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“मैं लिखती हूं ताकि अगली बार मेरे दोस्त मेरी लिखी कविताओं का मज़ाक ना उड़ा सकें”

सृष्टि तिवारी

सृष्टि तिवारी

मुझे लगता है सबसे ज़्यादा पूछा जाने वाला सवाल अगर कुछ है तो वो यही कि आखिर हम लिखते क्यों हैं? यू तो जवाब कई हो सकते हैं लेकिन देना हर एक के लिए मुश्किल होता है। 

लिखना मेरे लिए कब गैरज़रूरी रहा मुझे याद नहीं है। 13-14 साल की उम्र में ही मैं कुछ तो लिख लिया करती थी लेकिन क्या अब याद नहीं है। उम्र के लिहाज़ से ना ही लफ्ज़ समझ आते थे ना उनके मायने लेकिन बहुत ध्यान से पढ़ती थी अखबार की हर उस खबर को जिनमें कोई छुअन कोई टीस हुआ करती थी।

जब कभी घर में सब इकट्ठा बैठकर कवि नीरज, शायर निदा फ़ाज़ली, वसीम बरेलवी और कुंअर बैचेन जैसे दिग्गजों को सुनते तब मेरे ज़हन में एक ही सवाल होता था और वो यह कि कैसे और क्यों लिखा होगा।

बस ऐसे ही सवालों में उलझती गयी और बेफिजूल सा ही सही बहुत कुछ पढ़ती गयी गढ़ती गयी। लेकिन उम्र के लिहाज से एक झिझक या कहिये हमारे समाज ने हमें (लेखन) उतनी जगह कभी दी नहीं तो एक डर हमेशा रहा जो मैं लिख रही हूं कोई पढ़ ले तो क्या हो।

सृष्टि तिवारी।

लिखना क्या है इसके सबके अपने-अपने मायने होंगे लेकिन लिखना मेरे लिए कोई रोज़गार नहीं एक छटपटाहट है। बस उतनी ही सहज और उतनी ही दुष्कर जैसे किसी की प्यास। प्यास लगने पर जैसे पानी पहली ज़रूरत है उसी तरह लिखना मेरी छटपटाहट पर पड़ने वाला पानी है।

लेकिन हर कलम की नोक पर एक चोट ज़रूर ठहरी होती है और मुझे यह चोट तब पड़ी जब मैं कॉलेज में पढ़ रही थी। मेरा लिखना मेरे हाथ में थामे कागज़ों तक ही था। मैंने कभी ज़ाहिर किया ही नहीं लेकिन कॉलेज में कोई तो फेस्टिवल होने को था। जब बहुत सारे छात्र एक साथ बैठकर चर्चा कर रहे थे क्या कैसे होना है।

तभी मेरे मन में हिम्मत जागी कि मैं भी हिस्सा ले सकती हूं। मैंने कहा मेरा भी नाम लिखो मैं कविता सुनाऊंगी। वहां बैठे सब हंस पड़े जैसे मैंने कोई बहुत ही बुरी या हास्यपद बात कह दी हो। एक खास मित्र ने कहा तुम और कविता क्या सुनाओगी मछली जल की रानी है, कोई और वाला नहीं ट्विंकल ट्विंकल ठीक रहेगा।

मैंने उस वक्त यह महसूस किया कि बोलना क्यों जरूरी है। मैं बेइंतहा डरी हुई थी हालांकि मैंने कविता सुनाई। जब प्रोग्राम पूरा हुआ तो मुझे याद नहीं किसने क्या-क्या कहा लेकिन इतने चेहरों में चीफ गेस्ट ने सिर्फ इतना कहा कि उस लड़की को बुलाओ जिसने कविता सुनाई थी मुझे पूछना है कैसे लिखा उसने। उस दिन ख्याल आया यही तो वो प्रश्न है जो मैं ओरों के लिखने पर खुद से पूछा करती थी।

और शायद मैं आज इसलिए भी लिखती हूं ताकि जिन दोस्तों ने मेरी कविताओं का मज़ाक उड़ाया था, उन्हें फिर कभी किसी की लेखनी के बारे में वैसी बातें कहनी की हिम्मत ना हो। 

मैं नहीं जानती मैं क्या लिख रही हूं। बेशक यह वक्त तय करेगा लेकिन लिखना मेरी पहली ज़रूरत है और लिखना आपकी समझ को जितना विस्तार देता है उससे कहीं ज्यादा आपके लेखन से औरों की सोच भी दिखाता है। हर कोई चाहता है वही लिखा जाए जो उसके पढ़ने लायक हो।

लेकिन मेरा मानना है कि लिखा वही जाए जो सही हो, जो वक्त की किसी भी कसौटी पर खारिज़ ना किया जा सके। लिखना आपको मज़बूत बनाता है और मुट्ठी भर लोगों पर ही सही फर्क ज़रूर डालता है और जब आप अपने भीतर की छटपटाहट को बोलने लगते हैं तब दूसरों के चेहरों पर लिखी कहानियां साफ़ नज़र आने लगती हैं।

Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम के ज़रिये जबसे मैं इस संस्था से जुडी हूं, तब से एक अलग बदलाव आया है मुझमें। जहां चन्द लोग मेरे लिखने को अभद्र या बेहयाई मानते हैं, वहीं बहुत सारे पढ़ने वाले मुझे मुद्दे बताते हैं कि समाजिक मुद्दों पर लिखना हमारी ज़िम्मेदारी है। इसलिए लिखना क्यों ज़रूरी है ये मुद्दा गैरजरूरी है।

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