Site icon Youth Ki Awaaz

सुहाने लड़कपन में बड़ी जिम्मेदारी

हम सभी को आज भी अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को खुशियों के साथ जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। लेकिन ये बचपन ही है, जिसमे न कोई जिम्मेदारी होती है और नाहि दुनियादारी की फिक्र।

बचपन पर भारी पेट भरने की जिम्मेदारी..
मगर आज इस वैश्विक महामारी कोरोना ने उन सभी मासूमों से ये बचप भी छीन लिया है जो गरीबी की मार झेल रहें हैं।
 आज जहा लोग इस लॉक डाउन में घरों में कैद है, उसके बाद भी ये बच्चें दो जून की रोटी के लिए लकड़ी ढोते दिख रहें है। हर कोई अपने स्तर से एक दूसरे की मदद को आगे आ रहें हैं। लेकिन इसके बाद भी ये बच्चे हर रोज अपने परिवार का पेट भरने के लिए गली गली लकड़ियां बीनकर लातें है। सायद इनके बचपन पर भूख की आग भारी पड़ रही है।
तोतली व भोली भाषा में जब इन्होंने अपने घर के हालातों को बयान किया कि हम ये काम हर दिन करतें है, तो मन सहम गया,कलम रुक गई।

क्या है बचपन
बचपन का दूसरा नाम नटखटपन ही होता है। शोर व उधम मचाते, बच्चे सबको अच्छे लगते हैं। ये देख कर हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद आती है। बचपन मे मिलकर घरोंदा बना कर खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना तो कभी मिट्टी खाना, बाहर निकल कर खेलते रहना किसे याद नहीं? इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार खाना किसे याद नही।
इन शैतानीयों भरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तकनीकी विकास चलते आज का बचपन स्मार्टफोन पर गेम खेलते, विडियो देखते और फोटोशूट करते में बीत जा रहा है।

बचपन में ही अपने परिवार की जिम्मेदारी संभाल लेना सोच से भी परे लगता है। ये कहानी इन बच्चों की ही नहीं है ऐसे लाखो बच्चें है जिनका बचपन सायद कहि खो गया है…?
प्रशासन और समाज को आगे आकर ऐसे बच्चों की मदद करनी होगी। इनके बचपन को बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

गरीब बच्चों का खोता बचपन

 

Exit mobile version