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ग़रीबी का मज़ाक

दरिद्र को मज़ाक बना कर क्या साबित करेंगे तथाकथित नेता

 

आज मुझे एक परिवार ने अपने घर ब्राह्मण भोज पर बुलाया था। उनके परिवार के एक सदस्य का देहांत हो गया, जिनकी आज तेरहवीं थी। यही वहजह है कि ब्राह्मण भोजन के लिए मुझे भी निमंत्रण दिया गया, तो मैं भी और सभी ब्राह्मणों के साथ भोजन पर पहुंचा।

 

लॉकडाउन में तेरहवीं की रीत और दक्षिणा

 

वैसे मुझे यह सब रीति-रिवाज़ पसंद नहीं पर देश में तालाबंदी है और कोई उन्हें ब्राह्मण चाहिए था, इधर मुझे इस लॉकडाउन में अच्छा खाना। बस इस लिए मैं चला गया भोजन के बाद श्रीम्भगवद्गीता भेंट स्वरूप मिली। साथ ही कुछ पैसे भी दक्षिणा स्वरूप मिले जो मेरे लिए सोने पर सुहागा था।

 

तस्वीर के डर से लोगों को भूखा रहना पसंद है पर स्वाभिमान को सबके सामने नंगा होता नहीं देख सकते

 

मैं प्रसन्न मन से उनके घर से बाहर आया ही था कि एक नज़ारा देखकर मन सोचने पर विवश हो गया कि यह क्या हो रहा है जहां सरकार और मीडिया चीख-चीख कर बोल रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें। वहीं हमारे नगर निगम क्षेत्र के पार्षद महोदय ने इस बात को ताक पर रख दिया। गरीब लोगों को वह भरी दोपहरी में चूने से निशान किए हुए गोल गोल घेरे में खड़ा करवाकर सरकारी चावल बांट रहे थे। जबकि आजू-बाजू खड़े लोग तस्वीर ले रहे थे। 

 

मेरी आंखो में आंसू आ गए पार्षद महोदय की समाज सेवा देखकर नहीं बल्कि लोगो के दरिद्रता का मखौल उड़ता देखकर। कई लोग तस्वीर के डर से भूखे रहना पसंद कर रहे हैं पर अपने स्वाभिमान को सबके सामने नंगा होता नहीं देखना चाहते।

 

सोशल डिस्टेंसि्ग क्या है?

 

सबसे पहले तो मुझे यह सोशल डिस्स्टेंसिंग शब्द समझ नहीं आ रहा। क्योंकि हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अब एक सामाजिक प्राणी को समाज से कैसे अलग किया जा सकता है। अगर हम मोबाइल से बात कर रहे हों या किसी को चिट्ठी भी लिख रहे हों फिर भी हम समाज से जुड़ रहे होते हैं। मेरे हिसाब से सोशल डिस्टेंसिंग की जगह हमें फिज़िकल डिस्टेंसिंग बोलना चाहिए। क्योंकि सामाजिक दूरी हम चाहकर भी नहीं बना सकते पर हम शारीरिक दूरी बनाए रख सकते हैं।

 

बात मुद्दे की

 

अनेक लोग गोल घेरों में खड़े होकर 5 केजी चावल पाकर और फोटो खींचाकर खुश थे। इस बात पर खुश थे कि आज घर में चूल्हा जलेगा लेकिन मेरा सवाल उन लोगों से है जो समाज सेवा को एक मौके के रूप में देखते हैं। ताकि यह लोग खुद को नेता स्थापित करने के लिए या फिर लोगों के बीच अपना रसूख बना सकें। असल में कुछ ऐसे ही मौकापरस्त लोगों के कारण सरकार की योजनाएं फलीभूत नहीं हो पातीं। 

 

मध्यम वर्ग है वह आज सबसे ज़्यादा समस्याओं से जूझ रहा है

 

उच्च वर्ग के लोग या यूं कहूं कि आर्थिक रूप से सशक्त वर्ग जिनके घर 2 से 3 महीनों का राशन होता है या उनके पास इतना पैसा होता है कि एक फोन कॉल पर सुपर मार्केट से सारा सामान उनके घर पहुंच जाता है। उन्हें सरकार के द्वारा दिए जाने वाली सहायता की कोई ज़रूरत भी नहीं होती। सच यह भी है कि उन लोगों को ऐसी लॉकबंदी से कोई ज़्यादा समस्या नहीं होती। निम्न वर्ग यानी आर्थिक रूप से कमज़ोर प्रतिदिन की आमदनी पर गुज़ारा करते हैं। वह सरकार के द्वारा दिए जाने वाले राशन को लेते हैं साथ ही तथाकथित नेताओं के हाथ राशन लेते हुए फोटो भी खिंचाते हैं। सोविए जो मध्यम वर्ग है वह आज सबसे ज़्यादा समस्याओं से जूझ रहा है। 

 

आज उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि सुपर मार्केट से सारा सामान मंगा सकें। लोकल मार्केट जा नहीं सकते क्योंकि पुलिस कुट रही है। मध्यम वर्ग ज़्यादातर किसी करीब की दुकान से उधारी पर महीने भर का सामान लेते हैं और महीना भर बाद उधारी चुका देते हैं। ऐसे समय में दुकानदार भी उधारी नहीं दे रहा और लोकलाज के कारण यह वर्ग सरकार के द्वारा दिया जाने वाला राशन भी नहीं लेता जिससे इनकी समस्या बढ़ती जा रही है।

 

अगर मदद के समय कैमरा को थोड़ा परे रखा जाए और अपनी ओछी लोकप्रियता को कुछ देर के लिए भूलाकर समाज प्रेम ओर सेवा को सर्वोपरि समझा जाए तो शायद यह लॉकडॉउन या देश बंदी सफल रहे। हम उस अदृश्य शत्रु से बेहतर मुकाबला कर सकें।

अंत में अगर सब ठीक हो जाए तो अगली बार वोट करते समय मंदिर-मस्जिद से ऊपर उठकर एक बार अस्पताल और डॉक्टरों की दशा के बारे में ज़रूर सोचिएगा।

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