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अंजु का पीरियड

ये कहानी है अंजु की. अंजु तब तकरीबन 11 साल की रही होगी. तब टीवी पर निरमा का एड छाया हुआ था. पापा या तो महाभारत देख रहे होते थे या तो क्रिकेट, और बीच में आ जाता था “दूध सी सफ़ेदी, निरमा से आई”. अंजु की माँ यही गाना गुनगुनाते गुनगुनाते मुगरिया से कपड़ों को ख़ूब कूटा करती थी भले ही हाथ में सल ही क्यों न पड़ जाएं.

अरे भई स्कूल में ड्रेस कोड था वो भी सफ़ेद सलवार सूट. अब ड्रेस अच्छे से धोएंगी नहीं तो पीली नहीं पड़ जाएगी. फिर कभी टीचर की डांट खानी पड़ेगी या तो सहेलियों के ताने सुनो. पीली ड्रेस में कोई भाव ही नहीं देगा.

तो अंजु जगमगाती हुई ड्रेस में स्कूल पहुंची. सारे पीरियड्स अटेंड किये. उस समय स्कूल में एक अलग से पीरियड शुरू किया गया था जिसमें हर विषय का महत्व सामाजिक तौर पर समझाया जाता था. अंजु सारे के सारे पीरियड करती थी और होनहार बच्चों में आने की पूरी कोशिश किया करती थी.

अंजु और बड़ी बहिन अनुषा दोनों कून्दते फुदकते बस्ता टाँगे घर आ गये. लेकिन आज अंजु को ओता नहीं क्योँ पेट में अजीब सा दर्द हो रहा था. उसने दर्द को इग्नोर किया. वो धीमे चल रही थी तो अनुषा ने उसको कच्ची कलि कह के चिड़ा दिया. अनुषा ने हाथ मुंह धोये और चाय बनाने चली गई. पिताजी मंदिर से आ ही रहे थे. दोनों छोटे भाई दोपहर में ही स्कूल से आ चुके थे. अनुषा जैसे ही बाथरूम से बाहर आई, अंजु वाशरूम के बाहर ही खड़ी हुई थी.

अंजु वाशरूम में गई, सु सु की और अचानक उसका ध्यान गया कि उसके दोनों पैरों के बीच से बहुत सारा खून बह रहा है. वो बार-बार खून पोंछती रही लेकिन खून रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. उसे लगा पता नहीं कोई गहरा घाव हो गया है अब मम्मी-पापा डांटेंगे कि कहाँ खेलने गई थी जो इतना बड़ा घाव ले कर आ गई.  अब खून बहता जा रहा था और अंजु की आँख से चुपचाप निकलने वाले आंसू भी.

अब जब वो पूरी तरह असहाय हो गई तो उसने अपनी मम्मी के लिए ज़ोर से आवाज़ लगाई. घर तो छोटा सा था लेकिन उस दिन अंजु की आवाज़ गूंजी थी जैसे वो किसी बड़े सुनसान महल में चींखी हो. मम्मी और दीदी दोनों वाशरूम के पास आ कर खड़ी हो गईं. दोनों भाई को भी समझ नहीं आया कि क्या हुआ है तो वो भी वहीँ आ कर खड़े हो गये.

मम्मी ने पूंछा कि क्या हो गया? अंजु के मुंह से आवाज़ तो नहीं निकल रही थी लेकिन वो पिन्नाते हुए बोली  कि “लग गई ज़ोर से, खून बहरा”. मम्मी और दीदी ने एक दुसरे की तरफ़ देखा और मम्मी ने फिर पूंछा “कैसे लग गई, कहाँ गई थी”. अंजु ने बिलखते हुए कहा “कहीं नहीं गए थे, अपने आप खून बहरा”. इतने में गुस्सेल छोटा भाई बोल उठा “हमें बताओ, कौन ने मारा, कौन ने मारा, हमें बताओ” दीदी ने छोटे भाई को एक तरफ़ किया और बोला कि “किसी ने नहीं मारा” तो छोटा भाई बोला कि “झूठी नहीं, किसी ने तो मारा तब तो खून बहरा”. इस दौरान सबसे छोटा भाई जिसे कुछ समझ नहीं आ रहा था चुपचाप अपनी थाली लिए बड़ी बड़ी आँखों से टुकुर –टुकुर देख रहा था. मम्मी बोली कि “हमें अन्दर आने दो, खून बहना बंद हो जायेगा”. छोटा भाई बोला कि “हम भी चलेंगे, हम डॉक्टर बन के पट्टी कर देंगे” दीदी बोली कि “मम्मी कर देंगी पट्टी तुम डॉक्टर जैसी चाय पियो” इतने में पिताजी मंदिर से लौट आये. उनने देखा कि सब इकठ्ठे वाशरूम के दरवाज़े पर खड़े हुए हैं. मम्मी ने उनको बोला कि “अंजु बड़ी हो गई”. पिताजी मंदिर से आ गये उनको ऐसा लगा जैसे उनको किसी अछूत ने छू दिया हो. वे हरे कृष्णा, हर कृष्णा करते अन्दर चले गये.

अंतत: मम्मी अन्दर वाशरूम में गई. अनुषा भी मुस्कुराती हुई उनके साथ गई. अंजु को माँ ने बताया कि “अब वो बड़ी हो गई है और अब हर महीने उसके पैरों के बीच से ऐसा ही खून आएगा. लड़कियां बड़ी हो जाती हैं तो ऐसा होता है. जब भी ऐसा हो तो उसे पूजा-घर में और किचिन में नहीं जाना है. और अगर 45 दिन से ज़्यादा हो जाए और खून न बहे तो मम्मी को बताये” मम्मी ने पेड्स का इस्तेमाल करना और अगर पेड्स न हो तो कपड़े का इस्तेमाल करना सिखा दिया. बातें करते करते खून कब रुक गया पता ही नहीं चला.

अंजु ने भी सवाल नहीं किये कि खून क्यों आता है, दर्द क्योँ होता है, किचिन में और पूजा घर क्योँ नहीं जाना है ? अंजु की माँ ने जो अंजु को बताया सिखाया ये सब सदियों से माँए अपनी बेटियों को बताती आ रही हैं. ये कहानी सिर्फ़ अंजु की नहीं लगभग हर दूसरी भारतीय लड़की की है. आज भी हमारे यहाँ सेक्स-एडुकेशन न के बराबर है. एक आम लड़की या औरत को आज भी नहीं पता होता कि पीरियड्स क्योँ आते हैं. हमारे देश अशिक्षा आज भी बहुत ज़्यादा है. अभी हमारे समाज ने पेड्स से मेंस्टुरल कप का सफ़र तय नहीं किया है. 

 

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