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अगर होना हो दुनिया का अंत, तो नफरत से अच्छा है कोरोना से हो !

शुक्रिया कोरोना विषाणु। तूने तो यार हमारी परतें खोल दी।
हमारी छुपी हुई असलियत बाहर निकाल दी।
यह तो पता था कि हमारी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था सड़ चुकी है और हमारी सार्वजनिक सेवाएं बदहाल है।
लेकिन हमारी सामाजिक व्यवस्था इस कदर सड़ चुकी होगी और इतनी नफरत हमारे अंदर होंगी यह तो तूने ही बताया। वैसे जितना बड़ा काम तूने हमें एक्सपोज कर किया है तुझे तो “आप” कहना चाहिए था कोरोना।

शहरों से भागते हुए मजदूरों ने हमारे कामगारों की दुर्दशा को दिखाया, तो बैंकों में भीड़ के रूप में टूट पड़े हुए लोगों ने हमारी सामाजिक सुरक्षा की नीतियों को। पुलिस के डंडों से पिटती हुई भीड़ ने दिखाया कि पुलिस और जनता के बीच में क्या रिश्ता है

मंदिरों और मस्जिदों में उमड़ी भीड़ ने दिखाया कि विज्ञान से ज्यादा इस देश में कर्मकांड और आडंबरओं का बोलबाला है । रोड़ों में उतरी जश्न मनाती भीड़ ने दिखाया कि इस उत्सवधर्मी देश में हम भीड़तंत्र से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। चाहे कितना भी गंभीर संदेश, संदेशवाहक ने दिया हो, हम तक पहुंचते-पहुंचते वह अपनी आत्मा खो चुका होता है।

शुक्रिया कोरोना इन सब सच्चाईयों से हमारा साक्षात्कार कराने के लिए। इंसान के बीच की खाई और अविश्वास को इतनी नजदीक से कभी नहीं देखा था।

इतना शक उन लोगों पर जो सालों से तुम्हारे साथ रहते हैं।

अविश्वसनीय।

आज हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर धर्म प्रेमी और सामाजिक कार्यों में आगे रहने वाले लोगों ने तय किया कि मंदिर में भंडारा न कर श्रद्धालुओं और नगर के हर घर तक प्रसाद के पैकेट पहुंचाएंगे।

प्रसाद को देखकर मुझे लगा कि सच में इन लोगों ने बहुत ज्यादा मेहनत करी होगी संसाधन जुटाने में और इतना लजीज़ प्रसाद बनाने में जिसमें पूरियाँ, दो सब्जी और बूंदी भी शामिल थी। मैं उस समय बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज ले रहा था तो महानुभावों से नहीं मिल सका।

बाद में छोटे भाई ने बताया की मंदिर से भंडारे का प्रसाद आया है और प्रसाद के प्रति अपनी अपार श्रद्धा को दिखाते हुए मैंने तुरंत उसका आनंद लिया। लेकिन बाद में जो कुछ मेरी मम्मी ने मुझे बताया उसने मुझे हिला कर रख दिया। मम्मी को बहुत घबराहट हो रही थी। मम्मी ने कहा कि किसी भी पड़ोसी ने प्रसाद नहीं खाया क्योंकि उन्हें कोरोना का डर था। बात को काटते हुए छोटे भाई ने बताया कि वह लोग अपनी फोर व्हीलर से इस प्रसाद को लाए थे। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे थे। चेहरे पर मास्क लगाए थे और अच्छी तरह से पैकेट्स में प्रसाद पैक था।

लेकिन मम्मी ने पड़ोस में सुनी बातों को बातचीत में डालते हुए बताया कि लोगों ने व्हाट्सएप में ऐसे बहुत सारे वीडियों देखे हैं जिसमें लोग खाने पीने की चीजों में जबरदस्ती कोरोना मिला कर लोगों को शिकार बना रहे हैं।

अब क्या ही कहा जाए इस “सत्य” का। खूब फैलाया ना आपने, सोशल मीडिया में इसे। इसकी क्या गारंटी थी यह नफरत और झूठ सिर्फ एक समुदाय के लिए खतरनाक होगा। असल में नफरत की नस्ल ही कुछ ऐसी है यह सिर्फ शिकार को ही नहीं बल्कि शिकारी को भी अपनी ज़द में ले लेती है। अब देखो ना जो नफ़रत और झूठ दूसरे समुदाय को टारगेट कर अविश्वास पैदा करने के लिए फैलाई जा रही थी आज वह खुद के समाज को खाए जा रही है। यह तो बस शुरुआत है। कोरोना ने
तो सिर्फ शीशा दिखाया है।

कक्षा 10 की एनसीईआरटी की बुक में रोबोट फोर्सट की एक कविता है “fire and ice”। जिसमें कवि कहता है की दुनिया का अंत या तो आग से होगा या बर्फ से। आग को कवि जहां नफरत बताता है, और बर्फ को प्रकृति का अभिशाप।

इस कवि की तरह,अगर इस धरती और मनुष्यता के नष्ट होने के दो विकल्प- नफरत और कोरोना में से मुझे कोई एक चुनना हो, तो मैं कोरोना को चुनना पसंद करूंगा।नफरत से अच्छा है कि कोरोना से ही इस धरती और मानवता का अंत हो।

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