Site icon Youth Ki Awaaz

“पितृसत्ता महिलाओं को घरेलू कार्यों तक ही सीमित रखना चाहता है”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

8 मार्च महिलाओं के लिए समर्पित एक दिन, जिस दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यद्यपि यह दिवस पूरे विश्व में महिलाओं के सशक्तिकरण के उद्देश्य से मनाया जाता है लेकिन यहां मैं भारतीय परिपेक्ष्य में महिलाओं के विषय में लिखना चाहूंगा।

भारत एक ऐसा देश, जहां महिलाओं को एक तरफ माँ दुर्गा व रानी लक्ष्मीबाई माना जाता है, तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को अनेक कुप्रथाओं और सम्मान के नाम पर चुप रहना सिखाया जाता है।

गाहे -बगाहे महिलाओं के प्रति दुर्भावना की खबरें आती रहती हैं। हाल ही में भारत के दो कॉलेजों में हुई दो घटनाएं महिलाओं के प्रति कुछ लोगों के तुच्छ नज़रिये को प्रदर्शित करती हैं। जन्म से ही अधिकांश लोग महिलाओं और पुरुषों  में विभेद करते रहते हैं।

पुरुष प्रधान समाज का नज़रिया क्या है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

बचपन में महिलाओं को पिता या भाई और युवावस्था में पति के अघोषित नियंत्रण में रहना होता है। उन्हें बार-बार ये ताने सुनने पड़ते हैं कि तुम एक लड़की हो और तुम वो सारे कार्य नहीं कर सकती, जो एक लड़का करता है।

अगर वे किसी व्यक्ति के सामने अपने वैध तर्क भी रखें, तो उन्हें चुप करा दिया जाता है। महिलाओं को कोई कुछ भी कहकर निकल जाए लेकिन उन्हें यह सिखाया जाता है कि तुम्हें जबाब नहीं देना है।

आज भी भारतीय पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को घरेलू कार्य तक सीमित रखने की सोच कहीं ना कहीं लोगों के दिमाग में बसी है। अधिकांश महिलाएं यह कहते हुए मिल जाती हैं कि मैं उस व्यक्ति को जवाब देने वाली थी लेकिन समाज और घरवालों की वजह से कि लोग कहेंगे लड़की होकर इतना बोलती है के कारण मैं चुप रही।

वास्तव में चुप्पी को लेकर उनका यह तर्क पुरुष प्रधान समाज का उनके प्रति नज़रिये के कारण विकसित हुआ है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में महिलाएं सिर्फ इस नाते आवेदन नहीं करती हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का डर होता है कि उनका परीक्षा केंद्र दूर होगा।

परीक्षा फॉर्मों के आवेदन करने से सम्बंधित अधिकांश वार्तालापों में महिलाओं ने बहुत बार मुझसे यह कहा है,

तुम लोग लड़के हो, कहीं भी आ जाकर परीक्षा दे सकते हो लेकिन हम लोगों को यह छूट नहीं मिल पाती है।

ये बहुत ही सोचनीय विषय है कि हम आज भी महिलाओं, उनके अभिभावकों के मन में यह विश्वास नहीं भर पाए कि वे बाहर आने-जाने के लिए सुरक्षित हैं। ये जिम्मेदारी हर पुरुष की है कि वे ऐसा परिवेश निर्मित करें ताकि महिलाएं कहीं भी आने-जाने को लेकर सुरक्षित महसूस करें।

क्या महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

अधिकांश नवयुवक आज चाहते हैं कि उनकी संगिनी नौकरी करने वाली हो, पढ़ी लिखी हो लेकिन वही नवयुवक भूल जाते हैं कि महिलाओं को पढ़ने, परीक्षा देने आदि कार्यों के लिए सुरक्षित परिवेश देना उनका कर्तव्य होना चाहिए।

फिर भी भारत स्वतंत्रता के बाद से ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत है और इन सबका ही परिणाम है कि आज पहले की अपेक्षा महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया है। अब महिलाएं सार्वजनिक जीवन में भी भागीदार बन रही हैं।

इसके साथ ही अभी हाल ही में भारतीय सुप्रीम कोर्ट नें महिलाओं को सेना में ‘कमांड पोस्ट ‘देने का फैसला किया है। अदालत ने कहा है कि सेना में सभी महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन मिलना चाहिए।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि महिलओं को सेना में स्थाई कमीशन ना देना सरकार के पूर्वाग्रह को दर्शाता है। सरकार को अपनी यह मानसिकता बदलनी चाहिए। यह फैसला काफी स्वागत योग्य तथा महिला-पुरुष समानता को बढ़ावा देने वाला है।

विज्ञान के क्षेत्र में भी पितृसत्ता है

एक कार्यक्रम के दौरान ISRO के वैज्ञानिक। फोटो साभार- सोशल मीडिया

वहीं, इस बार के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम ‘विज्ञान में महिलाएं’ का होना सुखद है। महिलाओं नें यद्यपि विज्ञान के क्षेत्र में कार्य किए लेकिन इस क्षेत्र में वर्चस्व पुरुषों का ही रहा है।

हम सोच सकते हैं कि पुरुषों की जगह अगर महिलाओं का वर्चस्व विज्ञान के क्षेत्र में होता, तो हो सकता है कि विनाशकारी खोजों की अपेक्षा निर्माणकारी खोजें ज़्यादा हुई होतीं। यद्यपि ये सब कल्पनाएं हैं लेकिन वास्तविकता भी हो सकती थी। हो सकता था परमाणु बम बना ही ना होता।

उसकी जगह कोई प्रेम बढ़ाने वाली खोज हुई होती या फिर वात्सल्यता बढ़ाने वाली चीज़ की खोज हुई होती। छोड़िए ये सब अलग विषय है मगर हां इस वर्ष की थीम ‘विज्ञान में महिलाएं’ उम्मीद पैदा करने वाली दिखती है। ये दोनों कार्य महिला दिवस से ठीक पहले महिलाओं को सशक्त बनाने में बड़ी प्रेरणा का कार्य करने वाले सिद्ध हो सकते हैं।

यद्यपि सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में अनेक प्रयास कर रही है, फिर भी महिलाओं को अपने प्रति लोगों के नज़रिये में बदलाव के लिए खुद प्रयास करने होंगे। उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। उन्हें हर कुतर्क और अपने प्रति हर गलत क्रिया की उचित प्रतिक्रिया करनी होगी।

इस दिशा में पी वी सिंधू, सायना नेहवाल, मैरी कॉम, निर्मला सीतारमण और सुमित्रा महाजन जी आदि महिलाएं उनकी प्रेरणा स्रोत के रूप में हो सकती हैं।

Exit mobile version