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कोरोना लॉकडाउन में, और उसके बाद प्रधानमंत्री से क्या माँग कर रहे हैं जन-संगठन!

शीर्षक: COVID19: आपदा से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव जिन पर प्रधानमंत्री को ध्यान देना चाहिए

भारत सरकार ने 14 अप्रैल को ख़त्म होने वाले लॉकडाउन की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया है। इस लॉकडाउन को लॉकडाउन 2.0 कहकर प्रचारित किया जा रहा है। वास्तव में यह देश की बड़ी जीवित गरीब आबादी के लिए भुखमरी-संकट 2.0 बन गया है।

यदि सरकार विदेश से आये लोगों की जांच गंभीरता से करती तो परिणाम इसके उलट होते

विदेशों से अमीर और अभिजात लोगों द्वारा लाये गए कोरोना का दुष्परिणाम आज देश का गरीब भुगत रहा है। सरकार अगर विदेशों से आये लगभग 15 लाख लोगों की हवाई अड्डों पर पहले ही ठीक से जांच करती और उन्हें आइसोलेशन में डालकर निगरानी पर रखती तो इन कुछ लोगों की गलतियों का परिणाम देश की 138 करोड़ जनता को नहीं भुगतना पड़ता।

लॉक डाउन की जल्दबाजी से मेहनतकश आबादी में भय का माहौल पनपा है

यानी केवल 0.1 प्रतिशत आबादी की गलती की सजा देश की 100 प्रतिशत आबादी भुगत रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 24 मार्च को केवल 4 घंटे की सूचना पर देश में लॉकडाउन लागू कर दिया। लॉकडाउन को जिस तरह जल्दबाजी में बिना पूरी तैयारी के जनता पर थोपा गया था।

उससे न केवल देश की गरीब मेहनतकश आबादी में भय का माहौल पैदा हुआ बल्कि उनके सामने जीवन और जीविका का सवाल भी खड़ा हो गया।

बदइंतजामी का परिणाम यह है कि मजदूर भूखे रहने को मजबूर हैं

लॉकडाउन के बाद से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बेरोजगार और बेघर हो गए हैं व भूखे रहने को मजबूर हैं। बेरोजगार, बेघर व गांव के लिए पैदल निकले मजदूरों को भीड़ भरे कैम्पों में ठूस दिया गया है।

कैम्पों में रहने, खाने, मेडिकल जांच की बदइंतजामी का परिणाम है कि यह मजदूर कोरोना का डर होने के बावजूद अपने गांव व अपने परिजनों के पास लौटना चाहते हैं।

घटिया सरकारी इन्तजामों के चलते देश में जगह-जगह खाने को लेकर दंगे भड़क रहे हैं; दिल्ली, सूरत, मुम्बई की घटनाएं मेहनतकश-मजदूरों की भुखमरी की हालत को बयां करती है।

जिनको हम नज़रंदाज़ कर रहें है, यही मेहनतकश लोग अर्थव्यवस्था की नींव है

सामाजिक रुप से पिछड़े और उत्पीड़ित समूहों से आने वाले यह बहुसंख्यक मेहनतकश ही देश की अर्थव्यवस्था की नींव हैं और देश को बनाने का काम करते हैं। लेकिन आज देश के भीतर ही देश के यह मेहनतकश बेहद बदहवासी की हालत में जी रहे है।

वास्तव में लॉकडाउन लागू होने के पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी और देश में मजदूर-किसानों का बुरा हाल था लेकिन लॉकडाउन के बाद तो अब पानी सिर तक चढ़ आया है।

जनता के संबंध में विभिन्न मांगें जिनका उठाया जाना बेहद जरूरी है

लॉकडाउन की शुरुआत से ही जन-संगठनों, बुद्धिजीवियों, अर्थशास्त्रियों और जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा जनता के संबंध में विभिन्न मांगें उठाई जाती रही हैं। इन मांगों को अपने इस मांगपत्र में शामिल करके एवं अन्य बेहद ज़रूरी मांगों को भी उठाते हुए हम आपको मांगों की एक विस्तृत सूची दे रहे हैं।

हम आशा करते हैं कि हमारी इन मांगों पर जल्द-से-जल्द कार्रवाई सुनिश्चित होगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्रांतिकारी युवा संगठन, संघर्षशील महिला केंद्र, नॉर्थ-ईस्ट फोरम फॉर इंटरनेशनल सॉलिडेरिटी, मजदूर एकता केंद्र, ब्लाइंड वर्कर्स यूनियन, घरेलू कामगार यूनियन, सफाई कामगार यूनियन, घर बचाओ मोर्चा, दिल्ली मेट्रो कम्यूटर्स एसोसिएशन, आनंद पर्वत डेली हाकर्स एसोसिएशन, यूनाइटेड नर्सेज़ ऑफ इंडिया
(भारत के विभिन्न जन-संगठनों द्वारा संयुक्त रुप से जारी व दिनांक 16/04/2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित)

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