लेकिन आज चौथा दिन था और उसे पता था, आज तो ठेकेदार बिना पैसे लिए नहीं मानेगा। चार दिन के अस्सी रुपये वो कहाँ सेलाएगा और अगर वो पैसे नहीं दे पाया तो आज ठेकेदार उसे अपने कम्पाउंड में सोने भी नहीं देगा। कल ही ठेकेदार की बीवी कोउसने कहते हुए सुना था कि इसको यहाँ क्यों सोने देते हो, पता नहीं कहाँ- कहाँ घूमता रहता है, कहीं से कोरोना ले कर आ गया तोक्या करोगे? ठेकेदार फिर भी पिछले तीन दिन से उसे वहीं सोने दे रहा था, आरिफ को नहीं पता था कि वो ऐसा इंसानियत के नातेकर रहा था या फिर अपने बाकी साठ रुपये किराए के लिए। यही सब सोचते- सोचते आरिफ वापिस चावड़ी बाजार की तरफलौट रहा था। चावड़ी बाजार मेट्रो के पास पहुँच कर उसे प्यास लगी तो वो वहीं कोने में ठेला लगा कर दाईं तरफ वाली गली मेंचला गया, शाम के सात बज चुके थे, हल्का अँधेरा होने लगा था। उसे पता था कि उस गली में एक हैंडपम्प है, वो वहीं पानीपीने के लिए जा रहा था। दिल्ली में अब हैंड पम्प बचे कहाँ थे, शायद पुरानी दिल्ली में ही अभी भी कुछ हैंडपम्प बचे थे, उसमें सेएक इस गली में था। गली में सन्नाटा था, कभी -कभी कोई स्कूटी या पैदल आता जाता, उसे दिखाई दे रहा था। वो हैंड पम्प केपास पहुंच कर पानी पिया और गमछे से अपना मुँह पोछ लिया। फिर उसने सोचा कि अब क्या किया जाए? उसने सारी जेबेंटटोलीं तो कुलमिलाकर बीस रुपये बचे थे। वो सोचने लगा कि क्या करूं? आज तो ठेकेदार बिना किराए लिए मानेगा नहीं औरशायद गुस्से में आकर उसे वहां सोने भी न दे। दोपहर से उसने कुछ खाया भी नहीं था, दिन में ही उसने कढ़ी -चावल खाया था, कुछ लड़के जामा मस्जिद के पास खाने के पैकेट बाँट रहे थे तो उसने भी एक पैकेट ले लिया था। वो सोचने लगा कि ये कोरोनाभी क्या बला है, पूरा शहर रुक गया है। सब डरे हुए हैं। जिनके पास पैसे हैं, वो तो घरों में बंद हैं और समय काट रहे हैं। उसे अपनागाँव याद आ रहा था, अगर वो अभी गाँव में होता तो शायद उसे इतना नहीं सोचना पड़ता। गाँव में उसके अम्मी – अब्बा, उसकीबीवी अमरीन और उसका एक बेटा हम्जा था। यही सब सोचते- सोचते पता नहीं वो कब से अपने ठेले के पास आ कर खड़ाथा। ठेला तो उसे ठेकेदार के कम्पाउंड में लगाना ही था, सो वो ठेला ले कर आगे बढ़ गया। उसने सोचा, उस समय जो सूझेगा, बोल दूंगा, अब तक कुछ जवाब नहीं सूझा था उसे। वो जब ठेकेदार के कपाउंड में पंहुचा तो देखा कि ठेकेदार के लड़के वहांक्रिकेट खेल रहे थे। उन्हें देख कर उसने अपने मुँह पर गमछा लपेट लिया, उसने ऐसा अपने बचाव के लिए नहीं बल्कि उन लड़कोंके लिए किया था। उसे पता था कि उसे देखते ही लड़के घर के अंदर चले जाएंगे और ऐसा ही हुआ, जैसे ही वो कम्पाउंड के एककोने में जा कर ठेला लगा रहा था, लड़के अपने घरों में चले गए। थोड़ी देर वो ठेले के पास ही खड़ा रहा तभी घर के अंदर सेठेकेदार निकल कर आया, ठेकेदार 45 -50 का होगा लेकिन शरीर फ़ैल गया था जिसकी वजह से वो अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ादीखता था। आरिफ भी 35 साल का था लेकिन उसकी कद काठी अच्छी थी और शरीर भी गठा हुआ था।
ठेकेदार के आते ही आरिफ ने हाथ जोड़ लिए और बोला, “मालिक पैसे तो आज भी नहीं कमा पाया, लेकिन आप चिंता न करें, मैं आपके पैसे वापिस कर दूंगा। यहीं गाँधी नगर में एक रिश्तेदार है मेरा, उससे कल पैसे ले कर आपको लौटा दूंगा। ठेला लगाकरसीधा वहीं जा रहा हूँ।
फिर थोड़ा रुक कर बोला, “कल आ कर आपके पैसे दे जाऊँगा, अब तो जब तक बंदी है, ठेला किराए पर लेने का मतलब नहीं हैसो अब बंदी के बाद ही ठेला चलाऊंगा”….. वो एक सांस में सब बोल गया था।
इसपर ठेकेदारबोला, “मैंने तो तुझे पहले ही कहा था कि मत लेजा ठेला अभी, तुझे ढुलाई के लिए कुछ नहीं मिलेगा, सबअपनी जानें बचाने में लगे हुए हैं। पूरा देश बंद पड़ा है, ठीक है तू जा और कल आके पैसे दे जाना।”
आरिफ बोला, “क्या करता मालिक ये पेट जो न कराए, शहर तो बंद है पर पेट का क्या करें, ये कहाँ बंद होता है।”
ठेकेदार बिना कुछ बोले घर के अंदर चला गया, उसकी बीवी ने आवाज़ दे कर उसे अंदर बुला लिया था।
आरिफ भी कम्पाउंड से बाहर गली में आ गया था। गली में आकर उसने मुँह पर से गमछा हटा लिया था। वो बोल कर तो आगया था लेकिन बोलने के बाद ही उसे अहसास हो गया था कि वो कुछ भी बोल रहा है। ये उसकी कल्पना थी कि गांधीनगर काउसका रिश्तेदार पैसे दे देगा और वो उसी के पास जा रहा है। लेकिन सच ये था कि जब तीन दिन पहले ही उसने गांधीनगर वालेरिश्तेदार शम्सुल भाई को फ़ोन किया था तो उसने फ़ोन भी नहीं उठाया था। इस समय कोई अभी अपने से कमज़ोर आदमी काफोन क्यों उठाएगा भला, उसने भी यही सोचा होगा कि मैं कहीं रहने की जगह या कुछ पैसे न मांग लूं। आरिफ के पास एकचाइनीज़ फोन था, उसमें वो यूट्यूब पर बड़े चाव से गाने और वीडियो देखा करता था। शम्सुल को जिस दिन फ़ोन लगाया था, उसी दिन रात में उसकी आउटगोइंग बंद हो गयी थी, उसने दो सौ रुपये रिचार्ज करवाने के लिए ही बचा कर रखे थे, लेकिन जबअगले दिन बंदी हो गई तो उसने रिचार्ज न करवाकर वो पैसे आगे के लिए बचा लिया था।
वो चलते-चलते चावड़ी बाजार मेट्रो के बाहर पहुंच गया था। वो सोचने लगा कहाँ जाऊं? खाने की अभी तो उतनी जरूरत नहींथी, जितनी जरूरत उसे सोने की जगह की थी। वो मेट्रो की रेलिंग पर बैठकर यही सब सोचने लगा। बीच-बीच में पुलिस कीगाड़ी भी गश्त लगा रही थी। आठ बच चुके थे। सड़क पर अब कोई नहीं दिख रहा था। अभी चार दिन पहले ही इस समय यहाँ पैररखने की जगह नहीं होती थी, लगता था कि ये भीड़ कहाँ से आती है और पता नहीं कहाँ जाती है लेकिन पिछले चार दिन से यहाँसन्नाटा पसरा है। भाई दुनिया का कोई भरोसा नहीं है, इंसान की कोई औकात नहीं है।.. ये आरिफ के मुँह से निकल गया था।
अब आरिफ फिर से सोचने लगा क्या किया जाए? यहाँ मेट्रो के बरामदे में तो पुलिस वाले सोने नहीं देंगे। सदर बाजार में एक रैनबसेरा तो है लेकिन एक तो वो बहुत दूर और दूसरा वो मुसलमान है। अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में दंगे हुए थे तो उसने सुना थाकि उस रेन बसेरे में किसी मुसलमान को लोगों ने बहुत पीटा था, वहां ज्यादातर हिंदू ही रुकते हैं। वो सोचने लगा जिनके पाससोने को घर नहीं है, वो भी धर्म के नाम पर कैसे लड़ लेते हैं! खैर उसने सोचा धर्म का गरीबी से क्या लेना -देना?
उसे जब कुछ नहीं सुझा तो वो वहां से उठ कर आगे बढ़ चला। अभी उसे बीड़ी की बहुत तलब लगी, उसने सुबह से एक भीबीड़ी नहीं पी थी। वो ये सोच कर आगे बढ़ता गया कि रास्ते में कोई किराने की दुकान दिखेगी तो वो एक बण्डल बीड़ी ले लेगा।उसे पता था कि शायद वो रैन बसेरे की तरफ ही जा रहा है लेकिन उसने अपने मन को नहीं बताया था। अब वो चलते-चलतेअजमेरी गेट तक आ गया था रास्ते में उसने बीड़ी खरीद ली थी और बीड़ी पीते- पीते वो चला जा रहा था। उसने इस इलाके कीसारी गलियां देखी हुई थी, वो पिछले आठ साल से यहाँ ठेला चला रहा था। लेकिन आज वो गलियां उसे किसी और ही दुनियाकी लग रही थी। क्या किसी ने कभी सोचा भी होगा कि कभी ऐसा समय भी आएगा कि पूरी दुनिया थम जायेगी? ऐसी दिल्लीउसने अब तक नहीं देखी थी। यही सब सोचता -सोचता वो चला जा रहा था, तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी, “गोरी तोरी चुनरीबा लाल-लाल रे, सड़क पर चले लू कमाल चाल रे” ये उसका रिंग टोन था। आज उसे ये रिंग टोन थोड़ा अजीब लगा, फिर भीउसने फ़ोन उठा लिया, उसके घर से फ़ोन था, उसकी बीवी का। उसने बीबी को बताया कि ठेकेदार बड़ा अच्छा आदमी है, उसनेउसे अपने कम्पाउंड में सोने दिया है और ठेकेदार की बीवी उसे खाना भी खिला देती है। हम सब ऐसी ही दुनिया की तो कल्पनाकरते हैं। खैर, उसकी बीवी ने बताया कि गाँव में भी कोरोना का बड़ा वबाल मचा है, दिल्ली से जितने लोग भी आये हैं, उनकोपुलिस ले जाकर गाँव के स्कूल में बंद कर दिया है, लोग कह रहे हैं कि उनसे गाँव में भी महामारी फैलने का खतरा है। डॉक्टर तोआता नहीं है इलाज़ करने, सो कह रहे हैं कि चौदह दिन बाद सबको छोड़ देंगे। उसने आगे कहा कि तुम अच्छा किये जो गाँव नहींआये। घर में अभी राशन है, सो अभी चिंता नहीं है।
जब उसने फ़ोन रखा तो देखा कि वो जीबी रोड के मुहाने पर खड़ा है। मन में आया कि चलो आज इधर से ही चलते हैं, ये रोड भीतो आगे जाकर सदर बाजार में ही मिलेगी। उसने एक और बीड़ी जला ली और आगे की तरफ बढ़ गया। वो जीबी रोड पर भी मालपहुंचाने अक्सर आता था और दो बार तो ऊपर कोठों पर भी जा चुका था। आज जीबी रोड की सड़कें सूनी पड़ी थीं, ऊपरखिड़कियों से कोई नहीं झांक रहा था। सारे कोठे खाली पड़े थे। यही सब देखता- सोचता वो आगे की तरफ बढ़ा जा रहा था।
उसका ध्यान तब टूटा, जब एक औरत की आवाज उसके कानो में टकराई, “भाई एक बीड़ी पिलायेगा क्या? “
उसने देखा कि एक 40-45 साल की औरत सिगरेट के खोखे के पास जमीन पर कुछ ढूंढ रही थी। खोखा तो बंद पड़ा था।
आगे औरत ने कहा, “आजकल सब सिगरेट पीते है, साला बीड़ी हो तो इंसान उसे दुबारा सुलगा भी ले सिगरेट तो लोग जड़ तकचूसकर फेकते हैं।”
आरिफ रुककर उस औरत को देखने लगा, गोरी और मोटी, नाक चिपटी हुई और ब्लू रंग की नाईटी। उसने पास जाकर बीड़ीनिकाल कर माचिस के साथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। वो औरत उसे जलाकर पीने लगी।
पता नहीं आरिफ के दिमाग में क्या आया, उसने पूछा, “सारे कोठे तो बंद हो गए हैं, तुम यहाँ क्या कर रही हो?”
“अरे! हमारा कोठा तो सालों से बंद पड़ा है अब तो आगे के दो -तीन कोठे ही चलते हैं, वो भी परसों आकर पुलिस ने बंद करादिए, मेरे यहाँ तो 3-4 लड़कियां ही थीं, वो भी चली गई, पता नहीं कहाँ गई होंगी, मैं कहाँ जाती, सो यही पड़ी हुई हूँ।” … बीड़ीपीते-पीते औरत ने कहा।
आरिफ आगे बढ़ने लगा तो पीछे से औरत ने पूछा, “तू कहाँ जा रहा है? अब यहाँ कुछ नहीं मिलेगा, जा चला जा घर, सो जाजाके।”
“सोने ही जा रहा हूँ रैन बसेरे में” आरिफ ने कहा.
औरत ने कुछ रुक कर कहा, “तेरे पास पैसे हैं?”
आरिफ को लगा कि वो धंधे की बात कर रही है, उसने कहा, “नहीं, पैसे तो नहीं है।”
औरत बोली… “ऊपर कोठे पर कमरे खाली हैं, चाहे तो सो सकता है, बदले में 3-4 बीड़ी पिला दियो”
आरिफ सोचने लगा कि पता नहीं, रैन बसेरे में जगह मिले या न मिले, एक रात यहीं काट लेता हूँ, आगे का कल देखा जाएगा।
वो फिर बोलता है “ठीक है लेकिन पैसे नहीं है मेरे पास”
औरत कुछ नहीं बोलती है और ऊपर सीढ़ी की तरफ बढ़ जाती है, आरिफ भी उसके पीछे सीढ़ी पर चढ़ जाता है। ऊपर आकर वोदेखता है कि बीच में एक हॉल है और उसके सामने चार छोटे- छोटे केबिन बने हुए हैं। जिस कोठे पर आरिफ पहले गया था, वहांदीवारों पर टाइल्स लगे थे पर यहां दीवारों पर सीलन थी। औरत एक मेज पर बैठ जाती है, आरिफ वहीं खड़ा है।
औरत ने बोला, “खाने के लिए तो कुछ नहीं है मेरे पास, मैंने भी दोपहर में ही दाल- रोटी खाई थी, स्टेशन के पास बंट रहे थे।”
“जा अंदर जा के सो जा, और 3-4 बीड़ी देता जा”… उसने एक केबिन की तरफ इशारा करते हुए कहा।
आरिफ बीड़ी दे कर अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर अन्दर बने हुए स्लैब पर लेट गया। एक बल्ब जल रहा अंदर। उसे सबकुछ अजीब लग रहा था, उसने सोचा कि कितनी अजीब बात है, पूरी दिल्ली में उसे सोने की जगह नहीं मिली और अब वो एककोठे पर सो रहा है। वो सोचने लगा कि कुछ महीने पहले ऐसे ही स्लैब पर वो एक लड़की के साथ सोया था। उस समय यहांकितना रंगीन माहौल था, चारों तरफ लड़कियां, मर्दों का शोर और आज सब कुछ सन्नाटा है। शहर के साथ कोरोना ने इन कोठोंको भी वीरान कर दिया है। वो पिछली बार जब यहाँ आया था, उसके बारे में सोचने लगा, सब उसके आँखों के सामने था।सोचते- सोचते वो पैंट की चेन खोल कर उस औरत को देखने लगा, जो थोड़ी देर पहले उससे बीड़ी ले कर गयी थी, वो धीरे- धीरे हाँथ हिलाने लगा और फिर उत्तेजना में उसके हाथ तेज- तेज चलने लगे। जब पेट पर उसको कुछ गीला सा लगा, तब उसकीसाँसे ठंडी पड़ने लगी। उसने एक बीड़ी जला ली और सोचने लगा कि साला शरीर भी अजीब है, चाहे कुछ भी हो जाए, सब बंद हो सक्ता है लेकिन इसकी भूख नहीं मिटती, चाहे वो पेट की हो या सेक्स की, शायद यही भूख इंसान को ज़िंदा रखती है।
सुबह जब उसकी आँख खुली तो उसे कुछ देर लगी, यह याद करने में कि वो कहाँ है? दरवाजा खोल कर वो बाहर आ गया, उसनेदेखा कि वो औरत सामने खड़ी है और बाहर की तरफ देख रही थी। आरिफ भी जा कर वहां खड़ा हो कर बाहर की तरफ देखनेलगा। सड़क पर बिलकुल सन्नाटा था।
“तुम्हारा नाम क्या है?” थोड़ी देर बाद आरिफ ने पूछा।
औरत ने कहा, “ऋतु”
आरिफ को यह नाम उसके उम्र और उसके चेहरे से मेल खाता हुआ नहीं लगा … उसने कहा “ऋतु?”
औरत ने कहा, “हाँ, ऋतु। कोठों पर तो ऋतु, सलमा या पिंकी जैसे ही नाम चलते हैं।”
“नेपाल से हो?” आरिफ ने फिर पूछा.
“नहीं तिनसुकिया, असम से” कहकर ऋतु ने पूछा, “बीड़ी बची है क्या?”
आरिफ ने दो बीड़ी निकाल कर सुलगाईं और एक उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“तुझे कोरोना तो नहीं है?” ऋतु ने एक बीड़ी हाथ में लेकर पूछा।
“पता नहीं” आरिफ ने कहा।
ऋतु मुस्कुराई और फिर बीड़ी पीने लगी। थोड़ी देर बाद ऋतु अपने कमरे में चली गई। आरिफ बाहर ही खड़ा रहा और सोचनेलगा कि इसने अभी तक जाने को क्यों नहीं कहा? आरिफ ने सोचा, बाहर कहाँ जाऊँगा, जब तक जाने को नहीं बोलती है, यहींरहता हूँ। वो काफी देर तक यूँ ही सड़क की तरफ देखता रहा, चिड़ियों की आवाज़ और बीच- बीच में इक्का-दुक्का लोगों कोआते- जाते देखता रहा। जब उसने मोबाइल देखा तो एक बज गया था। उसे भूख भी लग रही थी। हॉल के एक कोने में बेसिनलगा हुआ था, वहां जाकर उसने पेट भर पानी पिया। और फिर अंदर जाकर स्लैब पर लेट गया। पता नहीं कब उसकी आँख लगगई थी, जब उसकी भूख से आँख खुली तो शाम के सात बज चुके थे। उसने बाहर देखा कि ऋतु खड़ी हो कर सड़क को देख रहीथी।
वो पीछे से बोला, “तुम्हें भूख नहीं लगी है?”
उसने कहा, “लगी तो है लेकिन आज तो स्टेशन पर भी खाना नहीं बट रहा है, पुलिस लोगों को वहां से हटा रही है, बोल रही हैपूरा देश बंद है कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा, सरकार रैन बसेरे में खाना खिला रही है, जिसको खाना है, वहां जा कर खाले।”
“ठीक है, मैं जाता हूँ, तुम्हारे लिए भी ले आऊंगा खाना।” आरिफ ने कहा।
ऋतु कुछ नहीं बोली, कुछ देर खड़े रहने के बाद आरिफ नीचे सड़क पर आ गया और रैन बसेरे की तरफ बढ़ने लगा।
थोड़ी देर बाद जब आरिफ वहां पंहुचा तो देखा कि वहां वाकई खाना बंट रहा था। आरिफ ने मुँह पर गमछा लपेटा और लाइन मेंखड़ा हो गया। सब लोग डरे हुए थे, कोई मास्क पहने हुए था, तो कोई गमछा लपेटे हुए था। एक इंसान दूसरे इंसान से डरा हुआथा। प्लास्टिक के थैली में खाना बंट रहा था, उसने दो थैलियां ले ली। उसने वहीं सुना कि कुछ लोग बात कर रहे थे कि कोईसाधु आया है, बर्तन बाजार वाली गली में, वो कोई भभूत दे रहा, जिसको लगाने के बाद कोरोना नहीं होगा। पहले तो आरिफ नेसोचा कि वो तो मुसलमान है, उस पर एक साधु के भभूत का भला क्या असर होगा? फिर उसके दिमाग में आया कि उस औरतके लिए ले लेता हूँ, वो तो हिन्दू है। वो बर्तन बाजार जाकर भभूत ले लिया, वहां बहुत भीड़ थी लोगों की, उसने बचे हुए दसरुपये भी दे दिए उस साधु को।
अब भभूत और खाने की थैलियां ले कर आरिफ जीबी रोड की तरफ बढ़ रहा था। मन में थोड़ा उत्साह था। वो सोच रहा था कि आज उसके साथ सोऊंगा, पैसे नहीं तो क्या हुआ खाना और भभूत तो ले जा रहा हूँ। वो उसके बारे में जब सोच रहा था तो उसे बस’उस औरत’ सम्बोधन से ही सोच रहा था, ऋतु नाम से उसके बारे में नहीं सोच रहा था। क्यों, ये सवाल आरिफ के मन में नहींआया। वो इस महामारी और बंदी के समय में भी एक उत्साह में आगे बढ़ा जा रहा था। मुश्किल से मुश्किल समय में भी इंसानअपने को ज़िंदा रखने के लिए कोई न कोई सपना बुन ही लेता है।
जब वो ऊपर पंहुचा तो देखा कि ऋतू मेज पर बैठी कुछ सोच रही थी। क्या? पता नहीं।
आरिफ ने कहा, “खाना लाया हूँ, चलो खा लेते हैं।”
ऋतु उठ कर अंदर से दो प्लेट ले आई। आरिफ ने उसमे खाना निकाल दिया, फिर दोनों बिना आपस में कुछ बात किए खानाखाने लगे। खाना खाने के बाद आरिफ ने दो बीड़ी सुलगाई और एक उसे दे कर एक खुद पीने लगा। आरिफ सोच रहा था किअब इससे सोने वाली बात करूं…
“मेरा भाई भी आज तुम्हारे जितना बड़ा हो गया होगा, जब तिनसुकिया से आई थी तब वो बारह साल का था” तभी ऋतु ने कहा।
ये कहकर ऋतु कुछ सोचने लगी मानो कुछ याद कर रही हो।
और अपनी जेब से भभूत निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दिया। ऋतु ने बिना कुछ बोले भभूत ले लिया। थोड़ी देर बाद आरिफ वहाँसे चुपचाप उठकर केबिन में आकर स्लैब पर आ कर लेट गया। कुछ देर वो सोचता रहा कि उसने क्यों उस औरत से सोने के लिएनहीं कहा, वो मना भी तो नहीं ही करती। यही सोचते- सोचते उसकी आँख लग गई।
सुबह फिर जब उसकी आँख खुली और वो बाहर आया तो देखा की ऋतू कल की तरह ही बाहर सड़क पर देख रही थी। वो कलकी तरह ही जा कर वहां खड़ा हो गया, आखिरी दो बीडि़यां जलाईं, एक उसे दी और एक खुद पीने लगा। सब कुछ कल की तरहही था, मानो देश के साथ समय भी रुक गया हो। फिर कल की तरह ही आरिफ पेट भर पानी पी कर सो गया और शाम में उठनेके बाद खाना लाने के लिए रैन बसेरे की तरफ बढ़ने लगा। आज वो धीरे- धीरे आगे बढ़ रहा था, कोई उत्साह नहीं था। कोरोना नेसब कुछ धीमा कर दिया था। मन, गति और देश।
आरिफ कल की तरह आज भी हाथ में दो थैलियों में खाना ले कर उस औरत की तरफ बढ़ रहा था। आज मन में कल की तरहखयाल नहीं थे। उसका ध्यान जब टूटा तो देखा सामने तीन लड़के मुँह पर कपडा बांधे उसके सामने खड़े थे।
आरिफ घबरा गया, इस बीच एक लड़के ने चाकू निकाल लिया और बोला, “चल, जितने पैसे हैं, निकाल”
आरिफ को कुछ नहीं सूझ रहा था, सड़क पर बिलकुल सन्नाटा था। तभी उस लड़के ने उसके बाजू पर चाकू से वार कर दिया।
“भाई मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं है, बस ये खाना है।” आरिफ गिड़गिड़ाते हुए बोला।
एक लड़के ने उसके हाथ से खाना छीन लिया और बाकी दोनों लड़के उसे मारने लगे, जब आरिफ सड़क पर गिर गया तो पैरों सेमारने लगे और चाक़ू से उसके सीने पर वार कर के भाग गए। आरिफ वहीँ सड़क पर बेहोश पड़ा हुआ था।
इधर ऋतु बाहर खड़ी होकर सड़क को देख रही थी, मानो वो आरिफ के लौटने का इंतज़ार कर रही थी।
नीचे एक बूढ़ा उसकी तरफ देखकर भद्दी-भद्दी गालियां दे रहा था, “साली रंडी, अभी भी तेरी भूख नहीं मिटी, सारी बिमारियां तुमरंडियों ने फैलाई हैं।”
“भाग जा यहाँ से रंडी, खिड़की पर किस ग्राहक का इंतज़ार कर रही है?”
ऋतु पर गालियों का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वो अभी भी चुपचाप सड़क पर ही देख रही थी। तभी बूढ़े ने अपना चप्पलउछाल कर उसकी तरफ मारने के लिए फेंका.. चप्पल ऋतु तक नहीं पहुंची और नीचे छज्जे पर आकर गिर गई। ऋतु सोच रही थीकि शायद आरिफ को रैन बसेरे में जगह मिल गई होगी। फिर उसने चप्पल को देखा और सोचने लगी कि चप्पल उसके चेहरे परफेंका गया है या उसके पेट पर? कुछ सोचकर ऋतु कमरे के अंदर गई और भभूत उठाकर पागलों की तरह अपने पूरे शरीर पर लगानेलगी।
इधर वो बूढ़ा ताली बजाता हुआ और “गो कोरोना गो” चिल्लाता हुआ रैन बसेरे की तरफ चला जा रहा था।