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छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कैसे मनाते हैं तोरन पर्व

फोटो साभार- ALM

फोटो साभार- ALM

क्या आपको छत्तीसगढ़ के तोरन त्यौहार के बारे में पता है? यह आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक त्यौहार होता है जिसे तोरन कहते हैं। जिस गाँव में तोरन होता है, वहां के मुखिया गाँव के सभी लोगों के घर से पैसा इकठ्ठा करते हैं और तोरन खरीदकर पूरे देवालय में तोरन को बांधते हैं।

गोबर से पूरे देवालय की लीपाई करते हैं और रंगोली बनाते  हैं। रंगोली की एक खास बात यह है कि इस त्यौहार मे रंगोली सिर्फ आटे से ही बनाते हैं। इस त्यौहार को सभी गाँवो में नहीं मनाया जाता है।

तोरन पर्व मनाते आदिवासी समुदाय। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

आदिवासी अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तीन दिन तक दीपक जलाकर प्रार्थना करते हैं और अपने पूरे गाँव के लिए मन्नत मांगते हैं ताकि गाँव में रहने वाले लोग सही-सलामत रहें।

इस त्यौहार में लोग पुराने रीति-रिवाज़ से पूजा-पाठ करते हैं। इसमें सभी आदिवासी मिलकर नाच-गान करते हैं। यह जो नाच-गाना होता है, उसमें सभी जोड़ी बनाकर नाचते हैं। इस कार्यक्रम में शामिल होने बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं और वे सभी लोग खुद का अपना बाजा लेकर आते हैं।

एकजुट होकर तोरन पर्व मनाते आदिवासी। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

पूरे गाँव के लोग देवालय में नाचते हैं। आदिवासी मिलकर गाना गाते हैं तथा गाने का बोल होता है, “हाय मोर दइया रे राम तो भाइया मोला अब्बड मया लागे।”

यह आदिवासियों में मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। इस त्यौहार में सभी आदिवासी अपने घरों में मेहमान बुलाते हैं और उनका मान-सम्मान करते हैं। देवालय में सभी आदिवासी पूजा-पाठ करते हैं और यह जो प्रथा है बहुत पहले से चली आ रही है और लोग इसे आज भी उत्साह से पालते हैं।

सभी आदिवासी मिलकर पूरे देवालय को सजाते हैं। आदिवासियों के जो देव होते हैं, उन्हें साल के पेड़ के नीचे रखा जाता है। इस देवालय में कोई भी चप्पल-जूता पहनकर अंन्दर नही जा सकता  है और यहां सिर्फ बैगा लोगों को ही प्रवेश करने की अनुमति है। इस देवालय को सफेद रंगो से ही पोता जाता है। यह आदिवासियों की परंपरा है। यहां बकरे की बली देने का नियम होता है।

इस तोरन त्यौहार को तीन साल में एक बार दिसम्बर के महीने में ही मनाते हैं और इसे बडे ही धूम-धाम से मनाया जाता है। आदिवासियों का यह कार्यक्रम तीन दिनो तक चलता है।

इसलिए इसे तोरन कहा जाता है। आदिवासी अपनी परंपरा को बचाए रखने के लिए इस कार्यक्रम को पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानते और मनाते आ रहे है।

तोरन त्यौहार के अंतिम दिवस पर सभी को प्रशाद दिया जाता है और सभी लोग अपने घरों मे नए-नए पकवान बनाते है। मेरी पसंदीदा चीज़? इस दिन कोई भी किसी के भी घर में जाकर खाना खा सकते है!

त्यौहार खत्म होने के बाद बैगा घरों की यात्रा करते है और सभी लोग बैगा का मान-सम्मान करते हैंं। उन्हें चावल व पैसा देकर विदा किया जाता है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। वह स्टूडेंट हैं जिन्हें पेड़-पौधों की जानकारी रखना और उनके बारे में सीखना पसंद है। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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