दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ; तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंजीरों के.” कार्ल मार्क्स की यह पंक्ति आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। जब दुनिया के मजदूर पूंजीवाद की गिरफ्त में पिसे जा रहे थे तब मार्क्स दुनिया को एक अलग रास्ता दिखाने के कार्य में जुटे थे। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें एक खास वर्ग यानी मालिक वर्ग के हाथों में सत्ता रहती है, साथ ही यह भी कहा कि पूंजीवाद एक दिन समूची दुनिया को अपने आग़ोश में समा लेगी। दरअसल मार्क्स दुनिया के उस तबके की बात कर रहे थे जो आजतक कभी पूंजीवाद से उबर नहीं पाया।
पूंजीपतियों ने पंद्रहवीं सदी से 18 वीं सदी के बीच में मजदूरों का इस प्रकार से शोषण किया कि वे एक खास मालिक वर्ग के गुलाम होकर रह गए थे। यहां से पूंजीवाद का विकास होना शुरू हुआ। उस समय की सरकारें भी पूंजीपतियों का भरपूर सहयोग कर रहीं थी और समुद्री व्यापार को बढ़ावा भी दिया जा रहा था। इसी समय एक ऐसी घटना घटी या कहें कि शक्तिचालित भाप से चलने वाली मशीनों का अविष्कार हुआ जिसने पूंजीवाद को पंख लगा दिए। अब पूंजीपतियों ने मजदूर वर्ग को लालच देना शुरू कर दिया जैसे मुफ्त घर, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि। लेकिन इसके एवज में मजदूरों की जान तक चली जाती थी। 1854 के आस-पास मार्क्स के इतिहास में कैपिटल शब्द के साथ इज़्म शब्द का प्रयोग होता है तब मार्क्स ने पूंजीवाद को अपने तरीके से समझना शुरू किया और दुनिया के सामने अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि पूंजीवाद दुनिया को किस तरह से अपनी आगोश में समा लेगा। इससे ब्रिटेन के मजदूरों में थोड़ा साहस आया और वे अपनी बदहाल जिंदगी से उबरने की दिशा में सोचने लगे।
पूंजीवादी शोषण के कारण दुनिया के मजदूरों में भयानक असंतोष फैला गया तो, ब्रिटेन ने 1896 में फैक्टरी कानून बनाया जिसमें यह बताया गया कि एक मजदूर को एक एक दिन में सिर्फ 8 घण्टे ही काम करना है। मजदूरों ने संघर्ष और शहादत के बदौलत अपने संगठित संघर्ष से यह हक हासिल किया था। उसी संघर्ष की याद में यह मजदूर दिवस या मई दिवस मनाया जाता है।
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सुधीर कुमार
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