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कोरोना वायरस ने दिया मौका प्रकृति को पहचाननेका

कोरोना वायरस। एक ऐसी महामारी जिसने विश्व के हर देश को रोक दिया है। जहा हर देश एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा में थे वही देश आज अपने आप को इस महामारी से बचने में लगे है।

जो गलिया, सड़के, राजमार्ग और विमानतल सब मानव आवाजाही से और उनके चहलकदमी से भरे रहते थे आज वह सन्नाटा है। बाजारों से रौनक गायब है। हर उद्योग, सार्वजनिक परिवहन एक जगह से दूसरे जगह आना जाना सब बंध है। सारे विश्व को आर्थिक तौर पर काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है और कुछ समय तक पड़ती रहेगी।

पर इस आर्थिक कीमत, मानवी ने जो प्रकृति को नुकसान किया है और जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्वक दोहन किया है उसके सामने कुछ नहीं है। आज से सिर्फ ४ महीने पहले अगर कोई कहता की सिर्फ एक दिन के लिए आप अपने निजी वाहन का उपयोग न करके सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करे या फिर एक दिन के लिए सम्पूर्ण वाहन उपयोग को वर्जित करे तो लोग मना करते या यह बात करनेवाले को मुर्ख कहते। पर आज लोगो ने सभी परिवहन का त्याग कर घर में रहना पसंद किया है।

कोरोना वायरस के दुष्परिणाम के सामने निम्न लिखित फायदे भी हुए है।

१. वैश्विक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन: कोरोना वायरस महामारी के चलते विश्व के ९८% देश में औद्योगिक, परिवहन और अन्य अर्थोपार्जन प्रवृति सम्पूर्ण या अधिकतौर पर बंध है। जिसके चलते वातावरण में ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन काफी कम हो गया है। जिसके चलते वातावरण के ओज़ोन स्तर में सुधर हुआ है। हम जानते है की यह सिर्फ कुछ समय के लिए ही है। पर हमे इसमें से एक समाधान मिला है। हवा का स्तर जहा जहा भी ख़राब है वह जगह पर अगर महीने में २-३ दिन सम्पूर्ण रूप से उद्योग और परिवहन को बंध रखा जाए तो इससे हवा के प्रदूषण को रोकने या कम करने में काफी मदद मिल सकती है।

२. साफ़ होती नदिया: भारत में गंगा, जमुना, नर्मदा और कई बड़ी नदियों की सफाई के लिए करोड़ो खर्वो रुपये खर्च किये गए। पर प्रदुषण कम नहीं किया गया। लेकिन अब जहा ज्यादातर औद्योगिक प्रवृति बंध है और कई फ़ैक्टरिओ का दूषित पानी नदियों में नहीं जा रहा है उस वजह से नदियों का प्रदुषण स्तर अपने आप कम हो गया है और पानी भी साफ़ हो रहा है। हम जानते है की यह सिर्फ कुछ समय तक ही है पर सरकार अब सख्ती से ऐसे औद्योगिक एकमो पर कार्यवाही कर सकती है जो प्रदूषित पानी इसमें बिना रासायनिक प्रक्रिया के नदियों में छोड़ देते है। अब साफ़ हो गया है की कौन नदियों की दूषित करता है।

३. बेजुबान जवारों और पंखियो को राहत: सबसे खुश बेजुबान जानवर और पंखी है। जो बार बार इंसानो से प्रताड़ित होते है।

इस महामारी ने एक बात समजादि है की प्रकृति से खिलवाड़ कितना भयावह होता है। और यह भी सिखाया है की प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। यह सब सुखद परिवर्तन चंद पलों का ही है क्यूंकि जैसे ही सब सामान्य होगा मानव वापिस प्रकृति को नुकसान पहुचायेगा। पर क्या हम अब इसको आदत नहीं बना सकते। कोई नहीं कह रहा की सब बंध करदो। पर स्वैछिक तौर पर महीने में एक – दो दिन सब बंध रखे ताकि प्रकृति भी साँस ले सके।

आज यह अच्छा मौका है जहा हम गहराई से यह बात सोच सकते है। आम, खास हर इंसान इस बात को सोचे की ऐसा क्या हो गया की सब अपने आप बदल गया। इसका जवाब उनको अपने आप मिलेगा। कुछ खास नहीं किया। बस कुछ आदते बदली और उसके सुखद परिणाम आ रहे है सामने।

अंत में यही कहुगा की इस महामारी से मैंने एक बात सीखी है की हद से ज्यादा संसाधनों का उन्मूलन मानव विनाश का कारन बन सकती है। इसलिए सही वक़्त पर सही कदम उठाने चाहिए। हो सके उतना सिमित मात्रा में संसाधनों का प्रयोग करे। साथ ही साथ प्रकृति के प्रति अपने दायित्व को समझकर उसको दूषित न करे और दूषित करने वालो को समाज के सामने लाये। आज जैसे सब मानवजाति को बचाने के लिए एक हुए है ऐसे ही आगे भी सब प्रकृति को बचाने के लिए एकजुट हो।

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