Site icon Youth Ki Awaaz

मेरी पीरियड्स की कहानी: सेहत और स्वच्छता

“कक्षा छह , सात और आठ की सभी छात्राओं को नीचे अपने स्कूल बैग के साथ हॉल में जाना है ” कक्षा अध्यापिका ने सबको ये संदेश दिया | बस इसी संदेश को सुनकर सारी कक्षा में एक खलबली सी मच गई  | आज से करीब तीस साल पहले विस्पर जैसी कम्पनी नई  – नई उत्पादन में आई थी और इसीलिये स्कूली छात्राओं को पीरियड का ज्ञान देने की उसने एक मुफ्त मुहिम चलाई थी  |
हम सभी हॉल में पहुँच गए थे | वहाँ पर आई कुछ शिक्षित महिलाओं ने पहले हम सबको नैपकिन के बारे में बताया और फिर एक किताब के साथ सबको दो – दो नैपकिन भी दिये | हम सबने अध्यापिका के निर्देशानुसार नैपकिन को अपने बैग में रखा और घर चले आये | मैं उस समय कक्षा आठ में पढ़ती थी और क्योंकि मुझे पीरियड नहीं होते थे इसलिये मैने उन्हे अपनी बड़ी बहन को दे दिया |
 
पीरियड आना आपकी उम्र के साथ – साथ आपके शारीरिक विकास पर भी निर्भर करता है | इसलिये ये ज़रूरी नहीं होता कि कक्षा छह से आठ के बीच में ही आपको पीरियड आयेगा | पहले तो मैं भी इस जानकारी के बाद एक गहन विचार में डूब गई परंतु अपनी माँ और बहन के समझाए जाने पर मेरा ध्यान फिर से पढ़ाई की ओर केंद्रित हुआ | अक्सर ऐसा होता है कि कक्षा में आपकी सहपाठी मित्र आपको इस बात को लेकर चिढ़ाने लगती हैं और आप निराश हो जाते हैं | आपको ये लगने लगता है कि कहीं आप मे कोई कमी तो नहीं | परंतु ये एक शरीर की स्वाभाविक क्रिया है जो समय के साथ खुद ही होने लगेगी  , इसलिये इसमे घबराने जैसी कोई बात नहीं |
पूरे दो साल के इंतजार के बाद कक्षा दस में जाकर मुझे पहली बार पीरियड का अनुभव हुआ | जानती तो मैं पहले से ही थी पर जानने और अनुभव करने में ज़मीन आसमान का अंतर होता है | मैं भी सारा दिन गुमसुम सी ही रही , ऊपर से मध्यवर्गीय परिवार से होने के कारण पैड का ज्ञान होने पर भी किसी ने मुझे पैड नहीं दिलाया और मुझे कपड़ा लगा कर ही उन तीन दिनो को गुजारना  पड़ा | सबसे ज्यादा घिन मुझे सुबह उस कपड़े को धोने में आती थी और फिर दोबारा जब उस कपड़े को लगाती तो वह इतना कैड़ा हो जाता कि चलते वक़्त मेरी जांघें उससे रगड़ खाती और बाद में जांघों पर ही घाव कर देती  |
धीरे – धीरे परिस्थितिओं की मुझे आदत होने लगी  | वक़्त बीता  … माँ को परेशानी समझ आने लगी और तब वो कैमिस्ट की दुकान से एक बड़ा सा रूई का बंडल ले आईं  | अब हम सब बहनें कपड़े में रूई लगाकर उसे पहनते थे जो मुलायम होने के साथ – साथ जल्दी गंदा भी नहीं होता था और इस तरह से हमने कपड़ा धोना भी छोड़ दिया  |
कुछ समय बाद पैड बनाने वाली कम्पनियों ने अपने दाम गिरा दिये और तब हमने भी पैड खरीदने शुरू कर दिये | अब तो सरकार बहुत ही कम दामों पर पैड उपलब्ध करवा रही है  इसलिये आप सभी लड़कियाँ सेहत और स्वच्छता की दृष्टि से उन्ही का उपयोग करें तो ज्यादा बेहतर होगा |
हमेशा याद रखें कि इस दौरान जितना हम स्वच्छ रहेंगें उतना ही बीमारियाँ हमसे दूर भागेंगी और हम राष्ट्र निर्माण में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगे |

 

Exit mobile version