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विभीषिका के दौर मे

विभीषिका के दौर मे

आज की कविता
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जब विभीषिका आती है अपने डैन पसारे
तो सबसे पहले वे सचेत होते हैं आने वाली
स्वर्णिम सुबह के कराल भविष्य के गर्त में |

अनंतकालीन युगों,मन्वन्तरों से सतत चली आ रही,
सृष्टि की इस सर्वहारा प्रक्रिया में हम उन्हें मजदूर कहते हैं
जो कि इस भूभाग पर विद्यमान सर्वहारा प्रक्रिया के पहरुआ हैं |

एक श्लथ
रक्तविहीन,पीले फूल सा मुरझाया हुआ
आदमकद चेहरा,
सपनों की गिरह में गिरफ्त,

दो पाताल जैसी गहरी आंखें
धसे हुए कपोल
मांसलविहीन दो भुजायें
रक्तविहीन हड्डियों के ढांचे के
सहारे रक्तरंजित दो डगमगाती
सूखी लकड़ियों के समान पैर |

जब विभीषिका करती है अपनी क्रूर चोंच से सृष्टि में भूख का विभाजन,
तो सर्वप्रथम सर्वहारा प्रक्रिया के पहरुआ पर पड़ती है
भूख के चाबुक की गहरी मार,
जिसके सुर्ख निशान उनकी पाताल जैसी गहरी आंखों के सफेद धरातल पर दिखाई पड़ते हैं |

इस दुःखदायी संसार से, अनगिनत पीड़ाओं से
भूख का चाबुक खाकर, करुणा की ताड़ना सहकर
कभी एक पंछी के जैसे मृत्यु के डरावने बहेलिये के जाल से भागने को |

वे चल पड़ते हैं शहरों से
दिन के निर्मम प्रकाश के स्याह अंधेरे में
अपने परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ को झुके हुए कंधों पर ढोते हुए
अपने गांव दुआर की ओर |

धूप जल रही है दांय दांय
हवा चल रही है सांय सांय
देह सुलग रही है क्षण क्षण
लोबान के जैसे,
आत्मा जल रही है नियति
की चिता पर धांय धांय |

वे चल रहे हैं नंगे पैर
भूख को अपने पेट से बांध,
अपने पैरों के छालों को अपने संघर्ष की लकीरों में छिपाये
हाड़ मांस के रक्तविहीन हड्डियों के
ढांचे के अज्ञेय दुःखों से मुक्ति के
लिए अपने गर्भगृह की ओर |

ठीक जैसे कोई नदी
अपने उदगम स्थल से
निकलकर चल पड़ती है
उस अनंत महाशून्य में समाने के लिए |

पगडंडियां चमक उठी हैं
उनके मेहनत के पसीने की
असंख्य नन्ही नन्ही बूँदों से,
चिरकाल से गहरी निंद्रा में
सो रहे रास्ते अब जग पड़े हैं
उनके संघर्ष की महानगाथा
के चश्मदीद गवाह बनने को |

वे चल रहे हैं
समय के गर्त में अंतर्वलित
प्रश्नों पर हो सवार
मानवता के वक्ष स्थल पर
अपने पदचिन्ह बनाते हुए
जिससे आने वाली पीढ़ियां
पढ़ें अपने पुरखों का इतिहास
और
करें सवाल देश के संविधान से
” क्या विभीषिकाओं के समय
लोकतंत्र मृत्युशैया पर पड़ा
अपनी दम तोड़ देता है ? |”

संघर्ष उस महाशून्य को
मजदूर का दण्डवत प्रणाम,
करबद्ध निवदेन है
मजदूर, लोकतंत्र को मृत्यु के
अंतिम क्षणों की अंजुलिबद्ध पुष्पांजलि है |

बाबा ©

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