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“अभी लॉकडाउन के 2-3 रोज़ ही गुज़रे हैं फिर हमें कश्मीर की याद कैसे आ गई?”

फोटो साभार- आंचल शुक्ला

फोटो साभार- आंचल शुक्ला

जैसा कि आप सभी इस बात से अवगत हैं कि मौजूदा वक्त में संपूर्ण विश्व में एक कोहराम सा मचा हुआ है। आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि मैं कोरोना वायरस के बारे में बात कर रही हूं जिसकी शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई।

इसके कहर से आज लाखों लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। बस हर तरफ कोरोना-कोरोना सुनने को मिल रहा है। आज इस कोरोना ने हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। आलम यह है कि आपके परिवार वाले भी ऐसी स्थिति में आपका सहयोग करने में समर्थ नहीं हैं।

195 देशों में दुर्भाग्यवश हमारा देश भी इसकी चपेट में आ गया है। जब स्थिति खराब होने लगी तब सरकार ने कई कड़े कदम उठाए जिनमें से एक है संपूर्ण भारत में लॉकडाउन। जिसके चलते प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिनों तक सम्पूर्ण भारत बंद का ऐलान कर दिया जो कि एक अच्छा फैसला साबित हो सकता है।

कश्मीर के लॉकडाउन का लोगों ने मज़ाक बनाया था!

कश्मीर में लॉकडाउन के दौरान की तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

वहीं, इस वक्त भारत में लॉकडाउन के कारण लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ज़रा एक बार सोचिए जब कश्मीर में लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तब सभी राज्यों के लोगों ने इसे हल्के में लिया था। कुछ लोग व्यंग कर रहे थे तो कुछ लोग कश्मीरियों की नींदा कर रहे थे।

अब जब सभी इस विकट परिस्थिति से गुज़र रहे हैं तो शायद वे कश्मीरियों पर क्या बीती होगी इस बात का अंदाज़ा लगा पाने में सक्षम होंगे। अपर और मिडल क्लास की जनता तो फिर भी अपनी बचत से ऐसे कठिन समय में भरणपोषण कर लेगी मगर एक बार लोअर क्लास के बारे में सोचिए।

दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर क्या करेंगे?

मरेगा के तहत काम करते मजदूर। फोटो साभार- सच्चिदानंद सोरेन

दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूरों के बारे में सोचिए, सड़कों पर सब्ज़ी के ठेले लगाने वालों के बारे में सोचिए। कितनी भयावह स्थिति होगी इनके साथ इस वक्त। कैसे इस कठिन समय में अपने परिवार को चला रहे होंगे।

माना सरकार ने मदद की घोषणा भी की है लेकिन जब तक मदद इन तक पहुंचेगी तब तक ना जाने कितनी जानें जा चुकी होंगी। कितने परिवार मौत की सूली चढ़ चुके होंगे। इन विकट परिस्थितियों में भी कई लोग इस सोच में व्यस्त हैं कि लंच में कुछ स्पेशल डिश बननी चाहिए।

वहीं, दूसरी ओर एक वर्ग के लोगों को यह भी नहीं पता है कि उनको दूसरे वक्त की रोटी भी नसीब होगी या नहीं। इनके लिए सोचिए इनकी कोई बंधी इनकम नहीं होती है।

ये रोज़ कुआं खोदते हैं और रोज़ पानी निकालते हैं। जो लोग इस बात से परेशान हैं कि उनको किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली वे बस इतना याद रखें कि उनके सिर के ऊपर भगवान ने छत और दो वक्त की रोटी बख्शी है। वहीं कुछ लोगों को दो वक्त की रोटी भी मुयस्सर नहीं है।

हमारी इंटरनेट सेवाएं चालू हैं फिर भी हम घरों में बोर हो रहे हैं!

लॉकडाउन के दौरान शहर में पसरा सन्नाटा।

हम सभी को तो फिर भी कुछ राहत है। कश्मीर के लॉकडाउन के वक्त तो वहां इंटरनेट सेवाएं तक रद्द कर दी गई थी। जो लोग दो दिनों में ही घर पर जेल जैसा महसूस कर रहे हैं, वे इस बात को ध्यान रखें कि कम-से-कम उनको मोबाइल से सारी जानकारी तो उपलब्ध हो पा रही है।

सोशल साइट्स के ज़रिये वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से सम्पर्क तो बनाएं हुए हैं। इन दो से तीन दिनों के भीतर हम सबको इतनी परेशानी कैसे हो रही है।

ये माहौल कश्मीर में बंकरों के अंदर रह रहे लोगों से कम नहीं है। से यही सोच रहे हैं कि आखिर ये 21 दिन कैसे कटेंगे। ये 21 दिन उन सभी के लिए किसी वनवास से कम नहीं जो कश्मीर बंदी पर बड़े-बड़े ज्ञान बांट रहे थे। एक वक्त था जब कश्मीर बंदी का लोगों ने मज़ाक बनाया था। अब वक्त सब के साथ मज़ाक कर रहा है।

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