक केन्द्र सरकार के किसी निर्णय का विरोध करता है या फिर अपने विचार व्यक्त करता है।

देश में नई परंतु अनचाही परंपरा चल पड़ी है

यही तो लोकतंत्र की सुंदरता है लेकिन वर्तमान सरकार और उसके लोग उस विरोध को राष्ट्र विरोधी कहकर अपनी जवाबदेही से बच जाते हैं। जबकि भारतीय लोकतंत्र ने भारत के हर नागरिक को संसद द्वारा लाए गए कानून पर अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार देता है।

कमाल यह है कि सरकार ने अपनी नाकामी छुपाने का एक बहुत ही सरल तरीका खोज लिया है। हर नाकामी को छुपाने के लिए फर्ज़ी राष्ट्रवाद का हथकंडा अपनाया जा रहा है। जो कि लोकतंत्र में यह कहीं से भी सही नहीं बैठता है।

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