मैं चाँद के पार नही ले जाऊँगा
लेकिन चाय जरूर बना दूँगा तुम्हारे लिए ।।
मैं महँगे आभूषण नही लाऊँगा
लेकिन जो बिखरे हुए है घर के कोने कोने में उनको जरूर समेट दूँगा ।।
मैं गुलाब नही लाऊँगा
लेकिन तुम्हारे नाम के बेला, पलाश, अमलतास, गुलमोहर, हरसिंगार के पेड़ जरूर लगा दूँगा।।
जब तुम कुछ पढ़ना चाहोगी
तब ला दूँगा नारीवादी पुस्तकें जिससे तुम जान सकोगी अपने स्त्री अधिकारो को जिसको अनंत काल से छुपाया है पितृसत्ता ने।।
मैं तुम्हारी हर समस्या में ढाल नही बनूँगा
लेकिन उनसे लड़ना जरूर सीखा दूँगा और साथ रहूँगा हमेशा
जैसे रहते है दो दोस्त ।।
जब तुम सोना चहोगी
तब सुना दूँगा अपनी बकबास कविताएं जो लिखी है तुम्हारे लिए।।
ये जो मकान है ना ! ये घर बना है तुमसे…
इसलिए तुम्हारे नाम की एक तख्ती लगाऊँगा मुख्य द्वार पर
घर मे होंगे फलदार वृक्ष
इन्ही वृक्षों पर डाल दूँगा एक झूला तुम्हारे लिए।।
इस घर में थोड़ी सी जगह मुझे दे देना रहने की
क्योंकि तब तक मैं बुड्ढा हो चुका हूँगा
और तुम्मे वजन भर गया होगा
कभी तुम मुझे संभाल लिया करो
कभी मैं तुम्हे ।।
– जितेंद्र सिंह