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#MyPeriodStory: “महामारी नहीं, माहवारी है, ना शर्म, ना बीमारी है – पीरियड सखी

Written by Shariq Ahmad & Rachita

औरतो वाली परेशानी, औरतो वाली बात, कुछ नहीं हैं पेट में दर्द हैं के नाम से आज भी माहवारी शब्द की जगह संबोधित किया जाता हैं भारत में आज भी माहवारी शब्द नहीं टैबू (निषेध) हैं | जब माहवारी शब्द को बोलने में इतनी  चुनौतियाँ हैं वहां जनसाधारण से संवेदनशीलता की अपेक्षा करना बहुत कठिन हैं |

COVID-19 आपदा के समय सरकार द्वारा मूलभुत आवश्यक वस्तुओ से सम्बंधित दुकानों को खुलने की अनुमति मिली थी जैसे दूध, पेट्रोल, फल, सब्जी, दवा आदि मगर सैनेटरी पैड को दवाओं के साथ जोड़ कर देखा गया | लखनऊ के जिन समुदाय में हम काम कर रहें थे वहां से जब से सैनेटरी पैड की माँग आने लगी हमे लगा कि शायद एक या दो समुदाय की बात होगी आवश्यकता अनुसार हमने सैनेटरी पैड उपलब्ध कराया | जब हमने यूथ लीडर और किशोरियों से बात किया तो पता चला सभी अल्पसुविधा प्राप्त क्षेत्र में मांग हैं समस्या कुछ और ही थी, अधिकांश किशोरियों को सैनेटरी पैड स्कूल से मिल जाता था और COVID-19 आपदा के समय स्कूल बंद थे, महिलाओं के द्वारा सैनेटरी पैड समुदाय की कास्मेटिक शॉप से या किसी महिला दुकानदारों से खरीद लेती थी मगर COVID-19 आपदा के समय यह दुकाने भी बंद थी | जब पूछा की सैनेटरी पैड आप मेडिकल स्टोर से ले सकती हैं तो उनका जवाब था, वहां बहुत भीड़ होती हैं और वहां ब्रांडेड सैनेटरी पैड मिलते हैं जो बहुत मँहगे होते हैं इसलिय नहीं ले सकते हैं, ब्रांडेड, ब्रांड ये शब्द बाज़ारवाद की झलक दे रहे थे एक दहाड़ी मजदुर दीदी से पूछा; दीदी ये ब्रांडेड क्या होता हैं दीदी मुस्कुराई और बोली सर जी जादा तो पता नहीं मगर जिस चीज का प्रचार प्रसार टी वी पर हीरो और हिरोइन करें और उसकी कीमत हम लोगो की पहुँच से बाहर हो वही ब्रांडेड है | एक से बात चीत में पता चला सैनेटरी पैड क्यूँ चाहिए आप कपड़ा का प्रयोग भी कर सकती है उस जवाब ने सभी को खामोश कर दिया था, सर जी “सैनेटरी पैड से सुकून के दो पल आराम के मिलते हैं क्या चाहते हैं, गन्दे कपडे को फाड़े, धोये, सुखाएं और इस्तेमाल करें और 50 तरह की बीमारी अलग मोल लें”, सारी जिंदगी काम काम रहा हैं खुद के लिय कभी कुछ नहीं किया अगर कुछ खरीदना सीखा हैं तो वह केवल सैनेटरी पैड हैं

COVID-19 आपदा के समय सैनेटरी पैड के वितरण के लिय लखनऊ प्रशासन ने अच्छा प्रयास किया, सैनेटरी पैड के वितरण वैन चला कर ,

सैनेट्री पैड डिस्ट्रीब्यूशन वैन में अधिकतर पुरुष होते थे जहां पर उनसे संवेदनशीलता की उम्मीद करना असंभव बात शायद उनका ओरियंटेशन ही नहीं हुआ था पुरुषों के द्वारा समुदाय में जाकर सेनेटरी पैड का वितरण करना अपने आप में एक कठिन कार्य था | जहां पर महावारी शब्द बोलना टैबू (निषेध) है वहां पर किसी महिला को सार्वजनिक स्थान पर जाकर एक अनजान पुरुष से सेनेटरी पैड लेना अपने आप में एक चुनौती थी

समुदाय का स्तर पर महिलाओं के द्वारा सोशल डिस्टेंस के साथ भौतिक दूरी बनाते हुए सैनेट्री पैड वितरण की लाइन में लगकर सेनेटरी पैड लेना अपने आप में एक सराहनीय कदम रहा बरसों पुरानी रूढ़िवादी सोच को चुनौती दिया | वहीं पर सबसे बड़ी चुनौती पुरुषों द्वारा सेनेटरी पैड वितरण करते समय संवेदनहीनता दिखाई दी जैसे कि किसी महिला ने 1 पैकेट की जगह दो पैकेट मांग लिया हो पुरुषों द्वारा यह सवाल पूछा जाना कि क्या करोगी एक पैकेट तो दिया है |  सेनेटरी पैड वितरण वैन के पुरुष सदस्यों से बात करने पर पता चला उनको भी इससे संबंधित कोई भी जानकारी नहीं है जैसे की माहवारी चक्र कितने दिनों का होता है कितने दिनों में दोबारा होता है एक पैड  से दूसरे पैड के बदलने में कितने समय का अंतर होना चाहिए जैसे प्रश्नों के कारण जैसे मैंने उनकी मर्दानगी को चुनौती दे दिया हो उन्होंने साफ बोल दिया इसके बारे में हमारे पास जानकारी नहीं है हम किसी और कार्य को करते थे और हमें यहां पर इस वितरण कार्य में लगा दिया गया | माहवारी को जबतक बीमारी, समस्या के रूप में देखा जाएगा तबतक इसे महामारी ही समझा जायेगा | माहवारी शब्द को जन साधारण की भाषा का एक शब्द बनाना होगा जिसको लोग बोलने में सहज हो फिर वो जगह परिवार हो या सार्वजानिक स्थान, स्कूल हो या धार्मिक स्थल |

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