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पंचायत के एजेंडे में हों बच्चों के अधिकार

बाल मित्र ग्राम पंचायत

पंचायत के एजेंडे में हों बच्चों के अधिकार

 

हालिया राजनीति सिर्फ मतदाताओं की फिक्र करती है जबकि एक स्वस्थ्य समाज निर्माण और लोकतन्त्र में बच्चों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। बच्चे कल के नहीं वरन आज के ही नागरिक हैं। भारत की कुल जनसंख्या में जब 40 प्रतिशत आबादी बच्चों की है तब हमें यह चिंता करनी ही होगी कि बच्चों का अधिकार राजनीति का मुद्दा बने। मप्र जैसे राज्य के 23000 पंचायतों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उनके एजेंडे में बच्चों के अधिकार शामिल हों ताकि 0 से 18 वर्ष के सभी बच्चों के जीवन जीने, सुरक्षा, विकास और सहभागिता के अधिकार सुनिश्चित हो सकें।

 

महिलाओं और बच्चों का विकास संविधान में सूचीबद्ध 29 कार्यों में एक है

 

महिलाओं और बच्चों का विकास संविधान में सूचीबद्ध उन 29 कार्यों में से एक है जिसका अंतरण पंचायती राज संस्थाओं को किया जाना है। यह सुनिश्चित करना ग्राम पंचायतों का कर्त्तव्य है कि ग्राम पंचायत क्षेत्र के सभी बच्चे लिंग, जाति और धर्म आदि के भेदभाव के बिना योजनाओं का लाभ उठा सकें। बच्चे स्वस्थ रूप से जन्म लें, वे हृष्ट-पुष्ट रहें। उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो तथा वे सुरक्षित रहें इसका प्रबंधन करना होगा। पंचायत प्रतिनिधि सड़क, भवन जैसे अधोसंरचनात्मक विकास कार्यों के लिए ही प्रयासरत रहते हैं।

 

बच्चों से जुड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण आहार को लेकर जागरूकता और उनसे जुड़ी समितियों को सक्रिय बनाने में भी उनकी ज़रूरी भूमिका हो सकती है। इसके लिए ग्राम पंचायत व्यवस्था को अपने नज़रिए में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। बच्चों के शौचालय में स्वच्छता, पेयजल समस्या का निदान, दूर गांव तक पढ़ाई के लिए परिवहन संबंधी दिक्कत और सुरक्षित खेल मैदान जैसे काम किए जा सकते हैं। 

 

बच्चों के लिए सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए पंचायत को कदम उठाने होंगे

 

ग्राम पंचायत ग्राम स्तर पर बच्चों के लिए सेवाओं की गुणवत्ता को  बेहतर बनाने अथवा उनकी किसी तत्कालिक महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए ग्राम पंचायत निधि से योगदान भी कर सकती है या संसाधन जुटा सकती है। इसके साथ ही वह नवजात शिशुओं के जन्म पंजीयन, उनके टीकाकरण, कुपोषित और शाला त्यागी, बालश्रमिक सहित ज़रूरतमंद बच्चों के बारे में सूचना इकट्ठी करके तथा इनपर निगरानी करके महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। आज यह ज़रूरी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि लोकतंत्र के प्रमुख आधार ग्राम पंचायतें बाल मित्र बनने की दिशा में आगे बढ़ सकें।

 

आओ बनाएं बाल मित्र ग्राम पंचायत 

 

बाल मित्र ग्राम पंचायत वे हो सकती हैं जहां बच्चों के साथ पंचायत के सभी सदस्य मिलकर कार्य-योजनाएं तैयार करते हैं। बालश्रम, कुपोषण, बाल हिंसा से वे बच्चों का संरक्षण करने, उनकी राय का सम्मान करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जो कभी भी उनके साथ भेदभाव नहीं करते हैं। पंचायत यह देखें कि उनसे जुड़े सभी बच्चे प्रसन्न, सुरक्षित, सम्मानित महसूस करते हों। वे शिक्षा, आमोद-प्रमोद तथा लोक संस्कृति का आनंद उठा रहे हैं।

 

बाल पंचायत की बैठक

 

बच्चों को स्वयं से संबंधित मामलों पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है तथा उन्हें उनके लिए तैयार की गई सेवाएं अथवा क्रियाकलापों के संचालन में शामिल किया जाता है। इस प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि पंचायत द्वारा मान्यता प्राप्त बाल पंचायत का गठन हो। यूनिसेफ मप्र की प्रतिनिधि बीना बंदोपाध्याय के अनुसार बच्चों से जुड़े ज़मीनी अमले का ग्राम पंचायत बैठक सहित ग्राम सभा में शामिल होना और अपनी रिपोर्ट व कार्ययोजना साझा करना भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। विभागीय समनव्य के अभाव में बच्चों से जुड़े लक्ष्यों को पाने में कठिनाइयां बनी हुई हैं। 

 

बाल मित्र वातावरण का आंकलन

 

यदि सीधे-सीधे बाल मित्र वातावरण का आंकलन करना हो तो हमें इन सवालों को टटोलना होगा। क्या गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं, क्या निर्धारित उम्र के सभी बच्चे आंगनबाड़ी जाते हैं, क्या सभी बच्चों को पोषण आहार मिल रहा, क्या बच्चों का जन्म पंजीयन व टीकाकरण हो रहा है? यही नहीं कुछ और बातें टटोलनी होंगी जैसे क्या बच्चों से जुड़े खेल मैदान, स्कूल भवन सुरक्षित, पर्याप्त और रुचिकर हैं? क्या बच्चों के लिए साफ पानी, शौचालय और स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध हैं? इसके साथ ही यह भी देखा जाना होगा कि पंचायत स्तरीय बाल संरक्षण समिति गठित होकर बालहित में क्रियाशील हो। पंचायत को यह अधिकार है कि वह विशेष ग्राम सभा बुला सकता है ऐसे में यह आदर्श कदम ही होगा जब पंचायत में बच्चों के मुद्दों पर विशेष ग्राम सभा रखी जाए।

 

अंतर्राष्ट्रीय करार से जुड़े हैं बच्चों के अधिकार 

 

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते को 1992 में भारत सरकार ने अंगीकार किया है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित और भारत सरकार द्वारा लक्षित सतत विकास लक्ष्य 2030 को प्राप्त करने के लिए ज़मीनी स्तर पर कदम उठाने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में प्लानिंग कमीशन द्वारा हालिया जारी रिपोर्ट का हवाला देते हुये सेव द चिल्ड्रेन के प्रदीप नायर बताते हैं कि मध्यप्रदेश जैसे राज्य में बच्चों से जुड़े सतत विकास लक्ष्य संकेतकों की स्थिति में गिरावट और चुनौतियां बनी हुई हैं। जबकि इस अध्ययन में ही 169 लक्ष्यों में से 54 लक्ष्यों को लेकर रिपोर्ट जारी की गई हैं। 

 

क्या कहती हैं रिपोर्ट

 

रिपोर्ट के अनुसार सतत विकास लक्ष्य 02 भूख की समाप्ति और  बच्चों मे कुपोषण को लेकर मप्र को 100 में से 24 अंक दिये गए हैं। बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य टीकाकरण में भी 50 प्रतिशत अंक हैं। वहीं लक्ष्य 04 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए 54 अंक दिये गए हैं। इसमें चिंताजनक है कि 6 से 13 वर्ष के शाला त्यागी बच्चों का राष्ट्रिय औसत 2.97 प्रतिशत है। जबकि मप्र 3.78 प्रतिशत पर है। इस उम्र से बाल श्रम का सीधा जुड़ाव दिखाई देता है। बाल श्रम विरोधी अभियान के राज्य प्रतिनिधि राजीव भार्गव कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे कृषि मज़दूरी में लगे हुये हैं जिन्हें शिक्षा से जोड़ने में पंचायतों की प्रमुख भूमिका होगी।

 

ऐसे ही चिंताजनक आंकड़े लक्ष्य 05 लैंगिक समानता को लेकर हैं जहां महिलाओं, बालिकाओं के खिलाफ अपराध लगातार जारी हैं। प्राकृतिक संपदा से धनी इस प्रदेश मे लक्ष्य 13 क्लाइमेट एक्शन के लिए भी 47 अंक मिले हैं। इस तरह यह कहा जा सकता है कि सतत विकास लक्ष्यों की परीक्षा में हम फेल या पूरक राज्यों के श्रेणी मे खड़े हैं। इसलिए हमारे गांव और ग्राम पंचायतों के लिए उन संकेतकों में सुधार लाने के लिए आगे आना ज़रूरी हो जाता है।

 

बच्चों के हक में हो बजट का उपयोग

 

सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पंचायती राज विभाग द्वारा पहल की गयी है। 24 अप्रैल 2018 को प्रदेश के मंडला ज़िले के रामनगर से राष्ट्रीय ग्राम स्वराज्य अभियान को चालू किया गया है। इस योजना को 7255.50 करोड़ रुपये के कुल बजट परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया है। जिसमें से राज्य हिस्सेदारी 2755.50 करोड़ रूपये होगी। केंद्र की हिस्सेदारी 4500.00 करोड़ रूपये होगी। यह योजना सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तक विस्तारित है जहां पंचायतें मौजूद नहीं हैं। 

 

सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पंचायती राज विभाग मप्र को वर्ष 2019-20 हेतु सी ई सी स्वीकृत बजट देखने पर पता चलता है कि यहाँ प्रशिक्षण एवं क्षमता वृद्धि मद में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, ग्रीन एनर्जी, टिकाऊ आवास के नियोजन प्रबंधन प्रशिक्षण हेतु 3858900 रु, पंचायतों के संवेदीकरण हेतु 4131600 रु, गरीबी और भूख की समाप्ति और स्वच्छ जल एवं बेहतर स्वास्थ्य, सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट पर प्रशिक्षण हेतु 13098400 रु सहित राज्य स्तरीय प्रशिक्षण हेतु 1687200 रु बजट स्वीकृत बताया गया है। इस तरह यहां बजट का अभाव वैसे दिखाई नहीं देता है बशर्ते बच्चों के हक में उसका ठीक से उपयोग हो। इसलिए बाल मित्र पंचायत बनाने की यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाये और पंचायती चुनाव में बच्चों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाये तो बच्चों की स्थितियों में ज़मीनी सुधार संभव हो सकता है।

 

आंकड़ों के स्रोत –

 

https://www.panchayat.gov.in/documents/20126/62145/Madhya+Pradesh+19.20+Annex.pdf/

 

https://niti.gov.in/sites/default/files/2019-12/SDG-India-Index-2.0_27-Dec.pdf

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