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जाति-व्यवस्था को बनाए रखकर सत्ता पर एकाधिपत्य की घिनौनी साज़िश का पर्दाफाश !

“सवर्णों को अपनी मान्यता तथा व्यवहार को सही करना होगा , सवर्णों में जो विद्वान हैं तथा प्रभावशाली हैं ,उन्हें धर्मशास्त्रों की अधिकृत तथा सही व्याख्या करनी होगी” (हरिजन , जुलाई 1936)
उपरोक्त बातें मेरे शातिर दिमाग की उपज़ नही है बल्कि ये भारत के तथाकथित राष्ट्रपिता की कथनी है ! हालांकि इनकी कथनी बिल्कुल दिखावा है और करनी तो अस्तित्व में है ही नही ।
दरअसल इस देश में विचारधारा को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बाँट दिया गया है – गोलवलकरवाद और गांधीवाद , हालाँकि आप इनसे परे जैसे कि साम्यवाद , लेनिनवाद और अम्बेडकरवाद जैसे विचारधारा के भी हो सकते हैं पर इस देश के दरबारी मीडिया आपके अस्तित्व को सीधा नकारती है । यदि आप गोलवलकरवादी नही हैं तो आपको स्वतः मान लिया जाता है कि आप गाँधीवादी हैं , बिल्कुल उसी तरह जैसे कि आप भक्त नही हैं तो आपको पप्पू मान लिया जाता है (इन शब्दों से व्यक्तिगत तौर पर मैं सहमत नही हूँ) ।
अब आते हैं हमलोग गोलवलकरवाद और गांधीवाद पर , पहली चीज़ दरअसल गोलवलकरवाद इस देश में कभी भी अस्तित्व में था ही नही पर जो लोग गोलवलकर को मानते हैं वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग हैं , यह सर्वविदित है कि RSS हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करती है , आप मोटे तौर पर ये समझिये की वो हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार और बचाव के लिए काम करती है और आप भी जानते हैं कि उस धर्म की बुनियाद वर्ण-व्यवस्था(समकालीन रूप में जाति -व्यवस्था) से है । अब एक चीज़ आपको समझ आ गयी होगी कि ये दरअसल जाति-व्यवस्था के समर्थन में हैं ।
अब आते हैं गांधीवाद पर जो कि गोलवलकरवाद के ख़िलाफ़ या यों कहें कि जाति-व्यवस्था के ख़िलाफ़ पनपी एक समकालीन विचार है । गाँधी जी ने इस कुरूप व्यवस्था के ख़िलाफ़ 18 जुलाई 1936 को अपने पत्रिका हरिजन में एक लेख लिखा जो इस प्रकार है :
“जातपात का धर्म से कोई मतलब नही है , जाति एक रीति-रिवाज है,जिसके उद्गम को मैं नही जानता और न ही अपनी आध्यात्मिक क्षुधा की संतुष्टि के लिए जानना चाहता हूँ। वर्ण और आश्रम व्यवस्था ऐसी संस्थाएं हैं, जिनको जात-पात से लेना-देना नही है। वर्ण-व्यवस्था का नियम सिखाता है कि पैतृक धंधा अपनाकर हम अपनी रोजी-रोटी कमा सकते हैं । यह हमारे अधिकार को ही नही , बल्कि कर्तव्य को भी परिभाषित करता है।वर्ण-व्यवस्था अवश्य ही व्यवसाय के संदर्भ में बनी हैं , जो केवल मानवता के कल्याण के लिए है और किसी अन्य के लिए नही “( लेख के मध्यांश अंक हैं ये , शब्दशः ! लेख थोड़ी लम्बी है इसलिए मैं पूरा नही लिख सकता हूँ , इसके लिए क्षमा करें)
अब तक आपने लेख पढ़ लिया होगा तो आपने देखा दोस्तों ,गांधीजी ने किस तरह वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था को अपने समकालीन दरबारी पत्रकारों की मदद से खुलकर बचाव किया ।
अब आपको ये बात समझ आ गयी होगी कि गोलवलकरवाद और गांधीवाद के बीच किस तरीके का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है । अब आपको ये दिमाग में बात उपज़ रही होगी कि गांधीजी जातिवादी थे तो फिर आप ये समझिये कि वो जातिवादी नही बल्कि बहुत बड़े जातिवादी थे ।
यह लेख लिखने का मेरा मकसद यह था कि जिन्हें आप अलग-अलग समझते हैं वो , दरअसल शोले फ़िल्म का एक सिक्का है जिसमें टेल होता ही नही । मतलब यही की गांधीवाद~गोलवलकरवाद है।
भारत में आज से नही बल्कि यह खेल सदियों से चल रहा है , इस तथाकथित महात्मा से पहले कई महात्मा आए थे जो किंगमेकर की भूमिका निभाए और बाद में उसी किंग द्वारा उनकी हत्या हो गई पर ये महात्मा सब से अलग इसीलिए हैं क्योंकि ये राष्ट्रपिता हैं(ha..Ha..Ha..) ….गांधी एक सफ़ल राजनेता हैं और नाथूराम एक सफ़ल अपराधी , इन दोनों के संदर्भ में ओशो रजनीश की एक बात याद गयी , वो कहते हैं ” Politician are successful criminal and Criminals are unsuccessful politician “
…. फ़िलहाल लॉकडाउन में घर पर रहिये , सुरक्षित रहिये !
(मदद : 1. Annihilation of caste -. BR AMBEDKAR
2. HARIZAN MAGAZINE ,18 JUL1936 :GANDHI
3. OSHO RAJNISH SPEECH: PRIEST AND POLITICIAN , VIDEO NO. 1 )
…….उपयुक्त निष्कर्ष लेखक के यानि मेरा व्यक्तिगत हैं ।

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