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मैं दूरदर्शन और नास्टैल्जिया

कोरोना वैसे तो भयावह बीमारी है लेकिन भारत जैसे सपेरों के देश (अरे वही उन चन्द चूतियों की नज़रों में जो आज बिलबिला रहें है) में यह नहीं फ़ैल पाया। सरकार ने व्यापक प्रयास किये तो मांग उठी कि भैया घर बैठ के का करिहिं तो हमारे जैसे नाइनटीज और इस सदी के प्रारंभ वाले लौंडे लफाड़ों ने बोला कि बैठे है तो रामायण और महाभारत ही दिखा दो। अंधे को क्या चाहिए दो आंखे, वैसे ही सरकार- उसको क्या दिक्कत हो सकती थी इस बेहूदी सी मांग (खबीश पत्रकार के मुताबिक, वही जो गांजा मारकर भारत में मार्क्स की बात करते हैं सुना है मैग्सेसे भी ले आये हैं) से तुरंत मान ली गयी।

रामायण के शुरू और ख़त्म होने के बीच में महाभारत भी है । समय वही इतवार के 12 बजे शक्तिमान वाला और शाम 7 बजे डीडी उत्तर प्रदेश के उर्दू समाचार का । जब गाँव में था तो साईकिल के रिम का एंटीना हुआ करता था। अक्सर ठीक टाइम पर ही उसके सिग्नल चले जाया करते थे या फिर भैया के किसी रोमांटिक पिक्चर (मि. इंडिया) या घोर राष्ट्रवादी ‘इंडियन’ जैसी फिल्मों के कारण बैटरी चली जाया करती थी।  मुझे याद है कि कई बार बैटरी डिस्चार्ज होने के कारण पडोसी के यहाँ से भी डिस्चार्ज बैटरी उठाकर लाते थे और दोनों बैटरी मिलाकर ब्लैक एंड वाइट टीवी, वो भी तेरह इंची के आधे परदे पर बड़े प्यार से देखा करते थे। कई बार होता था कि सुबह पेट दर्द (जो अभी FIR वाली चाची को है) इसलिए होता था कि शनिवार का 11 बजे का जूनियर जी देखने को मिल जाये।  

ये तो रही पुरानी बातें नई चीजें जो अभी सीखने को मिल रही है उसमें भीष्म एक बड़ा नाम है।  जिन्हें हमने मात्र एक साइड कैरेक्टर समझ के छोड़ दिया था अब उनका त्याग समझ आ रहा है। उनकी प्रतिज्ञा अभी समझ आती है कि भीष्म क्यूँ थी? हम यशोदा की कितनी बात करते हैं लेकिन नन्द की नहीं। नन्द जी का अपनी बेटी को दे देना आज के समय में संभव नहीं दिखता अभी अगर कुछ दिखता है तो बेटे की चाहत में पागल घूमते लोग। वही रामायण में आज के मनुवाद (उन्ही के मुताबिक जो बोलते ज्यादा दिखते कम है) को देखें तो क्षत्रिय (राम) केवट के पैर छु रहा था। कितना बड़ा अपराध किया न उस क्षत्रिय ने? भगवान राम दशरथ को मर जाने देते तो उनका क्या बिगड़ता? उनको तो गद्दी मिलना तय था, पिता का वचन उनका तो नहीं था !        

इन दोनों धारावाहिकों में सबसे अच्छी बात इनके महिला पात्रों की है। महाभारत में सत्यवती वह लड़की जिसने अपने कुल के लिए सभी का ध्यान रखा या यह भी कह सकते हैं कि महिला होने के बाद भी वह कुरु वंश की शासक थी, गांधारी जिसने खुद वर को चुना था।  कुंती जिसने दूसरी लड़की को स्वीकार करने के साथ ही बहन माना। सुभद्रा का अर्जुन के साथ प्रेम, हिडिम्बा का भीम के साथ गान्धर्व विवाह।  

रामायण में कैकई का त्याग, सीता का वन जाने का निर्णय- लिब्रान्डूओं और हाथ में *** पकड के नाचने वाली रेडिकल फेमिनिस्टों ये निर्णय उनका स्वयं का था, मंदोदरी का धर्म के लिए रावण को उपदेश, सुलोचना का पति धर्म …..!!!!! यह सब सीखने की बातें है जो कहीं दिखाई नहीं देती।  समाज की सबसे छोटी परन्तु संगठित इकाई परिवार ख़त्म हो चुकी है।  इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो हम जिस विश्वगुरु राष्ट्र की कल्पना करते है वह ख़त्म हो जाएगी।    

 
 
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