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कोरोना वायरस से खतरनाक है नफरत का वायरस

कोरोना वायरस से खतरनाक है साम्प्रदायिकता वायरस
कुछ दिनों पहले तक गली मोहल्ले में बहुत सारे मुस्लिम लोग सब्ज़ी बेचने आते थे लेकिन पिछले 3-4 दिनों से यकायक कम हो गए हैं। क्या इन्होंने दूसरा कुछ काम करना शुरू कर दिया है। क्या ये कहीं अपने गांवों में चले गए हैं। लेकिन इस सख्त लॉक डाउन में ये कुछ और काम कर भी कैसे सकते हैं। इस पाबंदी में ये अपने घरों को जा भी कैसे सकते हैं। और ये कहीं बाहर के नहीं ये तो हमारे ही शहर, हमारे ही मोहल्लों और हमारे ही देश के हैं। इनके पुरखे भी यहीं पैदा हुए और यहीं की मिट्टी में खाक हुए। ये बाहर से आये मुगलों के वंशज नहीं और न ही तुर्क या अफगानों के। इनके पुरखे यहीं के वासी थे जो बराबरी की जिंदगी के सपने लिए इस्लाम को मानने लगे और मुसलमान कहलाये। तो अब ये सब्जी बेचने वाले गरीब दिहाड़ीदार मुसलमान कहाँ गैब हो गए। कहीं ये कोरोना जिहाद फैलाने तो नहीं चले गए। लेकिन जो अपनी जिंदगी बचाने का जिहाद लड़ रहा हो वो कोरोना जिहाद के बारे में कैसे सोच सकता है।
दोस्तों ये न कोई साजिश कर रहे हैं और न कहीं गायब हुए हैं बल्कि ये नफरत नाम के एक वायरस का निशाना बने हैं। हाँ हमारे देश में कोरोना वायरस से भी खतरनाक और उससे भी कई सदियों पुराना एक वायरस है जिसका नाम है घृणा, नफरत जो कभी दलितों-शूद्रों को अपना निशाना बनाता है, कभी महिलाओं को तो कभी अल्पसंख्यकों को। खैरलांजी, गोहाना, मिर्चपुर, सालवन, क़िलाजफरगढ़ में इसने दलितों को जिंदा जलाकर मार डाला और सदियों से नफरत का यह वायरस महिलाओं को जिंदा जलाता रहा है। प्रेमी जोड़ों को पेड़ पर लटका कर मारता रहा है। 1984 में इसने हजारों सिक्खों के कत्लेआम किया। 2000 में हजारों मुसलमानों को अपना निशाना बनाया। आज जब पूरी दुनिया कोरोना नाम के खतरनाक वायरस की महामारी से जूझ रही है तो वहीं हमारा देश कोरोना के साथ साथ, सरकारी लापरवाही, मूर्खता और इस साम्प्रदायिक उन्माद की नफरत से भी कराह रहा है। कोरोना वायरस के कुछ लक्षणों से इसके संक्रमित का पता चल जाता है और उसे पहचान कर उसका इलाज भी शुरू किया जा सकता है लेकिन नफरत नाम के इस वायरस के संक्रमित को पता भी नहीं चलता कि कब वह इस वायरस से संक्रमित हो गया है। आज देश को सबसे बड़ी पार्टी, खुद को सबसे बड़े राष्ट्रवादी कहने वाले संगठन, मीडिया और आम लोग भी इसके शिकार हो गए हैं। तभी हम देखते हैं कि न केवल सोशल मीडिया बल्कि मेनस्ट्रीम मीडिया में भी मुस्लिमों के खिलाफ इतनी फेक और नफरत भरी खबरें चलाई जा रही हैं कि आम जनमानस भी इनकी बातों में आकर खामोशी से अपने भाईचारे को छिनते देख रहा है। हमारा मीडिया इतना बेशर्म हो चला है कि उसके झूठ का पर्दाफाश होने के बावजूद लगातार साम्प्रदायिक उन्माद भड़का रहा है। जिसकी वजह से आज आम मुसलमान की जान को खतरा हो गया है। जगह जगह बेरहमी से उनकी पिटाई की जा रही है। एक हॉस्पिटल तक मे एक मुस्लिम गर्भवती औरत को जगह नहीं दी गई जिससे रास्ते में ही उसके बच्चे की मौत हो गई। दलित और मजदूर भी इस नफरत की चपेट में आने से नहीं बचे हैं। एक क्वारन्टाइन सेंटर में संक्रमितों ने एक दलित औरत के हाथ से बने खाने को खाने से इनकार कर दिया तो हरियाणा के मानेसर में दबंगों ने मजदूरों को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेवार ठहराकर उनके कमरों में घुस कर उनकी पिटाई की। कई जगह दलितों से मारपीट की जा रही है, दलितों-मुस्लिमों की दुकानें बंद करवाई जा रही है। दुनिया पहले भी महामारियों से लड़ती आई है, उनसे बचकर उनका इलाज खोजती रही है लेकिन नफरत का यह वायरस बेहद खतरनाक है और फासीवादी इटली और जर्मनी में हम इसका दुष्परिणाम देख चुके हैं। अगर हमें मानवता को बचाना है तो हमें इस वायरस को जड़ से खत्म करना होगा।

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