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UN की संस्था ने CAA के खिलाफ क्यों दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका?

सुप्रीम कोर्ट

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने संशोधित नागरिकता कानून यानी कि CAA को लेकर देश विदेश में चल रहे विरोध प्रदर्शन के बाद उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर कर की है। तो इधर विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के इस कदम की आलोचना की।

मंत्रालय का कहना है कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और यह कानून बनाने वाली भारतीय संसद के संप्रभुता के अधिकार से संबंधित है। ज्ञात हो कि CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में 140 याचिकाएं दायर की गई हैं।

22 जनवरी को SC ने केंद्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं का जवाब देने को कहा था। केरल राज्य ने अधिनियम के खिलाफ एक मूल मुकदमा दायर किया है।

UN द्वारा दायर की गई याचिका क्या कहती है?

सुप्रीम कोर्ट। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओं की किस तरह से व्याख्या की जाती है और उसका क्या असर होगा, इसे देखते हुए UN के मानवाधिकार आयुक्त का CAA के मामले में सुप्रीम कोर्ट जाना महत्वपूर्ण है।

UN का मानना है कि मानवाधिकार को लेकर मुख्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर खास ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है, जिस पर हस्ताक्षर करने वालों में भारत भी एक है।

इन समझौतों में इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, द इंटरनेशनल कोविनेंट ऑन इकॉनॉमिक सोशल एंड कल्चरल राइट्स जैसे समझौते शामिल हैं।

याचिका के अनुसार, नागरिकता संशोधन कानून मानवाधिकार के अन्य अहम मुद्दे को उठाता है। मानवाधिकार को लेकर भारत की जो प्रतिबद्धताएं हैं उसके तहत राष्ट्रीयता के नाम पर भेदभाव न करना और कानून के समक्ष बराबरी का ध्यान रखा जाना चाइये था।

CAA पर UN के हस्तक्षेप का आधार क्या है?

सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हस्तक्षेप आवेदन रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी देब मुखर्जी द्वारा सीएए को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। सुश्री मिशेल बेशेलेट जेरिया द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदन में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र का निकाय इस मामले में “एमिकस क्यूरी” के रूप में हस्तक्षेप कर सभी मानव अधिकारों की रक्षा हेतु आवश्यक कदम संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 48/141 के अनुसार उठें।

UN का मानना है कि सभी प्रवासी, चाहे वे किसी भी नस्ल, धर्म या राष्ट्रीयता के हों या फिर उनका प्रवास वैध हो या अवैध, मानवाधिकार रखते हैं। अतः उन्हें सुरक्षा का हक हासिल है।

भेदभाव पर रोक, कानून के समक्ष बराबरी और बिना भेदभाव के कानून की समान सुरक्षा का सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और कानून के शासन की बुनियाद का हिस्सा है। इन सिद्धांतों के अनुसार सभी देशों की ये ज़िम्मेदारी है कि वे सार्वजनिक जगहों से लेकर किसी के प्राइवेट क्षेत्र में भेदभाव का उन्मूलन करें।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून नागरिकों और गैरनागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करता है। इंटरनैशनल कोविनेंट ऑन इकॉनॉमिक सोशल एंड कल्चरल राइट्स के तहत कोई देश किसी व्यक्ति की कानूनी स्थिति को लेकर भेदभाव नहीं कर सकता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उसके अनुसार किसी भी देश में सभी लोगों को हक होगा। चाहे वे शरण मांगने वाले हों, शरणार्थीं हों या अन्य प्रवासी और यहां तक कि अगर उनके मूल देश को लेकर स्थिति स्पष्ट ना हो, तब भी उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

बहरहाल, बराबरी और भेदभाव को लेकर यह देखा जाना महत्वपूर्ण है कि भारत में प्रवासियों और शरणार्थियों के मानवाधिकार की सुरक्षा पर नागरिकता संशोधन कानून का क्या असर होगा।

विदेश मंत्रालय का UN के इस कदम पर क्या कहना है?

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कमिश्नर द्वारा दायर की गई हस्तक्षेप याचिका पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, “जिनेवा में हमारे स्थाई दूतावास को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैश्लेट ने सूचित किया कि उनके कार्यालय ने 2019 में पारित किए गए CAA कानून के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है।”दिल्ली हिंसा: “मैं हिन्दू हूं मगर अपने घर के बाहर ‘मारो सालो मुल्लों को’ जैसे नारों से सहम गया हूं”

उन्होंने कहा, “हमारा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि भारत की संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर किसी विदेशी पक्ष को कोई अधिकार नहीं है।” कुमार के मुताबिक भारत का रुख स्पष्ट है कि सीएए संवैधानिक रूप से वैध है और संवैधानिक मूल्यों का अनुपालन करता है।

उन्होंने आगे कहा, “यह भारत के विभाजन की त्रासदी से सामने आए मानवाधिकारों के मुद्दों के संबंध में हमारी तरफ से बहुत पहले जताई गई राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।”

कुमार ने कहा, “भारत लोकतांत्रिक देश है, जो विधि के शासन से चलता है। हम सभी हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका का बहुत सम्मान करते हैं और उसमें पूरा भरोसा करते हैं। हमें भरोसा है कि हमारी मज़बूत और कानूनी दृष्टि से टिकने वाली स्थिति को उच्चतम न्यायालय में जीत मिलेगी।”

क्या कहा हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता ने?

सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

याचिकाकर्ता ने मुखर्जी ने कहा “अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत, राज्यों को अपने क्षेत्र में या अपने अधिकार क्षेत्र या प्रभावी नियंत्रण के तहत प्रवासियों को सम्मान और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी कानूनी स्थिति और उनके पास मौजूद दस्तावेज़ की परवाह किए बिना उन्हें समान और गैर-भेदभावपूर्ण ट्रीटमेंट मिले।”

OCHR ने कहा, “CAA का संकीर्ण दायरा है, क्योंकि यह केवल धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान करने की बात करता है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत यह कटाई उचित नहीं हो सकता है।”

संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्टों का हवाला देते हुए यह भी कहा गया कि सीएए से नज़रअंदाज़ की गईं श्रेणियां जैसे अहमदी, हजारा और शिया मुसलमान के साथ अन्याय क्यों नहीं?

OCHR ने आगे कहा, “जबकि सताए गए समूहों की रक्षा का लक्ष्य स्वागत योग्य है। यह एक मज़बूत राष्ट्रीय शरण प्रणाली के माध्यम से किया जाना चाहिए जो समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांत पर आधारित हो और जो उत्पीड़न और अन्य मानव अधिकारों के उल्लंघन से सुरक्षा की आवश्यकता के लिए सभी लोगों पर लागू होता है, जिसमें नस्ल, धर्म, राष्ट्रीय मूल या अन्य निषिद्ध आधार के रूप में कोई अंतर नहीं है।”

हमारे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर इस यू एन निकाय की याचिका में कहा गया है कि सीएए नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय करार और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय करार का उल्लंघन करता है। इन वाचाओं को भारत द्वारा अनुमोदित किया गया है।

इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र निकाय द्वारा याचिका एक अनुचित हस्तक्षेप नहीं है जैसा कि भारत के विदेश मंत्रालय ने दावा किया है। इसके अलावा, मानवाधिकारों का उल्लंघन भारत या किसी अन्य देश का आंतरिक मामला नहीं है क्योंकि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय वाचाओं पर दस्तखत की है।

आपको मालूम होना चाहिए कि भारत ने अब तक संयुक्त राष्ट्र की 6 अंतरराष्ट्रीय वाचाओं की पुष्टि की है। एक बार अंतरराष्ट्रीय करार के बाद वे राष्ट्र के कानून बन जाते हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को अंतरराष्ट्रीय वाचाओं के प्रावधानों को पढ़ना पड़ता है।

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