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नाकाम एवं प्रभावहीन विपक्ष

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इस देश में जब भी सरकार अपने रास्ते से इधर उधर भटकने की कोशिश करती है तो विपक्षी नेता हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को परिभाषित करते हुए सरकार को मार्ग दिखाने का काम करते आए हैं। सरकार भी सकारात्मक कदम उठा कर विरोधियों के हत्ते चढ़ने से परहेज करती है।

ये बिल्कुल सही बात है कि नरेंद्र मोदी एक राजनेता के रूप में निखरे हुए खिलाड़ी हैं, उन्हें देश की बारीकियों और राजनीति का तजुर्बा है। उन्हें चुनाव जीतना और मोहित अभिभाषण देना बखूबी आता है। जन मानस में छवि के आगे और नेताओं का राजनीतिक अस्तित्व फीका पड़ जाता है। उनके साथ एक अच्छा रणनीतिकार व्यक्ति भी है- अमित शाह- देश के ग्रह मंत्री।

अब मुद्दे पर आया जाए। सरकार की दूसरी ओर विपक्ष में जो भी लोग हैं कांग्रेस से लेकर अनेक क्षेत्रीय दल, वे एक नाम मात्र हैं। ये बात मैं कुछ तथ्यों के आधार पर साबित करता हूँ। राहुल गाँधी के 12 फरबरी से लगातार कोरोना संक्रमण की भयावह स्तिथि की ओर इशारा करने के वाबजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं की गई, म.प्र में स्वास्थ मंत्री तुलसी सिलावट जी बैंगलोर में भाजपा के तोड़-मरोड़ षड्यंत्र में शामिल थे और कोई स्वास्थ मंत्री और अस्थिर सरकार होने के कारण म.प्र में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यदि उसी समय से इस बारे में कार्य किए जाते तो जरूर ही इस महामारी का प्रभाव शून्य होता। विपक्ष इस मुद्दे को मुख्यधारा के मुद्दे में तब्दील करने में असफल रहा। केरल के समय से पहले लिए गए उपायों से उस राज्य को बढ़ते कोरोना संकट से बहुत राहत मिली। विपक्ष इस बेहतरी को केंद्र सरकार की नीतियों के समक्ष तुलनात्मक उदाहरण साबित करने में बिफल रहा। केंद्र सरकार के शुरुआती राहत फंड ₹15000 करोड़ और केरल सरकार के ₹20000 करोड़ होने पर भी विपक्ष ने उस प्रकार हमला नहीं कर पाया जिस प्रकार 2014 से पहले विपक्ष करता था।

मुझे भारतीय विपक्ष, एक बेबस, डूबती नाव पर सवार करती हुई सवारी सी लगता है। मोदी जी के इकॉनमी को लेकर सारे कार्य विफल हो जातें है, ओपोज़िशन सोता रहता है, मोदी जी नोटबन्दी कर के किसान और व्यापारियों को रोड पर ले आते हैं, ओपोज़िशन AC कमरों में बैठकर ट्विटर पर डींगे हाँकता है और लोगों को इस तथ्य से भी अवगत करवाने में असफल होते हैं की उनकी जेबों और धंदे-व्यापार में जो मंदी आई है वह सरकार की नाकाम योजनाओं के कारण ही हैं।
मोदी जी फिर थाली पिटवाते हैं, अच्छी बात है स्वास्थ कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों के अभिवादन में, पर विपक्ष मूल्य सुविधाओं की बात- वेंटिलेटर, टेस्टिंग, आदि, जनता के कानों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुँचा पाता। मोदी जी दीया जलवाते हैं, लोग पटाखे फोड़ते हैं, विधायक जी बंदूक चला देती हैं विपक्ष चुप चाप सब देख लेता है। न किसी पर कार्यवाही होती है, न मीडिया का पूर्णतः कवरेज मिलता है।
असलियत में कभी कभी ये लगता है, प्रधानमंत्री जी जान बूझकर ऐसे काम करवाते हैं जिन से विपक्ष वेबस और हारे हुए स्वतः ही महसूस करें। जैसे बचपन में कोई नटखट बच्चा दूसरे बच्चों को चिढ़ाता है, ठीक उसी प्रकार।

विपक्ष नाकामी की मिशाल साबित होते जा रहा है और सरकार भी उन्हें ऐसे नजरअंदाज करती है जिससे लगता है उनका कोई किरदार ही नहीं है इस देश में। इनका और मीडिया का तालमेल शून्य, नरेंद्र मोदी ब्रांड का विकल्प प्रदान करना शून्य, जनता में विपक्ष के कार्यों की जागरूकता शून्य, प्रधानमंत्री मोदी के ब्रांड के आगे इनकी बहस, बातें, तर्क सब शून्य, और तो और विपक्ष में एकजुटता और अपनी बानी हुई सरकारें चलाने के लिए दम भी शून्य नजर आती है। साम, दाम, दंड, भेद से सरकारें गिराई जाती हैं और सम्पूर्ण विपक्ष दर्शक बना रहता है।

अब इनको यह मंथन करना चाहिए की कैसे सरकार की सकारात्मक आलोचना करना है। अब भारतीय विपक्ष को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है जिससे वह सरकार का कई तौर और कई जगह विकल्प तैयार कर सके। सकारात्मक आलोचना से ही सरकारें अपनी योजनाओं में, अपने कार्यों में सकारात्मक बदलाव लाती है तथा जनहित की ओर अग्रसर होती हैं। विपक्ष को मिल जुलकर सरकार का सहयोग भी करना है और विरोध भी। यही इस देश की सुंदरता है। यही भारत का लोकतंत्र है।
इस विषय को मैं सम्मानीय राममनोहर लोहिया जी की कथनी के साथ समाप्त करता हूँ, “अगर सड़कें खामोश हो जाएं तो संसद अवारा हो जाएगी।”

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