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राष्ट्रीय महामारी संकट में राहत अनुदान से क्यों वंचित रहा अन्नदाता.

केंद्रीय वित्तमंत्री सीतारमन द्वारा कोरोना वायरस वैश्विक संकट के दौरान लोकडाउन में राष्ट्र को भुखमरी एवं खाद्यान्न सुरक्षा रक्षक बनकर पटल पर उभरे अन्नदाता आर्थिक पैकेज राहत से वंचित रह गए. खाद्यान्न एवं फल सब्जी उत्पाद सप्लाई चैन की सुरक्षा में जुटा तमाम सरकारीतंत्र इस आपातकाल में किसान के नाम पर राहत एलान की अनुपालना में आवश्यक सप्लाईचैन की सुरक्षा करने में क्यों नाकाम रह गया? किसी संकट में किसानों को राहत के जमीनी हकीकत दावों के विपरीत भयावक एवं भ्रमित करने वाले सांकेतिक प्रयास बन के रह गए.

 

P-2) भूमि बचाओ संघर्ष समिति ने एक विश्लेषण में पाया कि 56% काश्तकार किसान व कृषि आश्रित मजदूर बड़ा वर्ग आवश्यक रजिस्ट्रेशन वे राज्य सरकारों द्वारा स्पष्ट दिशानिर्देशों के अभाव में अभी तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, बेमौसम फसल क्षतिपूर्ति मुआवजा और अन्य फसल बीमा योजना के वांछित आपातकालीन व्यवस्था की सभी आर्थिक राहत से कोसों दूर रहा. NCRB आंकड़ों के अनुसार समय पर सरकारी अनुदान व योजनाओं से वंचित काश्तकार किसानों की आत्महत्या कुल किसान आत्महत्याओ के देश में आंकड़ों का 65% तक है. बाकी अकाल, पलायन, घटता कृषिक्षेत्र, अन्य परिस्थितिजनक कारक है. प्रधानमंत्री सम्मान योजना के अप्रैल माह में पूर्व निर्धारित प्रस्तावित 2000 रुपये की किस्त समय पर जारीकर विशेष राहत पैकेट का नाम देना किसानों के नाम पर सुनियोजित धोखा है. जबकि इस समय संकट से निपटने के लिए 24000 रुपये वार्षिक एकमुश्त भुगतान राहत देने के साथ अर्थव्यवस्था मंदी से उबारने वाले अर्थशास्त्रियों द्वारा सुझाव पर युक्ति संगत प्रयोग से सरकार दोबारा चूक गई.

 

न्यूजलॉन्ड्री द्वारा जारी विशेष रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया कि प्रधानमंत्री सम्मान योजना की तीसरी किस्त तकनीकी अज्ञात कारणों के छटनी होने के कारण केवल प्रथम चरण में रजिस्टर्ड किसानों के 22% वर्ग तक ही पहुंच पाई. तदेरूपेण, इस वित्तीय वर्ष की प्रथम किस्त तथाकथित प्रचारित राहत राशि बी बैंकिंग व्यवस्था ठप और लॉकडाउन के कारण निकासी बाधा के कारण अंतिम छोर तक पहुंच नहीं पाना दुर्भाग्यपूर्ण रहा. विभिन्न किसान संगठनों ने तेलंगाना, केरल और आंध्र-प्रदेश सहित कई राज्यों द्वारा विस्तृत व्यापक किसान कल्याणकारी  योजनाओं की रिपोर्ट अध्ययन उपरांत सीधे खेत को सब्सिडी के सफल प्रयोग मॉडल को राष्ट्रस्तर पर लागू करने की मांग उठी. दिल्ली में अखिल भारतीय किसान सम्मेलन समिति द्वारा एकत्रित प्रदर्शन की शक्ल में किसानों को आर्थिक आजादी की लड़ाई में प्रबल मांग पर बजट में गुणा भाग प्रभाव का आकलन करते हुए आंदोलित देश के किसान 50% वोट बैंक को साधते हुए भाजपा ने लोकसभा चुनाव आचार संहिता के ठीक पहले ‘एक वोट एक नोट’ विकल्पयोजना के तौरपर लागू कर प्रचार-प्रसार की कमान स्वयं प्रधानसेवक ने अपनी लोकप्रियता छवि को  भुनाने में संभाली. गौरतलब रहे कि पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने चुनाव पूर्व घोषणा पत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के वायदे में बड़ी चतुराई एवं पूर्वग्रह के साथ C-2 श्रम एवं कृषियंत्र खर्चा लागत आकलन को हटाकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष शपथ पत्र के माध्यम से रिपोर्ट लागू करने की असमर्थता के कलंक को धोते हुए समकक्ष लाभ जारी संदेश को प्रचारित करने में बड़े नेताओं को झोंक दिया जबकि इसके बाद विभिन्न तीन उच्च न्यायालय पीठ ने अपने आदेशों में समर्थन मूल्य लागू करने के निर्देशों पर हवाला देते हुए सरकार को पुनः निर्देशित भी किया. एलपीए 1988/13 पंजाब कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाम राज्य पंजाब फैसले में माननीय खंडपीठ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोबारा से लागत मूल्य से हुए किसानों को आर्थिक नुकसान की व्यापक समीक्षा की. इसके बावजूद संविधान में अनुच्छेद 48 में कृषि को सामूहिक जीवन यापन गतिविधि के रूप में कल्याणकारी योजनाओं के साथ विकसित करने के प्रावधान की सुरक्षा भी किसी लोकतंत्र सरकार ने नहीं की.

 

3) अब फसल कटाई के समय मजदूर पलायन की विकट समस्या के कारण गैर बैंकिंग स्रोत से ऋण उठाकर काश्तकार खेती निवेश में लागत मूल्य तक निकालने के लिए घोर संकट पनप रहे हैं. कृषि उपज मंडी समिति के सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि केंद्र द्वारा समर्थन घोषित मूल्य से काफी नीचे रवि की फसलें नीलाम हो रही है. गेहूं MSP से 250 रुपये प्रति क्विंटल सरसों 700 से 900 रुपये कपास, 1100 से 1200 रुपये सोयाबीन और 500 से 800 रुपए चना इत्यादि उत्पाद से काफी नीचे भाव की वजह मजबूर किसान भाव में फेंकने को मजबूर है.

 

कुछ दिन पहले इंटर्नेट पर वायरल नासिक के बामेर गांव के किसान नारायण एकनाथ जाधव ने पहले बेमौसम से प्रभावित अंगूर की खेती को बाजार में लागत भाव नहीं मिलने से अपनी ही बगीचे को रोते हुए उजाड़ने की वायरल वीडियो हृदयविदारक है. कुछ इसी तरह ही करनाल में सड़कों पर टमाटर फेंका गया. किसी के समानांतर दूध उत्पाद की खरीद में लोक डाउन के कारण अचानक आवक कमी, मिलावटी दूध की उपलब्धता के कारण दूध को नदी में बहते हुए वायरल वीडियो से हालात की गंभीरता स्वयं उजागर हो रही है. NCR मैं 20 हजार से 50 हजार वार्षिक  सिंचाई सुविधा अनुसार भागीदारी अनुबंधित किराया चुकाने की जिम्मेदारी पर सभी राज्यों द्वारा लागत मूल्य खरीद सुनिश्चित की घोषणा में रणनीतिक देरी एवं खरीद निर्देशों के अभाव में किसान की समस्या को दयनीय रूप दे दिया है. गेहूं व सरसों की उत्तरी भारत में कटाई के लिए तैयार फसलें के खरीद से बचते हुए पंजाब एवं हरियाणा सरकार द्वारा देरी से खरीद ऐलान एवं तीन चरणों में केंद्र से अनुमति किसान का दिल दहलाने वाली है. खुद खाली पेट चींटी से हाथी तक का पेट पालक किसान सरकार की गलत कृषि नीतियों के कारण तबाही की कगार पर खड़ा है.

 

कितनी विषम परिस्थितियों में भी हरियाणा के किसान नेतृत्व द्वारा ग्रामीण स्तर पर पलायन श्रमिकों के लिए भुखमरी रोकथाम उपाय में सांझी रसोई आयोजन किसान की राष्ट्र योगदान में अग्रणी भूमिका दर्शाता है. 3/5 भारत के भू भाग पर 85% छोटे एवं मझोले बौ-जोत किसानों द्वारा 45% कृषि क्षेत्र में खाद्यान्न सुरक्षा गारंटी के काश्तकार खेती आज भी मुख्य घटक है. अमेरिका जर्मनी ब्राजील जैसे विकसित देशों की तुलना में भारत के किसानों को उनका 3% भी सब्सिडी देने में भारत असमर्थ है जबकि WTO मैं अनावश्यक प्रतिबंधों पर पैरवी करने में मोदी सरकार नाकाम रही है.

 

आजादी के बाद से जमींदार अनमूलन कानून में कृषि उत्पाद का चौथे हिस्सा से ज्यादा बटाईदार खेती निषेध है. भूमिहीन किसान में छोटा किसान अपनी मालिका छोटी खेती के साथ बड़े भूमि मालिक राजस्व रिकॉर्ड धारक के साथ जुबानी करार के साथ देश के किसी तंत्र को आगे बढ़ा रहा है. इसका इनाम गुणात्मक लाभ से आर्थिक बजट प्रभाव आंकलन करते हुए किसान विरोधी सरकारे भूमि रिकॉर्ड धारक किसान को ही केंद्र में रखकर वोट बैंक की राजनीति के चलते सभी योजनाओं के प्रारूप तैयार करती है. लाभ रिकॉर्ड धारक के हिस्से में आता है जबकि संभावित नुकसान काश्तकार किसानों को अन्य रोजगार के विकल्प नहीं होने के कारण उनके भाग्य की चोट बन गया है. जो कि कृषि से पलायन का मुख्य कारण एवं तीन लाख से ज्यादा प्रतिवर्ष किसान आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़े के अनुकूल परिस्थिति जनक घटक है. आर्थिक लाभ के स्रोत फल-सब्जी फूड प्रोसेसिंग में 100% एफडीआई मंजूरी, गन्ना मिलों का राष्ट्रीय स्तर पर प्राइवेट हाथों में प्रबंध और खाद्यान्न प्रोसेसिंग भंडारण चेन जैसे सभी निकाय के किसान हाथों में होने के कारण आर्थिक उत्थान के अवसरों से छूकर बाजारी ताकतों का शिकार किसान हो रहा है. ग्रामीण सत्र पर बीज बैंक फसल चक्र मांग अनुरूप खेती विकसित करने में कृषि संस्थानों की भूमिका नगण्य है. जबकि खेती में लागत मूल्य बढ़ोतरी कीटनाशक खाद आदि कंपनियों के इशारे पर कृषि विशेषज्ञ बढ़ावा देकर खेती के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान भी जमीनी स्तर पर उपलब्ध कराने में सफल है.

 

इस ऐतिहासिक विकट समस्या के निदान हेतु नीति आयोग के निष्कर्ष पर मॉडल लैंड लीज एक्ट 2016 जोर शोर से पारित हुआ. कृषि विकास कार्य खेती प्रबंधन राज्य सरकारों की विषय वस्तु संविधान में उल्लेखित होने के कारण केंद्रीयकृत कानून में काश्तकार खेती व किसान को कल्याणकारी एवं योजनाओं के सीधे लाभ पहुंचाने के लिए आवश्यक संशोधन की छूट के प्रावधान के साथ मांग भी उठते रहे. लेकिन मात्र 3 राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आंशिक सुधार को छोड़कर किसी भी राज्य ने ज्वलंत समस्या के हल के लिए आज तक ने कोई कार्य योजना नए कोई पॉलिसी अथवा संशोधन के रूप में कोई आवश्यक कदम उठाए. जबकि संपूर्ण कर्ज माफी एवं सुलभ ऋण की राजनीतिक नारे मांग के साथ विपक्षी राजनीतिक पार्टियां सत्ता में वापसी के तुरंत बाद अपना पल्ला झाड़ लेती हैं. औद्योगिक एवं कॉर्पोरेट को NPA के रूप में आजादी के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ सभी पार्टियों ने शीर्षासन कर सीमा रेखा से बाहर जाकर पक्षपात पूर्ण मदद की है जबकि तुलनात्मक रूप से कृषि को उद्योग का दर्जा भी नहीं दे पाए. छोटे-छोटे ऋण की अदायगी में किसानों की जमीन की कुर्की वह सामाजिक सुरक्षा दांव पर लगाई गई. लीज कानून व भूमि प्रबंधन कानून सुधार प्रक्रिया के विरुद्ध दमनकारी कृषि सरकारों ने केंद्रीय काश्तकार विदेशी कानून का प्रचार-प्रसार भी ठीक ढंग से नहीं किया. नतीजा यह रहा कि आज भी ज्यादातर भू मालिक 3 वर्ष से 15 वर्ष तक काश्त खेती अनुबंधों के स्वयं निरस्त होने के व्यवस्था के साथ उनके भू मालिक कानूनी सुरक्षा मानकों व प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं और न हीसरकारी आदेशों में उनके मालिकाना हक की गारंटी राज्य सरकार सुनिश्चित कर पाई. नतीजा इसके मूल कारणवश खेती केवल मौखिक करार से आगे नहीं बढ़ रही है. राज्य सरकारों को फसल रजिस्ट्रेशन में सभी योजनाओं में नामांकन प्रक्रिया में खासकर किसानों के लिए सुलभ व्यवस्था ऑनलाइन जुटानी होगी वह जोर शोर से प्रचार अत्यंत आवश्यक है. महामारी संकट निबटने में काश्त अनुबंधित राशि 50000 रुपये प्रति एकड़ तक सरकार द्वारा स्वयं वहन कर एमएसपी दरो पर खरीद के साथ 500 रुपये प्रति क्विंटल बोनस की एकमात्र समाधान है.

 

 अनेक राज्यों में भू-सागरीय चक्रवात प्रभाव से बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि क्षतिपूर्ति मौजों का समय-समय पर ऐलान तो हुआ, लेकिन खातों में राशि नहीं डाली गई. ग्रामीण स्तर पर कृषि उत्पाद खरीद सोशल डिस्टेंस फार्मूला , छोटे किसान के लिए मदद के साथ संक्रमण रोकने के लिए कारगर उपाय साबित हो सकती है.

 

लेकिन दिल्ली में सभी प्रेस वार्ताओं के दौरान पत्रकारों द्वारा किसान उत्पाद लागत मूल्य पर खरीद व्यवस्था के प्रश्नों के जवाब में अलग से मीटिंग के बाद ही कोई फैसले का झूठा आश्वासन टालमटोल देश के लिए आत्मघाती कदम साबित होगा. एमएसपी से नीचे खरीदी कृषि उत्पाद खाद्यान्नों को सार्वजनिक वितरन प्रणाली एवं महामारी रोकथाम में जीवन चक्र आवश्यक आधारभूत राहत सामग्री वितरण में राज्य सरकारों में होड़ लगी हुई है लेकिन किसी भी राज्य सरकार ने लाभकारी समर्थन मूल्य पर बोनस खरीद के लिए ग्रामीण ब्लॉक स्तर पर माइक्रो मैनेजमेंट के लिए कोई मीटिंग नहीं बुलाकर किसान विरोधी चेहरे ही उजागर किए हैं.

इसके साथ ही सरकारी राजस्व रिकॉर्ड किसानों को उनके मालिकाना हक को कोई लीज एक्ट 2016 के तहत सुरक्षा की गारंटी के साथ प्रोत्साहन करने में विफल रही हैं. राजस्व एवं कृषि तंत्र द्वारा फसल गिरदावरी आंकड़ों के बावजूद किसान के पाले में गेंद फेंकते हुए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के नाम पर छटनी और संपूर्ण खरीद में तुगलकी शर्तें लगाकर कूटनीति अपने अन्नदाता किसान के विरुद्ध जाल बुन रही है. सरकारी खरीद पूरी नहीं होने तक प्राइवेट खरीद पर रोक नहीं लगाने से लोकडाउन खुलते ही अन्य देशों की तरह भारत में भी मंडियों में अनावश्यक भाव की आम जनता पर दोहरी मार पड़ना स्वाभाविक है. नोटिफिकेशन के माध्यम से राज्य सरकारें काश्तकार किसान वे आश्रित मजदूरों को आर्थिक लाभ का रास्ता खोल सकती है जो कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में अभी तक नहीं देखा जा रहा है. असंगठित कृषि क्षेत्र, राजनीतिक पोषण पर पलता छद्म नेतृत्व, नितिन अर्दांत में शून्य भागीदारी  एवं राजनीतिक पार्टियों की ताकत के सामने वोट बैंक के रूप में अपने मुद्दे के साथ खड़ा न होना किसान के लिए आत्मघाती साबित हो रहा है.

 अब देखना है मोदी जी क्या किसान के वंचित बड़े वर्ग के लिए उनकी जेब और दिल दोनों खाली हैं या नहीं. वर्तमान में अन्य सेक्टरों की तुलना में राहत राशि आवंटन घोषणाओं से तो नहीं लगता कि अन्नदाता को कुछ राहत मिलेगी. फिलहाल काश्तकार किसान एवं आश्रित मजदूर वर्ग सरकार की वरीयता क्रम में दूर तक नहीं दिखाई पड़ रहा है.

 

इस लेख को लिखा गया है डा. शमशेर सिंह द्वारा

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