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मानसिक ग़ुलामी के नुकसान

आज बात करेंगें हमलोग मानसिक ग़ुलामी के बारे में !
कल रात मेरी बात एक मेरे एक मित्र हो रही थी , बस इतना समझ लीजिए कि ज़िन्दगी के स्वर्णिम पलों में उनका और मेरा चोली-दामन का साथ था। एक उम्मीद और भरोसा हमारे दरम्यान भी थी , होनी भी चाहिये हर दोस्ती में , वरना भरोसे के बगैर कौन सा रिश्ता टिकता है। हालांकि ये अलग बात है कि आप जिनपर ज्यादा भरोसा किये हुए होते हैं वहीं आपको धोखा दे जाते हैं । ओशो ठीक ही कहते थे कि भरोसा मनुष्य के द्वारा इज़ाद किया गया अब तक का सबसे खतरनाक ड्रग्स है जिसे लेने के बाद निकम्मा और आलसी हो जाता है । मैनें भी उमीद की थी उनसे जातीय गर्व , सामंती सोच , आँखों पर अंधविश्वास की पट्टी , पूर्वाग्रह से बाहर निकलकर वैज्ञानिक परिकल्पना को स्थापित करने की , एक उम्मीद की किरण दिखाई दी थी उसमें हालांकि वो फुस्स निकली ! अपने मित्र के हाथों वैज्ञानिकता को ध्वस्त होते देख मेरी आँखें खुद को अंधा होने का असफल प्रयास करती रही , पर हाथ कुछ न लगा। मैनें समझाने का लाख प्रयत्न किया पर असफलता हाथ लगी । पर मैनें सोचा की जिसने आस्था के तराजू पर तौले गए सामग्री को खाकर अपना जीवन बिताया हो उसे वैज्ञानिकता के तराजू पर तौला गया वस्तु भला कैसे पसन्द आ सकता है । जो लोग मानसिक रूप से किसी व्यक्तित्व का , सत्ता का , विचार का , ग़ुलाम हो चुके होते हैं उन्हें आज़ाद कराना बड़ा मुश्किल होता है या यों कहें कि हिन्द महासागर को तैरकर पार करने के जैसा होता है ।
कितनी खतरनाक होती है मानसिकता की ग़ुलामी मुझे कल पता चला , इस ग़ुलामी ने हमारे रिश्ते को क्षत-विक्षत कर दिया ! पर अफ़सोस क्यों हो उन रिश्तों की जिनकी नींव इतनी कमज़ोर थी । प्रशसंक बनें हमे कोई ऐतराज नही है पर मानसिक ग़ुलामी आपकी व्यक्तित्व से मनुष्यता को निकाल बाहर कर आपमें पशुता का बोध डाल देती हैं ।

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