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राजनीतिक घोषणा और ज़मीनी हक़ीकत महामारी द्वंद में असहाय किसान.

एक कहावत है ‘गांव बसा नहीं, कि मंगते पहले आ गए” यानी फसल कटाई हुई नहीं, एक नई समस्या और पैदा हो गई. पौराणिक कहावत का असर केवल शेखचिल्ली घोषणाओं के सहारे सरकार की तरफ कोरोना महामारी राहत से ना उम्मीद खाली हाथ किसानों की आंखों में स्पष्ट देखी जा सकती है. कहावत फिट बैठती है हरियाणा सरकार ने किसानों के फरमान पर जिसे जारी करते हुए कहा है कि प्रत्येक किसान प्रति क्विंटल अनाज में से 5 किलोग्राम अनाज सरकार को दान दे.

80 बिलियन टन सुरक्षित खाद्यान्न भारतीय खाद्य निगम (FCI) पर्याप्त मात्रा में होने के बावजूद सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की विशेष श्रेणी में राशन वितरण के फैसला वापस लेने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के मुंह से रबी फसल खरीद में 1-5 किलोग्राम प्रति क्विंटल प्रति किसान तक मंडी में कटौती आह्वान खेल का दाव किसानों के गले नहीं उतरा.

एक आकलन के अनुसार 5 एकड़ प्रति किसान के अनाज की कटौती जिसका की बाजारी भाव में 1800 रुपए है. लगभग 16 लाख किसानों से गुणात्मक रूप देने पर यह राशि 850 करोड़ से ऊपर हो सकती है जो किसान का सीधा सीधा नुकसान संभावित . किसान को आशा थी कि फसल का उचित दाम मिलेगा लेकिन इसके विपरीत न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे खरीद को बिचौलियों के हाथों में छोड़ते दिया है . कृषि लागत और मूल्य आयोग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य के बिना वर्तमान खरीदी की वजह से किसानों को 2500 करोड़ का सीधा नुकसान पहुंच रहा है. 26 देशों के कृषि वाणिज्य आंकलन संगठन आंकड़ों में भारत ने अपने पिछले 17 सालों में किसानों से 45 लाख करोड़ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे खरीद, आयात निर्यात प्रतिबंध एवं अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण लूटने दिया है. वापसी के नाम पर 0.45 प्रतिशत मदद जारी की है जोकि अमेरिका ब्राजील चीन की 10 प्रतिशत लगभग की तुलना में सबसे नीचे है. संकट काल में विश्व स्वास्थ्य प्राकृतिक संकट को फसल बीमा संकट में शामिल नहीं कर किसान को वेंटिलेटर पर छोड़ा गया है. सब्जी,फल,फूल, दूध छोटे समय तक  सुरक्षित उत्पाद को प्राकृतिक आपदा में छूट के कारण विशेष मुआवजा से वंचित देश के किसान को 600 करोड़ का सीधा नुकसान किसान को पहुंचा है.

फ्रेशहैटर एक्वल्चर के सेंट्रल इंस्टीट्यूट के संरक्षक पी.चंगेल रेड्डी ने प्रधानमंत्री को सरकारी माध्यम से राहत मूल्य के साथ-साथ फल सब्जी वितरण की व्यवाहरिक मांग की. लेकीन राष्ट्र के नाम संबोधन पर प्रधानसेवक इस पर मौन रहना बड़ा निंदनीय है. देश के 61 प्रतिशत रोजगार कृषि में रोजगार, 50 प्रतिशत देश की आबादी कृषि आधारित गतिविधियों पर निर्भरता के बावजूद इस वर्ग के प्रति व्यक्ति आय में मात्र 0.57 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है जबकि अन्य  गतिविधियों में 7.2 प्रतिशत बढ़ोतरी है. यही कारण है कि  पिछले 8 वर्षों में गरीबी ग्राफ में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

पीएम किसान योजना के नाम पर 16 लाख 18 हज़ार प्रदेश के राजस्व रिकार्ड धारक किसानों को 303 करोड रुपए पूर्व संचालित योजना रिलीज फंड 2000 रुपए अप्रैल के किस्त जारी कर 3000 करोड़ से ज्यादा की चपत कहां तक न्यायसंगत है?

भागीदारी काश्तकार 45% कार्य शक्ति वर्ग को योजनाओं के लाभ देने के लिए अलग से रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था से पल्ला झाड़ कर किसानों को विभाजित रखकर राजनैतिक दल लगातार शोषण कर रहे हैं. बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की दोहरी मार से पहले से वेंटिलेटर पर लेटे किसान को राहत की ऑक्सीजन रोककर अंतिम विकल्प के रूप में अंगदान की अपील हरियाणा सरकार की शोषणकारी सोच को सवत: उजागर करने के लिए काफी है.

OECD विश्लेषण के अनुसार चीन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए जिसने स्मार्टसिटी, बुलेट ट्रेन जैसे कॉर्पोरेट आधारित अर्थव्यवस्था से बचते हुए कृषि को आधार बनाकर खेती किसान की मदद के लिए प्रतिवर्ष 17 लाख करोड़ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजनाएं लागू की. परिणामस्वरूप 18 वर्षों में जितना गरीबी को काबू नहीं कर पाया चीन ने वही आंकड़ा कृषि में निवेश एवं निर्माण प्रौद्योगिकी निवेश मंत्र के साथ मात्र 4 साल में हासिल किया.

गन्ना किसान की समस्याएं भी कम नहीं है. वर्तमान में गन्ने का बकाया भी 25 हजार करोड़ को पार कर गया है. अब राहत तो छोड़िए, हम किसान की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण राहत मॉडल से भटकते हुए उधार भी चुकता नहीं कर रहे हैं. अब हालात ऐसे हैं कि खरीफ की फसल के लिए किसानों के पास आवश्यक पूंजी का अभाव है.

जहां एक तरफ कृषि में अपार चुनौतियां हैं वहीं पर संभावनाएं की कमी भी नहीं हैं. कृषि के तैयार उत्पाद के लिए आवश्यक मार्केट खरीद व्यवस्था सरकार की वरीयता होनी चाहिए. सस्ती बिजली सिंचाई और विकसित बीज किसी भी आधारभूत कृषि अर्थव्यवस्था को उठाने के लिए आवश्यक हैं. लेकिन चिंताजनक बात है कि तीन घटकों में से प्रदेश सरकार तीनों  ही देने में विफल रही. अब जरूरत यह थी कि प्राइवेट सेक्टर को मंडियों में स्टॉकिस्ट के तौर पर उतार कर सरकारी माध्यम से फल सब्जी दूध उत्पाद की सप्लाई चैन जीवित रखी जाती.

देश में कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ का काम कर रही है, जीडीपी में कृषि की भागीदारी 27%, कृषि के माध्यम से रोजगार 61%,  खाद्यान्न निर्यात से उत्पन्न निधि 22%, लगभग 27% कृषि आधारित पशु पालन व अन्य पोल्ट्री गतिविधियों में है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में भुखमरी से बचाने के लिए गारंटी देने वाले किसान के साथ संकट में सरकार नहीं खड़ी है. मेडिकल ,पुलिस और सफाई के बाद संक्रमण से लड़ने में अग्रणी किसान की उपेक्षा का आकलन तय है क्योंकि इतिहास किसी को माफ नहीं करता. इस विकट संकट की घड़ी में मात्र 30% कटाई बड़ी मशीन जैसे कंबाईन,रीपर आदि पर निर्भर है. अंतरराज्य स्वतंत्र यातायात को अवरुद्ध करना,तकनीकी अनुमति बाधाएं, ड्राइवर का सत्यापन, सैनिटाइजर खर्च के बारे में अस्पष्ट आदेश के कारण कटाई अभी लंबित है. इन परिस्थितियों का विकल्प तलाशते हुए 36 कौम भाईचारे ने मिसाल कायम करते हुए परस्पर “डंगवारा साझेदारी” आधार पर सहयोग करते हुए कटाई को अंजाम देना भाजपा के ध्रुवीकरण राजनीति के शिकार परदेस में सामाजिक प्रबंधन देखना सुखद दृश्य है.

लॉकडाउन मे श्रमिक पलायन समस्या, आवागमन प्रतिबंध, 11.2 करोड़ लोगों की अनुबंधित नौकरियों पर सीधी चोट के कारण ग्रामीण स्तर पर भूमिहर श्रमिकों की लगातार मांग पर हरियाणा सरकार ने मनरेगा स्कीम को कटाई भंडारण ढुलाई और मंडी प्रबंधन में आवश्यक श्रमिकों को भले ही सांकेतिक ऐलान में शामिल करने से अल्पकाल रोजगार की उम्मीद जगी है. लेकिन मनरेगा केंद्र के अधीन स्कीम होने के कारण बिना केंद्र की अनुमति के हरियाणा सरकार ने नोटिफिकेशन के अभाव में भविष्य में फंड वितरण के समय बड़ी समस्या को आमंत्रण दिया है.

लोक लुभावने दाने-दाने खरीद के दावे की राजनीति घोषणा पर अविलंब बिना शर्त, ग्रामीण स्तर पर बिना रजिस्ट्रेशन आधार पर संपूर्ण खरीद की माइक्रोमैनेजमेंट अभाव में वर्तमान कार्यशैली और रोडमैप की कमी से धरातल पर उतरते ही दम तोड़ती दिख रही है. ब्राउन रिवॉल्यूशन लक्ष्य से काफी दूर बिना हैं. हमें चीन से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसने स्मार्ट सिटी बुलेट ट्रेन कॉर्पोरेट मॉडल को दरकिनार कर प्रारंभिक दौर में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में निवेश को प्राथमिकता के साथ मैन्युफैक्चरिंग निर्यात को आधार बनाकर अपने राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को सर्वोच्च स्थान तक पहुंचाया.

चीन ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को प्रमोट कर बड़े निर्यातक के तौर पर विश्व के बाजार पर कब्जा किया. लेकिन  इसके विपरीत भारत ने आधारभूत कृषि अर्थव्यवस्था में निवेश के साथ आवश्यक मार्केट प्रबंधन, कृषि हितकारी आयात निर्यात और विदेशी अनुबंधों के प्रभाव से बचा कर नहीं रख पाए. कृषि नीतियों के उद्देश्य से हम भटक गए हैं . रिकॉर्ड उत्पादक होते हुए हम किसान के लिए बाजार उपलब्ध नहीं करा पाए. लोकडाउन में लगभग 20% तक बेरोजगारी और भूखमरी समाधान के रूप में संभालने वाला कृषि क्षेत्र ही है.

हरियाणा सरकार अभी भ्रामक नीति पर चल रही है. सरसों की फसल खरीद के लिए तयशुदा 15 अप्रैल से ठीक 2 दिन पहले सीएम ने लॉकडाउन में आवागमन पर लगी पाबंदीयो के बावजूद फसल रजिस्ट्रेशन का विकल्प सांकेतिक, आव्यवहारिक, असंभव भद्दा प्रस्ताव रखा है. मुख्यमंत्री के हाथों में अभी तक रजिस्टर्ड फसल धारकों के लिस्ट के आधार पर पिछले वर्ष की तुलना में चौथाई किसान आंकड़ों के साथ फसल खरीदने में कोई आर्थिक एवं प्रबंधन का दबाव नहीं रहेगा.

सरसों की खरीद को राज्य के तेल संयंत्रों के लिए आवश्यक मात्रा के उद्देश्य पूर्ति के लिए व्यावसायिक फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से बाहर निकालकर भावांतर स्कीम के तहत प्रति एकड़ 6 क्विंटल राइडर लगाकर खरीदारी में भी सरकार पर कोई जोखिम नहीं है. केवल मात्र प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से किसानों की मेहनत का दाना दाना खरीद उचित दरों का पारितोषिक किसी पेड़ की ऊंची डाल पर बैठे हुक्मरान के हाथों पेड़ की कठिन चढ़ाई कर हासिल करने के समान है.

सरकार ने बड़ी चतुराई के साथ तीन चरणों में खरीद कार्यक्रम विभाजित कर पहले 5 दिन सरसों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को ,गेहूं की खरीद 20 अप्रैल से शुरुआत के, बाद अंतिम चरण के उपरांत स्थगित कर दिया है. अनिश्चितकालीन लोकडाउन के कारण प्राइवेट हाथों में फसल लूटने का अपरोक्ष अनुमति कटौती के अधिकार के साथ बिचौलियों को फसल की लूट की इजाजत दी है.

राज्यों के पास खरीद एजेंसियों को तय करने की स्वायत्तता अधिकार का दुरुपयोग कर रजिस्टर्ड किसान के खातों में नहीं बल्कि बिचौलियों के खातों में खरीद राशि डालने की व्यवस्था की गई है. इसके बावजूद सकता के साथ कदमताल करने वाले आढ़तियों की जमात 3 मई महीने तक प्रधान सेवक की देशबंध घोषणा से पहले ही हड़ताल पर चली गई है. वर्तमान समय में यूनियनिस्ट दादा छोटू राम युग के दौरान बाजार के हाथों किसान को विवश करने का इतिहास हरियाणा सरकार दोहरा रही है.

दलित वर्ग को राहत की सच्चाई सिक्के के दूसरे पहलू को देखें तो 19.45 रुपए प्रति क्विंटल किसान से खरीद कर प्रस्तावित कटौती के बाद लागत मूल्य 18.45 रुपए उत्पाद को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विभिन्न श्रेणियों में 24.50 रुपए प्रति किलो वितरण कर स्वयं व्यापारी के रूप में नजर आ रही है. इस जनविरोधी कदम का भूमि बचाओ संघर्ष समिति, भारतीय किसान यूनियन आदि किसान संगठन प्रतिनिधियों ने लोक डाउन में सरकार के गलत मंशा पर लोकतांत्रिक ढंग से बहिष्कार कर विरोध दर्ज करा चुके हैं. लेकिन विपक्ष की चुप्पी के कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में घोषणा एकाक्षी साबित हो रही है.

किसानों का गौरव में इतिहास रहा है जी देश में सभी गौशाला,धर्मशाला, वृद्ध आश्रम एवं संस्थागत धर्मार्थ स्थलों पर स्वेच्छा से बढ़ चढ़कर अन्नदान एवं पशु चारा की पारंपरिक परंपरा का निर्वाह होता रहा है. यहां तक कि खाने के समय गाय एवं आश्रित पालतू प्राणियों के लिए प्रथम निवाला निकालना हो या शादी सगाई हवन धार्मिक अनुष्ठान दौरान पैसे का दान यहां तक कि खाप द्वारा सामाजिक समरसता सुरक्षा में दंड के प्रावधान के रूप में धर्मा संस्थानों में अनुदान के आदेश पालना होती रही है. पलायन के दौरान श्रमिकों को ग्रामीण क्षेत्र पर सांझी रसोई के माध्यम से खाना खिलाना हो या ठीकरी पहरा किसानों ने स्वयं जिम्मेदारी संभाली है.

सरकार मानती है कि किसान ने राष्ट्र निर्माण में खेल,सेना पुलिस और अन्य सुरक्षा में किसान पुत्रों का योगदान किसी से छिपा नहीं है.लेकिन प्रधानसेवक द्वारा MPLAD फंड को महामारी के योगदान का अनुपालन , हरियाणा सरकार द्वारा पांच करोड़ प्रति विधायक के विवेकाधिकार MLALAD फंड दान, मंत्रिमंडल के भते  में कटौती इत्यादि की कोई घोषणा भी नहीं हुई, जबकि यह फंड जनता द्वारा जुटाया धन है. इसके विपरीत लॉक डाउन में चुपके से खट्टर ने अपने सभी विधायकों के भत्ते दोगुना कर दिए.

उपमुख्यमंत्री ने दो कदम आगे बढ़ते हुए शराब के व्यवसाय अपने रिश्तेदार की शराब की बिक्री के लिए तंत्र पर दबाव बनाकर आदेश जारी कर दिए. भाजपा हाईकमान की कृपया दृष्टि से मात्र 3 महीने अस्तित्व में आई जेजेपी पार्टी सुप्रीमो की विधायक माता नैना चौटाला ने जींद में हरी चुनरी चौपाल कार्यक्रम से 50% आबादी महिलाओं के वोट बैंक को साधते हुए ग्रामीण क्षेत्र में पूर्णता शराबबंदी का प्रण लिया था. ग्रामसभा सशक्तिकरण के माध्यम से 900 ग्राम पंचायतों के प्रस्ताव नए वित्तवर्ष की आबकारी नीति को जानबूझकर लंबित कर रद्दी की टोकरी में डाल दिए गए.पीपीई (PPE) किट के बाद सबसे आवश्यक भुखमरी से लड़ने का हथियार अन्न सुरक्षा को ताक पर रखते हुए दुष्यंत ने रिश्तेदार के व्यवसाय की सुरक्षा को प्राथमिकी देकर शराब बिक्री खोलने की और अग्रसर है.

भाजपा के सबसे सुरक्षित वोट बैंक मंदिर धार्मिक ट्रस्ट, सभी राजनीतिक दलों की अपार संपत्तियां, नेताओं की बिना घोषित आय तीनों मदौ से पिछड़े दलित समाज के लिए योगदान का कोई सीधा संबंध स्थापित नहीं हुआ. दुग्ध उत्पादक के रूप में विश्व में सर्वश्रेष्ठ भारत सप्लाई चैन बरकरार रखने में भी नाकाम रहा है. आंकड़ों की कलाबाजी दिखाकर हाथ की सफाई में निपुण राजनेता उसी डाली को काट रहे हैं जिस प्रदेश की सुरक्षा टिकी है.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) वितरण के नाम पर कई दशकों से पिछड़ों के वोट बैंक को राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए रूपांतरण प्रक्रिया के लिए आवश्यक खाद्यान्न उत्पाद को सही मूल्य देना तो दूर की बात, उत्पादक को अन्नदाता, चौधरी साहब, राव साहब जैसे विशेषण से नवाज मंडियों में खड़ा कर जेब खाली कराई जा रही है. पीएम केयर के नाम पर फंड में पारदर्शिता के अभाव में संख्या पर सवालों के जवाब मांगने के लिए पत्रकारों को प्रतिबंधित किया जा रहा है. महामारी रोकथाम हेतु आवश्यक स्क्रीनिंग और टेस्टिंग की व्यवस्थागत के साथ किसान की उपज व्यवस्था पर सही आंकड़ों प्रदर्शित करने की वजह अलग से मीटिंग जैसे टालमटोल जवाब देखे जा रहे हैं.

हाल ही में जिला सिरसा के गांव डिंग किसान देवीलाल जो सरसों की खेती करते थे, की साथ अन्य थ्रेसर दुर्घटना में मौत, पश्चिमी यूपी में बांदा जिला के रामभवन शुक्ला (52)पहले मसूर की फसल बर्बाद के बाद गेहूं की कटाई के लिए मजदूर नहीं मिलने पर बर्बादी से आहत किसान की आत्महत्या, करनाल से सही लागत नहीं निकलने की गलत कृषि नीति से आहत पर किसान की आत्महत्या हम सभी की आत्माओं को हिलाने के लिए काफी है. पूर्व शासन काल के दौरान वर्तमान के मुख्यमंत्री ने भारतीय किसान यूनियन को सैनिक सहित की तर्ज पर किसान आत्महत्या एवं दुर्घटना पर 50 लाख अनुग्रहित राशि जारी करने के लिए लिखित आश्वासन दिया. लेकिन सत्ता वापसी करते मुख्यमंत्री सब भूल गए.

हाल ही में आंध्रप्रदेश राज्य में किसान आत्महत्या ऊपर संजीदगी दिखाते हुए पहले आंकड़े दुरुस्त कर उपायुक्तों के माध्यम से नीति तय कर सहयोग अनुग्रहित राशि आवंटन कर अनूठी पहल की है, जिसे अन्य प्रदेशों में लागू करना आज समय की मांग बन गई है क्योंकि कटाई में जुटे श्रमिकों का मेडिकल इंश्योरेंस नहीं होता.

वर्तमान में गन्ने की ऊधार बकाया है जिसका आँकड़ा 25000 करोड़ पार कर गया है . डीबीटी (DBT) के रूप में 10000 प्रति एकड़ प्रत्येक सीज़न पर सरकार से सीधी मदद की मांग किसान संगठन उठाते रहे हैं. इसके विपरीत किसान के उत्पादन काम के बदले अनाज को राजनीतिक हथियार बनाकर केंद्र सरकार महामारी संकट प्रबंधन कर रही है जबकि उत्पादक को कोई राहत नहीं है.

चीन, अमेरिका ब्राजील जैसे विकसित देश अपने किसानों को सकल घरेलू उत्पाद कर 10 से लेकर 20 प्रतिशत किसानों को मदद जारी करता है जबकि भारत ने आधा प्रतिशत मदद दी है. नतीजे कृषि आय दोगुनी करने के लिए आवश्यक 10% से ज्यादा कृषि विकास दर 4% से पर अटकी हुई है. समय पर खेती किसानी समस्या का हल नहीं निकला तो महामारी से ज्यादा भुखमरी खतरनाक होगी. कैसी विड़बना है कि किसान को गन्ने का भाव नहीं मिला रहा लेकिन गन्ने से इथेनॉल और इथेनॉल से बना सैनिटाइजर राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए बड़े हथियार के रूप में घर घर में उपयोग हो रहा है.

वर्तमान हालात में मंडियों, कटाई भंडारण के लिए आवश्यक श्रमिक ना होने की वजह से श्रमिकों को दोगुनी राशि देनी पड़ रही है. सरकार द्वारा ना ही लागत मूल्य मिल रहा है और ना ही जमीनी स्तर पर कोई मदद मिल रही जिसका परिणाम यह है कि वित्तीय संकट से किसान गुजर रहा है. काश्तकार किसान को 50000 तक वार्षिक अनुबंध साहूकार से उठाई गई पूंजी लागत मूल्य के अभाव में नहीं चुकाने की सूरत में स्थिति और विकट हो गई है. समय पर खेती किसानी समस्या का हल और आर्थिक पैकेज नहीं मिलने से बीमारी से ज्यादा मौतें व्यवस्था और भुखमरी में होने की संभावना है.

एकमुश्त 24000 की राशि के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के साथ बोनस व्यवस्था लोकडाउन के बाद किसान के हाथ में छोटी पूंजी देश की अर्थव्यवस्था में भागीदार बंद कर सीधा योगदान करने की स्थिति में होगी. सरकारी खरीद से पहले प्राइवेट खरीद के रूप में खाद्यान्न के भंडारों पर कालाबाजारी और सप्लाई चैन गड़बड़आने से महंगाई की मार प्रत्येक नागरिक पर पड़नी लाजमी है. बड़ी संख्या में श्रमिक पलायन से उत्पन्न बेरोजगारी की विकट समस्या केवल खेती व्यवसाय में अल्पकाल रोजगार के रूप में विकल्प भुखमरी से देश को बचाएगा. कृषि आधारित अन्य गतिविधि प्रेरक घटक होंगे.

काश्तकार किसान और आश्रित श्रमिक की फसल खरीद के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए ताकि 84% लघु व मध्यमवर्ग किसान जीवित रहे. पहले ही आधी आबादी कृषि गतिविधियों में लगे लोगों की आय में मात्र आधा प्रतिशत ही बढ़ोतरी की जिम्मेदारी सीधे तौर पर सरकार लेने से पीछे हट रही है.जबकि, चीन द्वारा अपने किसानों को 17 लाख करोड रुपए मदद की तुलना में भारत में (0.47)सीधा खेती में निवेश भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित होने के कारण आवश्यकता है. हम कब तक देश को भुखमरी से बचाने के साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली का बोझ अकेले किसान के कंधों पर डालते रहेंगे.

क्या सरकार इस सामूहिक जिम्मेदारी में संकट के समय अपना कोई दायित्व पूरा नहीं करेगी? क्या विपक्ष शोषण के अगले भविष्य घटनाक्रम चक्र के इंतजार में अब मौन चुप्पी साधे रखेगी? ज्यादा उत्पाद को निर्यात सरल नीति क्या केंद्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है? सिंचाई की सुविधा प्रत्येक खेत तक उपलब्ध कराकर आवश्यकता के अनुसार अलग से कृषि बजट में बुवाई से पहले लागत मूल्य तय करने का समय क्या अभी तक नहीं आया है? कब किसान लागत के अनुसार अपने उत्पाद की कीमत स्वयं तय कर सकेगा? किसान की उपेक्षा संकट के समय राष्ट्र के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है? राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री की किसानों के नाम राहत पर चुप्पी काफी बड़े सवाल खड़े कर रही है? किसान बचेगा देश बचेगा- किसान अपनी पकी फसल लेकर दरवाजे पर खड़ा है, पहल सरकार की तरफ से होनी है.

 

शमशेर सिंह- यह लेख लेखक के निजी विचार है

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