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लॉक डाउन में दरकते रिश्तों की कहानी

क्या कहीं कुछ बचा है या सब कुरेद चुके हो ?

मैंने जहां जहां से तुमको छुआ था, क्या वो हर जगह कुरेद ली है? दिल में छिपी यादों को कुरेद लिया है क्या? इस नीचे वाले होंठ को? चंगु मंगु को? मेरे होंठो ने जहां जहां से तुम्हे चूमा है हर उस जगह को?

इतना कुरेदना कि कोई निशानी नहीं रहनी चाहिए

मेरी हर उस सिहरन को, जो तुम्हारे पास आते ही पूरे शरीर को हिला के रख देती थी? क्या उन छोटे छोटे खर्राटों को कुरेद लिया है, जो तुम्हारी नींदें उड़ा दिया करते थे? उस गिलास को तो कुरेद लिया ही होगा, जिसमें साथ-साथ पापा की व्हिस्की चुरा के पी है। उस रेड वेलवेट केक को तो पक्का कुरेद लिया होगा, जो हर साल एक खास तारीख को बिन बुलाए आ जाया करता था। उन सारे झूठ को भी कुरेदा होगा, जो अचानक से बोल लिए थे बिना सोचे समझे।

रातों के उन आंसुओं को भी कुरेदा होगा ना जो तुम्हारे दूर रहने पर तकिए गीले करते थे? बड़ी तालाब के किनारे की उस मिट्टी को, कार की सीट, दर्जनों होटलों के कमरे सब कुरेद लिया होगा। साथ-साथ एक घर में बिताए उन महीनों को भी पक्का कुरेद चुके होंगे।

कुरेदते-कुरेदते थक नहीं गए तुम? अरे अभी तो इतना कुछ पड़ा है कुरेदने को, जल्दी करो भाई, वक़्त बहुत कम है और काम बहुत पड़ा है। कुछ मत छोड़ना। सब काम अच्छे से करना, देखो कुरेदने के बाद निशानी नहीं छूटनी चाहिए।

कहानी एक मित्र की

ये अनुभव परसों एक साथी ने साझा किये, जिसका 05 साल का रिश्ता एक रात पहले रात ख़त्म हो गया। खुद के ही जनाज़े की बात करते हुए शायद वह डिप्रेशन की उस स्थिति में आ गया था कि उसे तत्काल संभालना ज़रूरी हो गया था। उसने आगे कुछ इस तरह लिखा,

“कौन मरा है, किसकी अर्थी जा रही है, कौन रो रहा है, मरने वाले का कोई अजीज होगा। सिसकियों से तो कोई खास ही लगता है। ये जो दूर से देख रहे है, इन्होंने मारा है? खंजर कहां है? सबूत तो लाओ। ऐसे ही हर किसी पर इल्ज़ाम देना अच्छी बात नहीं।” 

तन्हाई में मरना तो खुदगर्ज़ी हुई

इस एक के अलावा कोई और रोने वाला तक नहीं? अकेला होगा बेचारा। ज़िन्दगी में दोस्त खूब बनाए होंगे पर देखो तो कोई रोने तक नहीं आया। खबर नहीं पहुंची होगी मरने की। बताया नहीं होगा। इतनी तन्हाई में मरना तो खुदगर्ज़ी हुई। कम से कम कुछ चहेतों को तो बता देते। ये एक रो रहा है, ऐसे तो दुनिया फिकरे कसेगी। रोने वाले पर भी और मरने वाले पर भी।

ये रोने वाला भी आखिर कब तक मातम मनाएगा। कुछ दिनों में ये भी फिर से दुनियादारी में उलझ जाएगा। जो मरा है,उसे भूल जाएगा। क्या यही सच है? मरने वाले से इसका यही गहरा रिश्ता था?

ओह ये तो तुम खुद ही मरे हो। ये जो रो रहा है, वो तो तुम्हारी खुद की आत्मा है, सजीव सी आत्मा। अरे हां ,ये तो तुम खुद मरे हो। बेचारे,बदनसीब कहीं के।

ओवरथिंकिंग भारी पड़ रही रिश्तों पर 

अब तक यही मजमून था कि लॉकडाउन में साथ साथ रहने से रिश्तों को मजबूतियां मिल रही है, परन्तु किस्सों-सिक्कों के और भी पहलू होते हैं। अधिकांश लोगों ने इस दौर में रिश्तों को तोलना शुरू कर दिया तो कुछ लोगों ने “ओवर थिंकिंग” करते करते रिश्तें ही बिगाड़ लिए। ऐसे दर्जनों किस्से सामने आ रहे हैं जब ‘डिस्टेंस रिलेशनशिप’ पर ‘सोशल डिस्टेंटिंग’ भारी पड़ रही है।

आख़िर वह बिन बताये फुकेट की यात्रा पर क्यों चला गया?

जिस प्यार में ‘डिफ़रेंस’ प्यारे थे, वहां अब डिफ़रेंस ही भारी पड़ रहे हैं। हर वीकेंड में जयपुर- बंगलौर के ट्रेवल के बंद होने से एक रिश्ते में जहां यादों को कुरेदने की बात हो रही है और तमाम तरह की कड़वाहटें रिश्ते के दरम्यान आ चुकी है तो जयपुर की ही एक महिला साथी बस इस बात से परेशान है कि उसका मंगेतर बिन बताये ‘फुकेट’ की यात्रा पर गया क्यों था? अब उसके क्वारेंटाईन होने भर से महिला साथी पर तमाम नेगेटिव सोच हावी होने लगी है।

आख़िर मैं क्या करता? इसलिए मैंने चुप्पी का रास्ता अपनाया

पड़ोस की ही एक बहू की परेशानी उसकी कामकाजी सास है, जो पिछले 15 दिनों से घर पर ही है। रोज़ एक अलग ही नया काम छेडकर वह बहू को “वर्क फ्रॉम होम” करने नहीं दे रही। बेटा दिल्ली में फंसा हुआ है और बहू रोज़ पैदा हो रहे घरेलू काम काज और न करने पर पड़ने वाले तानों से तंग आकर तय कर चुकी है कि भविष्य में वह सासू मां के साथ आगे रहने का सोच भी नहीं सकती। बेटा उलझ सा गया है कि आखिर वह किसका साथ दे, विधवा मां का या बीवी का। वह चुप रहकर ही संतुष्ट है।

एक अरसे से साथ रह रहे रिश्ते में भी दरार आख़िर पड़ ही गयी

पिछले एक साल से लिव-इन में रह रहे रोहन- मोनिका भी इस लॉक डाउन से आज़िज आ चुके है। पहले तो ये होता था कि रोज़ सुबह-शाम साथ रहते और वीकेंड शोपिंग-फिल्मों में बीत जाता। जब 10 दिन से दोनों 24 घंटे साथ रहने लगे तो दोनों को एक दूसरे में तमाम कमियां नज़र आने लगी। अब परिवार का कोई बड़ा तो था नहीं साथ, जो इनकी नोक झोंक को लड़ाई तक पहुंचने से पहले रोक सके।

हालात ये है कि एक ही घर में रहते हुए भी दोनों तीन दिन से एक दूसरे से बात नहीं कर रहे। मोनिका तय कर चुकी है कि लॉक डाउन खुलते ही वह किसी और घर में अलग शिफ्ट हो जायेगी।

इन लॉक डाउन के दिनों में पिता-पुत्र के बदलते रिश्ते

अपनी गर्मी की छुट्टियों को अपने अंदाज़ में बिताने का मन बना चुके एक बेटे का पापा का रोज़ यूं घर रहना खल रहा है। पापा उसकी निजी ज़िन्दगी में तांक झांक जो करने लग गए हैं। उसे लॉक डाउन से खुन्नस आने लग गयी है। न अपनी पसंद की सिरीज़ देख पाता है और न ही फोन पर कुछ कर पा रहा है। रोज़ सुबह लॉन की सफाई अलग से एक मुसीबत बन कर सर पर बैठ गयी है और रोज़ सुबह शाम रामायण- महाभारत ने अलग दिमाग ख़राब कर रखा है।

एकल दुनिया और लॉकडाउन : क्या डिज़र्व करते हैं हम?

यकीनी तौर पर अपने आप में ही खुश रहने वाली इस “एकल” दुनिया के लिए ये लॉक डाउन काफी भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। शुरूआती मौज मस्ती के गीतों की जगह अब उदासी भरे नगमों ने ले ली है।

एक दिल टूटा आशिक लिखता है,“कार से उसका लगाया वो लकी चार्म उतार लिया है। ये उतना ही पुराना था, जितनी कि कार। गणपति भी हटा लिए है। वो पिलो,जिस पर रोते हुए भालू का चित्र बना है। कमरे से बीयर मग, वो नीला जैकेट, चाईनीज कॉलर की सफेद शर्ट, यहां तक कि लद्दाख का वो स्लीपिंग बैग भी,पोलैंड से आया फेसवॉश तक सब हटा लिए है। फोन से सारे फोटो डिलीट कर दिए है। फेस बुक का वो प्रोफ़ाइल फोटो भी, जिसमें पिछले कई महीनों  से हम साथ साथ चिपके हुए थे। सब कुछ हटा लिया है।”

जो नहीं हटा पा रहा, वो उसकी लाखो करोड़ों यादें है। पिछले पांच सालों की अनगनित लड़ाइयां, किस्से, ट्रिप कैसे डिलीट करूं ये सब?

कैसे हटा लूं ज़ेहन से उन लाखों लम्हों को जिसने मुझे “मैं” बनाया है। खुद के वजूद को डिलीट कैसे किया जाता है,प्लीज़ कोई बताओ।

लोग कहते है, मैं मुश्किल स्थितियों में भाग जाता हूं। लो इस बार मैं यहीं थमा हूं। जो भाग गया है,उसे कैसे बुलाते है,अरे कोई तो सुझाओ।

“तुम बैटर डिजर्व करते हो” खुद को गिरा कर मुझे यूं क्यूं छोड़ के जा रहे हो। मैं क्या ये डिजर्व करता हूं?

प्लीज़ मत जाओ। मत जाओ ना प्लीज़ 

मैं मर जाऊंगा यार मत जाओ….

बहरहाल हम सभी के लिए इस नाजुक दौर में हर एक रिश्ते को सहेजना बहुत ज़रूरी है। अपनों से बात कीजिये- उनके करीब रहिये पर इतने भी करीब मत जाइए कि नजदीकियां रिश्तों का दम घोंटने लगे।

 

 

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