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बाल मित्र समाज : कोरोना महामारी के दुष्परिणामों से बचेंगे हमारे बच्चे

कोरोना वायरस से फैली महामारी आज भारत समेत दुनिया भर के देशो के स्वास्थ्य और जीवनयापन के लिये बहुत बड़ी गंभीर चुनौती बनकर खड़ी है। अभी तक दुनिया भर के 185 से ज्यादा देशों के 27 लाख से ज्यादा लोग कोरोनोवायरस से संक्रमित हैं और 1 लाख 91 हज़ार से ज्यादा लोगो का जीवन यह महामारी लील चुकी है। भारत में भी कोरोना संक्रमित लोगो की संख्या तेजी से बढ़ रही है और यहां भी 23 हज़ार से अधिक मामले और 710 से ज्यादा मौत हुई हैं। भारत में पिछले 1 माह से स्वास्थ्य क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में चल रही समस्त मानवीय गतिविधियां पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं और देश में एपिडमिक डिजीज़ एक्ट,1897 के अंतर्गत पूर्ण रूप से लॉकडाउन लागू है ।इस वायरस के प्रसार को रोकने में जहाँ एक ओर लॉकडाउन एक बहुत प्रभावकारी उपाय साबित हो रहा है, वहीँ दूसरी ओर इस संकटकालीन दौर में बच्चों को शोषण,  घरेलू हिंसा और साइबर अपराधों का सामना आम दिनों से बहुत ज्यादा करना पड़ रहा है। इस महामारी के कारण बच्चो की असुरक्षा से सम्बंधित तत्कालीन प्रभाव जहाँ दिखने शुरू हो गए हैं वहीं दूरगामी प्रभाव बहुत ही चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं ।

बच्चो पर महामारी के कारण पड़ रहे तत्कालीन प्रभाव

भारत में लॉकडाउन के बाद संस्था चाइल्डलाइन को 11 दिनों में घरेलू हिंसा से जुड़े 92,000 से अधिक कॉल प्राप्त हुए। चाइल्ड लाइन को ही कर्नाटक राज्य में बाल विवाह से सम्बंधित कुल 37 कॉल (25 मार्च के बाद 2 सप्ताह के अंदर)  प्राप्त हुए | दक्षिण एशिया के सबसे बड़े बाल संरक्षण संगठनों में से एक, इण्डिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फण्ड  (ICPF) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि लॉकडाउन के बाद देश के बड़े शहरों में चाइल्ड पोर्न, और बच्चो के खिलाफ हिंसा या अत्याचार दिखाने वाली सामग्री की मांग बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ी है। बच्चो की शिक्षा, मानसिक व् शारीरिक स्वास्थ्य पर भी लॉकडाउन का असर देखा जा रहा है। सभी स्कूल बंद हैं। बच्चो का सारा समय घर पर बीत रहा है और बच्चों को वो आधारभूत शिक्षा नहीं मिल पा रही है जिससे उनका बौद्धिक विकास हो सके। घर में कैद होनेके कारण उनमे अवसाद बढ़ गया है और लॉक डाउन के दौरान समाज के अन्य लोगो से संपर्क न कर पाने की स्थिति में ज्यादातर बच्चे, सोशल नेटवर्किंग साइट्स व मोबाइल फोन का अत्यधिक प्रयोग करने लगे हैं। इससे इंटरनेट पर बच्‍चों को डराने, धमकाने या फुसलाने के मामलों में भी इजाफा हो रहा है ।  

बच्चो पर महामारी के दीर्घकालीन प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना महामारी से सम्बंधित अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस जनित महामारी की वजह से होने वाली वैश्विक मंदी के कारण चार से छह करोड़ बच्चे भीषण गरीबी की गर्त में जा सकते हैं और उनमें से लाखों की मौत हो सकती है। यह स्थिति इसी साल बन सकती है। यह सत्य है कि आखिरी तीन महीनों में दुनिया नाटकीय रूप से बदल गई है और विश्व की अर्थवयवस्था तेज़ी से गिरी है। भारत में दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन ने अधिकांश कारखानों और व्यवसायों को बंद कर दिया। डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन में 21 दिनों की अवधि के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के नुकसान की लागत 7-8 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है। ऐसे में स्पष्ट है, हज़ारो कारखाने बंद होंगे और लाखो लोग बेरोज़गार होने की कगार पर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2020 में रोज़गार दर 38.2 % के साथ सबसे निचले स्तर पर आ गई थी। किसानो की लिए खेती महंगी होगी। वैकल्पिक बाज़ारो की बढ़ोतरी हो सकती है। कोविद -19 के कारण उद्योगों के बंद होने से बड़ी संख्या में भारत के अनेक शहरों से गाँवों की तरफ मज़दूरों का पलायन हुआ है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी और कामगारों की अधिकता तथा प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण असंगठित क्षेत्र (दिहाड़ी, कृषि मज़दूर आदि) की मज़दूरी में कमी आई है। अब लोग क़र्ज़ के बोझ में दबेंगे । ऐसा होने से इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चो पर ही पड़ेगा। ज्यादा से ज्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित हो सकते हैं। बच्चे कम पैसे में मज़दूरी करते हैं, ऐसे में नुकसान से जूझ रहे ठेकेदार बाल मज़दूरों की मांग ज्यादा कर सकते हैं ।परिवार में बेरोज़गारी और भुखमरी से बचने के लिए ज्यादा से जायदा बच्चे बाल मज़दूरी व् भिक्षावृति जैसे कृत्यों में झोके जायेंगे। बच्चो के अवैध व्यापर का धंधा तेज़ी से फले फूलेगा व् उनके अपहरण के मामलो में बढ़ोतरी हो सकती है । बच्चो को वेश्यावृति जैसे घिनौने कर्मो में धकेलने और बाल विवाह जैसी घातक सामाजिक कुरीतियों की संख्या बढ़ सकती है ।

बाल मित्र समाज का करना होगा निर्माण

ऐसे स्थिति में बच्चो व् समाज के लिए घातक इन समस्याओं का समाधान सरकारें अकेले कभी नहीं कर सकेंगी। लॉकडाउन हटने के बाद सरकारें सबसे पहले महामारी फिर से न फैले, गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने, राजकोषीय घाटा कम करने, खाद्यान भण्डारण बढ़ाने, ऋण वसूलने आदि कार्यो पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी । ऐसे में बाल कल्याण सम्बंधित कार्य प्रमुख कार्यसूची में नहीं होंगे।

ऐसी स्थति में समाज व् सामाजिक संघठनो  को आगे आना होगा। इस महामारी का बच्चो पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को  बाल मित्र समाज बनाकर बहुत कम किया जा सकता है। एक ऐसा समाज जहां लोग बच्चो के हितो का चिंतन करें और उनके कल्याण के लिए सभी कदम प्रमुखता से उठाएं। देश में बड़ी संख्या में बाल मित्र ग्राम और बाल मित्र मंडलो का निर्माण करना होगा।

बाल मित्र ग्राम और मंडल की भूमिका 

बाल मित्र ग्राम (शहरी इलाको में मंडल) एक ऐसा गांव या क्षेत्र हैं, जहां बच्चो का किसी प्रकार से शोषण न हो, उन्हें पूर्ण रूप से शिक्षा मिले एवं जनजागरण एवं कल्याणकारी क्रियाकलापों द्वारा वहां के समुदाय को सशक्त बनाया जाये।

ऐसी ग्रामो/ मंडलो में सभी बाल श्रमिकों को काम से हटाया जाए, सभी बच्चों को स्कूल में दाखिला दिया जाए और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से बच्चो की बाल पंचायतों का गठन कराया जाये। यह सुनिश्चित किया जाये कि बाल पंचायतों को ग्राम पंचायतो द्वारा मान्यता दी जाये । तत्पश्चात दोनों पंचायत मिलकर गांव/मंडल के बच्चो और ग्राम/मंडल के हर संभव विकास के लिए कार्य करें।  

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के प्रयासों द्वारा निर्मित ये बाल मित्र ग्राम और दिल्ली में बाल मित्र मंडलो में गठित बाल पंचायत  लॉकडाउन के दौरान लगभग 72 हज़ार बच्चो के हितो की रक्षा के लिए बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सभी बच्चे अपने बड़े युवा भाई बहनो और माताओ के साथ लॉकडाउन की दौरान ये सुनिश्चित करते दिख रहे हैं कि उनके क्षेत्र में किसी बच्चे के साथ किसी प्रकार का शोषण न हो और कोई बच्चा और उसका परिवार भूखा न रहे ।बाल पंचायतो ने इस बात पर भी नज़र रखी हुई है कि कोई अनजान व्यक्ति लॉकडाउन के दौरान गाँवो में अनधिकृत प्रवेश न करे।  इसके अलावा महामारी गांव में न फैले व् लॉकडाउन का पूर्ण पालन हो, इसके लिए वे लगातार सभी ग्रामवासियों को जागरूक कर रहे हैं ।

लॉकडाउन के बाद ये बाल पंचायतें अपने सभी साथी बच्चो को साइबर अपराधों के विरुद्ध जागरूक करवाएंगी। बाल पंचायत अपने गाँवो की ग्राम पंचायत और वरिष्ठ लोगो के साथ मिलकर ये निश्चित करायेंगी कि उनके गांव का कोई भी बच्चा ट्रैफिकिंग का शिकार न हों । कोई भी बच्चा बाल मज़दूरी की चपेट में न आये व् प्रत्येक बच्चे (लॉक डाउन के दौरान दूसरे क्षेत्र से आये बच्चे भी ) का स्कूलों में दाखिला कराने का प्रबंध कराया जायेगा  । क्षेत्र में बाल अधिकारों से सम्बंधित विधिक जागरूकता शिविर लगवाए जायेंगे। बच्चो को पौष्टिक भोजन, उनके स्वास्थ्य की पूरी देखभाल, खेलने का सामान अवसर और सभी व्यक्तियों से पूर्ण सम्मान मिले ऐसा वातावरण के निर्माण करने के लिए समस्त ग्रामवासियों को जागरूक किया जायेगा । क्षेत्र के पात्र परिवारों को सरकारी योजनाओ का लाभ मिल पाए, इसके लिये स्थानीय सरकारो के साथ मिलकर कल्याणकारी कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे । 

ऐसे में सभी समाज के लोगो की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वे बाल मित्र समाज बनाने में अपना पूरा सहयोग दें और बच्चो की सुरक्षा, शिक्षा और सम्मान देना और दिलवाना अपना परम कर्तव्य समझें । अगर हम बाल मित्र समाज बनाने में समर्थ होते हैं तो ये मानवता के पक्ष में  एक सबसे बड़ा योगदान होगा और इसे मानव कल्याण के सन्दर्भ में विश्व की सबसे बड़ी जीत मानी जायेगा ।

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