शीर्षक: COVID19: आपदा से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव जिन पर प्रधानमंत्री को ध्यान देना चाहिए
भारत सरकार ने 14 अप्रैल को ख़त्म होने वाले लॉकडाउन की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया है। इस लॉकडाउन को लॉकडाउन 2.0 कहकर प्रचारित किया जा रहा है। वास्तव में यह देश की बड़ी जीवित गरीब आबादी के लिए भुखमरी-संकट 2.0 बन गया है।
यदि सरकार विदेश से आये लोगों की जांच गंभीरता से करती तो परिणाम इसके उलट होते
विदेशों से अमीर और अभिजात लोगों द्वारा लाये गए कोरोना का दुष्परिणाम आज देश का गरीब भुगत रहा है। सरकार अगर विदेशों से आये लगभग 15 लाख लोगों की हवाई अड्डों पर पहले ही ठीक से जांच करती और उन्हें आइसोलेशन में डालकर निगरानी पर रखती तो इन कुछ लोगों की गलतियों का परिणाम देश की 138 करोड़ जनता को नहीं भुगतना पड़ता।
लॉक डाउन की जल्दबाजी से मेहनतकश आबादी में भय का माहौल पनपा है
यानी केवल 0.1 प्रतिशत आबादी की गलती की सजा देश की 100 प्रतिशत आबादी भुगत रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मार्च को केवल 4 घंटे की सूचना पर देश में लॉकडाउन लागू कर दिया। लॉकडाउन को जिस तरह जल्दबाजी में बिना पूरी तैयारी के जनता पर थोपा गया था।
उससे न केवल देश की गरीब मेहनतकश आबादी में भय का माहौल पैदा हुआ बल्कि उनके सामने जीवन और जीविका का सवाल भी खड़ा हो गया।
बदइंतजामी का परिणाम यह है कि मजदूर भूखे रहने को मजबूर हैं
लॉकडाउन के बाद से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बेरोजगार और बेघर हो गए हैं व भूखे रहने को मजबूर हैं। बेरोजगार, बेघर व गांव के लिए पैदल निकले मजदूरों को भीड़ भरे कैम्पों में ठूस दिया गया है।
कैम्पों में रहने, खाने, मेडिकल जांच की बदइंतजामी का परिणाम है कि यह मजदूर कोरोना का डर होने के बावजूद अपने गांव व अपने परिजनों के पास लौटना चाहते हैं।
घटिया सरकारी इन्तजामों के चलते देश में जगह-जगह खाने को लेकर दंगे भड़क रहे हैं; दिल्ली, सूरत, मुम्बई की घटनाएं मेहनतकश-मजदूरों की भुखमरी की हालत को बयां करती है।
जिनको हम नज़रंदाज़ कर रहें है, यही मेहनतकश लोग अर्थव्यवस्था की नींव है
सामाजिक रुप से पिछड़े और उत्पीड़ित समूहों से आने वाले यह बहुसंख्यक मेहनतकश ही देश की अर्थव्यवस्था की नींव हैं और देश को बनाने का काम करते हैं। लेकिन आज देश के भीतर ही देश के यह मेहनतकश बेहद बदहवासी की हालत में जी रहे है।
वास्तव में लॉकडाउन लागू होने के पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी और देश में मजदूर-किसानों का बुरा हाल था लेकिन लॉकडाउन के बाद तो अब पानी सिर तक चढ़ आया है।
जनता के संबंध में विभिन्न मांगें जिनका उठाया जाना बेहद जरूरी है
लॉकडाउन की शुरुआत से ही जन-संगठनों, बुद्धिजीवियों, अर्थशास्त्रियों और जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा जनता के संबंध में विभिन्न मांगें उठाई जाती रही हैं। इन मांगों को अपने इस मांगपत्र में शामिल करके एवं अन्य बेहद ज़रूरी मांगों को भी उठाते हुए हम आपको मांगों की एक विस्तृत सूची दे रहे हैं।
हम आशा करते हैं कि हमारी इन मांगों पर जल्द-से-जल्द कार्रवाई सुनिश्चित होगी।
- जल्द से जल्द नए आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की जाए: भारत सरकार ने कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए 1.7 लाख करोड़ के आर्थिक राहत पैकज की घोषणा की है। यह आर्थिक पैकेज स्वास्थ्य खर्च, कैम्पों के खर्च, आर्थिक मदद आदि के लिए आवंटित किया गया है, जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। हकीकत में तो 1.7 लाख करोड़ की यह मदद पूर्ववत चली आ रही योजनाओं की ही रीपैकेजिंग हैं। ऐसे में इस महामारी से निपटने के लिए जल्द-से-जल्द नए आर्थिक राहत पैकेज के घोषणा की आवश्यकता है ताकि सभी जरुरतमंदों की मूलभूत जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा, इलाज, निवास को पूरा किया जा सके। महामारी और लॉकडाउन की इस स्थिति में हम मांग करते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की कम से कम 5% राशि राहत पैकेज के तौर पर दिए जाने की घोषणा की जाए।
- देश के अमीर-अभिजात वर्ग पर टैक्स बढ़ाया जाए:
- I. आज देश के बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने देश के संसाधनों के दोहन और श्रमिकों के श्रम की लूट से अमीर बने बैठे हैं। यह वर्ग देश की बेहिसाब दौलत व संपत्ति पर कब्ज़ा किये हुए हैं। ऐसे में इन कॉर्पोरेट घरानों पर महामारी से निपटने के लिए अनिवार्य रूप से बड़ा महामारी-शुल्क लगाया जाए और टैक्स को बढ़ाकर दोगुना किया जाए ताकि इस अतिरिक्त आय को कोरोना से लड़ने में खर्च किया जा सके।II. देश के ऐसे बड़े फिल्मी कलाकारों, खिलाड़ियों व अन्य अभिजात वर्ग जिनकी मासिक आय करोड़ों रूपये है, पर भी अनिवार्य रूप से शुल्क लगाया जाए और टैक्स को बढ़ाकर दोगुना किया जाए।III. देश के नेताओं व बड़े सरकारी अधिकारियों की आय, भत्तों में कटौती की जाए।
- देश के बड़े-बड़े धार्मिक ट्रस्ट(मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर आदि) के पास देश की जनता का अकूत पैसा व खजाना जमा है। इस पैसे का इस्तेमाल महामारी से निपटने के लिए किया जाए।
- लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए मांगे:
- I. देश में लॉकडाउन के कारण काम बंद होने व काम से निकाल दिए गये सभी मजदूरों को (संगठित, असंगठित क्षेत्र) भारत सरकार या प्रदेश सरकार द्वारा न्यूनतम आय की दर या उनके प्रतिदिन के वेतन की दर के आधार पर मासिक भत्ता दिया जाना तय किया जाए। इसके लिए सरकार द्वारा अध्यादेश जारी किया जाए और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सभी मजदूरों तक यह राशी पहुंच सके।
- II. केंद्र सरकार व प्रदेश सरकारें अनेक दावे कर रही है कि सरकारी कैम्पों में प्रवासी मजदूरों के लिए समुचित प्रबंध किये गए है लेकिन यह दावे जमीनी स्तर पर बेहद कमजोर दिखलाई पड़ते हैं। सरकारी कैम्प प्रवासी मजदूरों के लिए यातना शिविर बन गए हैं। प्रवासी मजदूरों को कैम्पों में भीड़ भरे कमरों में ठूसा जा रहा है। इन परिस्थितियों में कोरोना से बचाव के लिए शारीरिक-दूरी का पालन बेमानी-सा जान पड़ता है। भीड़ भरे कैम्पों में ठहरने के कारण मजदूरों के कोरोना के संक्रमण के साथ-साथ अन्य कई संक्रमणों की चपेट में आने का खतरा भी बढ़ गया है।
- III. कैम्पों में भोजन की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण कैम्पों में रह रहे मजदूरों को अपने हक़ व भुखमरी से बचाव के लिए प्रतिरोध करना पड़ रहा है। लेकिन जब यह मजदूर अपना स्वाभाविक और जायज प्रतिरोध कर रहे हैं तो इन्हें ही आरोपी बनाया जा रहा है और उत्पीड़ित किया जा रहा है। हम मांग करते हैं कि अपनी स्वाभाविक मांगें उठाने वाले जिन भी मजदूरों पर मुकदमे लगाकर गिरफ्तार किया गया है उन मजदूरों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए और उन पर लगाए गए मुकदमे वापस लिये जायें। यही नहीं कैम्पों में बदइंतजामी और भुखमरी के हालातों के लिए जिम्मेदार सभी अभिकारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए|
- IV. सरकारी कैम्पों में ठहराए गए मजदूरों के लिए जरुरी सुविधाएं जैसे पर्याप्त भोजन, साफ़ पानी, साफ़ शौचालय, साफ परिसर, दवाई व इलाज मुहैया करवाया जाए।
- V. लॉकडाउन और सरकारी बदइंतजामों के चलते जितने भी मजदूर असमय मौत का शिकार हुए हैं, उनके परिवारों को पच्चीस-पच्चीस लाख रूपये की नगद सहायता राशि व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।
- VI. असुरक्षा और बदहाली के शिकार प्रवासी मजदूरों को सकुशल उनके गांव पहुंचाने का इंतजाम किया जाए। उनके लिए उनके गांवों में क्वारेंटीन केन्द्रों की व्यवस्था की जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि गांव वापस लौटे मजदूरों के साथ सामाजिक बहिष्कार व उत्पीड़न न हो।
- VII. जिन मजदूरों के पास राशनकार्ड नहीं हैं, उन्हें भी सरकारी राशन की दुकानों से मुफ्त में सरकारी योजना के तहत राशन दिया जाए और साथ ही, उन तक गैस एजेंसी द्वारा मुफ्त में रसोई गैस की भी आपूर्ति की जाए।
- VIII. चिह्नित राशन वितरण केन्द्रों पर जरुरी सामग्री का पर्याप्त मात्रा में भंडारण रखा जाए ताकि लोगों को बार-बार राशन की दुकानों पर न जाना पड़े और परेशान न होना पड़े। राशन की दुकानों पर राशन वितरण के साथ-साथ अन्य जरुरी सामग्री जैसे- तेल, साबुन, टूथपेस्ट आदि का भी वितरण किया जाए।
- IX. सरकारी अनुमानों के अनुसार देश में भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में जरुरत से लगभग 3.5 गुना अतिरिक्त अनाज का भंडारण जमा है। जबकि रबी की फसल पक कर कटाई के लिए तैयार खड़ी है, जिससे गोदामों में नए व अतिरिक्त अनाज का भंडारण बढ़ेगा। ऐसे में इस अतिरिक्त अनाज का आवंटन जरूरतमंद मेहनतकशों के बीच मुफ्त व पर्याप्त मात्रा में किया जाए। ज़रूरतमंदों के बीच अनाज का सुरक्षित आवंटन हो सके इसके लिए भारतीय सेना को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाए।
- स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी मांगे:
- I. कोरोना से निपटने के लिए नए अस्पतालों का निर्माण किया जाए ताकि इस महामारी में देशवासियों का बेहतर इलाज किया जा सके। स्वास्थ्य बजट को बढ़ाया जाए ताकि सभी देशवासियों और खासकर मेहनतकश अवाम जो इलाज की कमी के कारण आज भी टीबी और अन्य घोषित/अघोषित बीमारियों से बड़ी संख्या में मर रही है, उन तक स्वास्थ्य सुविधायें पहुंचाई जा सके| ज्ञात ही है कि, टीबी जैसे अन्य संक्रामक बीमारियों की RO (पुनरुत्पादन दर) व मृत्युदर कोरोना से कहीं ज्यादा है। स्वास्थ्य बजट में बढ़ोत्तरी व सार्वजनिक क्षेत्र के नए अस्पतालों के निर्माण से न केवल हम कोरोना और आज की मौजूदा अन्य महामारियों से लड़ सकेंगे बल्कि भावी समय की संभावी महामारियों के लिए भी अपने देश को तैयार कर सकेंगे।
- II. अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर, नर्सेज व मेडिकल स्टाफ के पास सुरक्षा उपकरणों की कमी है व बेहतर सुरक्षा उपकरण नहीं है जिसके कारण डॉक्टर, नर्सेज, मेडिकल स्टाफ बड़ी संख्या में कोरोना से संक्रमित हो रहे है। अपनी सुरक्षा को लेकर इनके द्वारा अनेक बार विरोध भी दर्ज किया गया लेकिन इनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं किया गया है। हमारी मांग है कि कोरोना से इलाज के लिए डॉक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ, सहायक स्टाफ, सफाई कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मचारियों को पर्याप्त व बेहतर मास्क, सूट, चश्मा, सेनीटाइजर दिया जाए ताकि वह स्वंय भी कोरोना के संक्रमण से बचे रह सके।
- III. कोरोना से इलाज के लिए डॉक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल स्टाफ, सहायक स्टाफ, सफाई कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मचारियों को महामारी भत्ता दिया जाए व उनके रहने, खाने, यातायात की सुविधाओं को भी सुनिश्चित किया जाए।
- IV. अस्पतालों में कार्यरत ऐसी महिला कर्मचारियों जो गर्भवती है या बच्चों को स्तनपान कराती हैं, की छुट्टी के आवेदनों को मंजूर किया जाए।
- V. डॉक्टर व नर्स की नयी बहाली की जाए ताकि कोरोना व अन्य बीमारियों के पीड़ितों को बेहतर इलाज मिल सके।
- VI. निजी लैब व निजी अस्पतालों को यह जरुरी अनुदेश जारी किया जाए कि किसी भी बीमार व्यक्ति को बिना इलाज या जांच के वापस न भेजा जाए|
- VII. पीपीई किट, वेंटिलेटर आदि की जल्द-से-जल्द व्यवस्था की जाए ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि इनके इंतजाम पर जो खर्च लगेगा उसे अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के खर्च में कटौती करके या उसके फण्ड को डाइवर्ट करके न किया जाए।
- VIII. कोरोना मरीजों का पता लगाने के लिए बड़े स्तर पर ज्यादा से ज्यादा कोरोना के टेस्ट किये जाए। देश में कोरोना की जांच के लिए कम से कम 10,000 लैब का निर्माण किया जाए।
- IX. ICMR के वैज्ञानिकों द्वारा चिह्नित सभी हॉटस्पॉट पर बड़े स्तर पर जांच (Mass Testing) की जल्द-से-जल्द शुरुआत की जाए।
- X. कोरोना के मरीजों के लिए पर्याप्त आइसोलेशन केंद्र व क्वारेंटीन केन्द्रों की पहचान व निर्माण में तेजी लाई जाए ताकि पीड़ित मरीजों को ठीक से इलाज उपलब्ध हो सके।
- XI. सरकारी अस्पतालों में ओपीडी पुनः शुरू की जाए ताकि गरीब मजदूरों का नियमित इलाज हो सके। अस्पताल में कोरोना को देखते हुए ऐसे दिशा-निर्देश व व्यवस्था की जाए ताकि मरीज सोशल-डिसटेनसिंग का पालन करते हुए इलाज करवा सके। अन्यथा, ओपीडी बंद होने के कारण कोरोना से ज्यादा मरीज दूसरी बीमारियों से मौत का शिकार बन जायेंगे।
- XII. टीबी व अन्य ज्ञात/अज्ञात बीमारियों के इलाज में कोई कोताही न बरती जाए। टीबी देश की वह महामारी है जिसके कारण प्रति वर्ष देश में लगभग 5 लाख गरीब लोग मारे जाते हैं और लगभग 27 लाख लोग संक्रमित होते हैं। इसके खतरे को इस तौर पर भी आंका जा सकता है कि देश में प्रत्येक 10 सेकंड में एक नया व्यक्ति टीबी से संक्रमित होता है। ऐसे में टीबी व अन्य ज्ञात/अज्ञात बीमारियों को लेकर यदि कोताही बरती गयी तो मृत्युदर अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी। रिपोर्टों से पता चला है कि कोरोना किसी व्यक्ति की मृत्यु का एकमात्र कारण नहीं होता बल्कि वह अन्य रोगों के साथ मिलकर सहरुग्णता की स्थिति को जन्म देता है और मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में टीबी व अन्य संक्रामक रोगों के साथ कोरोना की सहरुग्णता बड़ी मानवीय क्षति का कारण बन सकता है।
- XIII. भारत में लगभग 12,617 ट्रेन हैं और प्रत्येक ट्रेन में 20 से 30 डिब्बे हैं। ऐसे में ट्रेन के डिब्बों का प्रयोग आइसोलेशन व क्वारेंटीन केन्द्रों के तौर पर किया जा सकता है। यह मांग क्रांतिकारी युवा संगठन ने सबसे पहले 27 मार्च को, देश के प्रधानमंत्री के नाम प्रेषित अपने ज्ञापन में रखी थी। विभिन्न सूचनाओं से ज्ञात हुआ है कि इस दिशा में कुछ सकारात्मक कार्रवाई की जा रही है। लेकिन हमारी मांग है कि ट्रेन के डिब्बों में बनाए जा रहे आइसोलेशन व क्वारेंटीन केन्द्र केवल फौरी तौर पर खानापूर्ति के लिए न बनाये जायें, बल्कि ट्रेनों में निर्मित होने वाले इन केन्द्रों में इलाज, भोजन, साफ़ पानी, साफ़ शौचालय जैसी तमाम मुलभूत सुविधायें भी उपलब्ध हो।
- किसानों के लिए मांगें:
I. रबी फसल कटाई में होने वाली तमाम दिक्कतों के लिए जिला-प्रसाशन द्वारा उचित प्रबंध किया जाए। साथ ही जल्द-से-जल्द न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके राज्य व केंद्र सरकार द्वारा अनाज खरीदने का काम शुरू किया जाए।
II. ऋण वापसी पर घोषित 3 महीने की रोक को 6 महीने तक के लिए विस्तारित किया जाए। इस अवधि के दौरान ब्याज पर भी रोक लगाई जाए।
III. मनरेगा योजना के तहत पंजीकृत सभी मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए।इसके लिए राज्य सरकारों को जरुरी अनुदान दिया जाए।
- शहरी मजदूरों के लिए मांगें:
I. घरेलू कामगारों के लिए जिला प्रशासन द्वारा सुनिश्चित किया जाए कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनका वेतन न काटा जाए व उन तक राहत सामग्री पहुंचायी जाये। - II. मंडियों में कार्यरत पल्लेदारों को मंडी समीतियों द्वारा उचित सुरक्षा साधन व महामारी भत्ता दिया जाए|
III. शहर में बंद के दौरान शहर की सफाई में लगे कामगारों, कूड़ा बीनने वालों को उचित सुरक्षा सामग्री मुहैया कराई जाए। उनके काम को अनिवार्य सेवा समझ कर उन्हें नियमित किया जाये और उन्हें महामारी भत्ता दिया जाये।
IV. किरायदारों के लिए इस पूरी अवधि तक के लिए किराया माफ़ किया जाए और इसके लिए सरकार द्वारा कानूनी कदम उठाते हुए अध्यादेश लाया जाए।
- बेघर लोगों को आवास, भोजन व अन्य राहत सामग्री मुहैया कर्रवाई जाये।
- लॉकडाउन के कारण अनेक छात्र अपने घर से दूर, देश के अलग-अलग शहरों में फंंसे हुए हैं। ऐसे छात्रों तक भी न्यूनतम मूल्य पर जरुरी राहत सामग्री पहुंचायी जाए।
- उत्तर-पूर्व के कामगार, छात्र जो देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं उनकी पहचान करके उन तक मुलभूत सुविधायेें पहुंचाई जाए। इस सम्बन्ध में जिला प्रशासन को आदेश दिए जाए।
- निशक्त आबादी को चिह्नित करके जिला प्रशासन उन्हें राहत सामग्री मुहैया कराए| जिला प्रशासन को विशेष आदेश दिए जाए।
- कोरोना के दौरान ऐसे वृद्ध लोग जो अकेले ही रह रहे हैं, उन तक सुरक्षा साधन, राशन, दवाइयां व अन्य जरूरी सामग्री पहुंचाई जाए।
- वन सामग्री बेचकर गुजर-बसर करने वाली जनजातियों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज लाया जाए।
- दूर-दराज के आदिवासियों के लिए समुचित प्रबंध किये जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि उन तक जरूरत की सामग्री पहुंच रही है। जिला अधिकारियों को इसके लिए विशेष आदेश दिए जाए।
- देश के उन इलाकों में जहां घुमंतू व पशुपालन से जीवन गुजारने वाले समूह रहते हैं, उनके लिए विशेष राहत पैकेज जाया जाए और जिला अधिकारियों को विशेष रूप से आदेश जारी किये जाए।
- लॉकडाउन के कारण नेशनल हाईवे या सड़कों पर फंसे ट्रक ड्राइवरों व हेल्परों तक भी जरुरी सुरक्षा उपकरण व राहत सामग्री पहुंचाई जाए।
- लॉकडाउन के दौरान देश में महिलाओं और छोटे बच्चों पर घरेलू हिंसा और यौन शोषण के मामले बढ़े हैं। ऐसे में हिंसा के शिकार बच्चों और महिलाओं की राहत के लिए जल्द-से-जल्द उचित कदम उठाये जाए। इस सम्बन्ध में सभी जनसंचार के माध्यमों से हेल्पलाइन नंबर प्रचारित किया जाए।
- लॉकडाउन के दौरान सामान की कमी न हो इसलिए आवश्यक खाद्य आपूर्ति को जारी रखा जाए व लॉकडाउन का फायदा उठाने वाले दुकानदारों, जमाखोरों, कालाबाजारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
- देश में जेलों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। लॉकडाउन के चलते कोर्ट बंद होने के कारण बहुत से छोटे अपराधों में आरोपी और राजनैतिक कैदी जेलों में बंद हैं। ऐसे में जब तक लॉकडाउन के चलते कोर्ट बंद रखे गए हैं तब तक के लिए इन आरोपियों को जमानत पर रिहा किया जाए।
- पुलिस के बर्बर दमन को रोका जाए व उन पुलिसकर्मियों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की जाए जो अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हुए गरीब-मजदूरों के दमन में संलिप्त रहे हैं।
- बिना किसी राजनैतिक वैमनस्य के राज्य सरकारों को उचित अनुदान दिया जाए।
- पीएम केयर रिलीफ फण्ड का ऑडिट किया जाए और जितना भी धन जमा और खर्च किया गया है उसे पीएम कार्यालय की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाए ताकि पारदर्शिता बनी रह सके।
- देश में कोरोना के नाम पर अन्धविश्वास, साम्प्रदायिकता व अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। इस बात का ध्यान दिया जाए कि बड़े-बड़े मीडिया चैनल अफवाहों को बढ़ाने व सांप्रदायिक उन्माद फैलाने में लगे हुए हैं। अंधविश्वास, साम्प्रदायिकता, अफवाह फैलाने वाले मीडिया चैनलों, संगठनों, व्यक्तियों पर तुरंत सख्त कार्यवाई की जाए।
क्रांतिकारी युवा संगठन, संघर्षशील महिला केंद्र, नॉर्थ-ईस्ट फोरम फॉर इंटरनेशनल सॉलिडेरिटी, मजदूर एकता केंद्र, ब्लाइंड वर्कर्स यूनियन, घरेलू कामगार यूनियन, सफाई कामगार यूनियन, घर बचाओ मोर्चा, दिल्ली मेट्रो कम्यूटर्स एसोसिएशन, आनंद पर्वत डेली हाकर्स एसोसिएशन, यूनाइटेड नर्सेज़ ऑफ इंडिया
(भारत के विभिन्न जन-संगठनों द्वारा संयुक्त रुप से जारी व दिनांक 16/04/2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित)