गुजरात जो कभी महात्मा गांधी की जन्मभूमि के नाम से जाना जाता था। 2002 के बाद से इसे गुजरात दंगों के नाम से भी जाना जाने लगा है । यह वही दंगे है जिसने पूरे हिंदुस्तान के जेहन पर ऐसी काली छाप छोड़ी जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
2001 की जनगणना के अनुसार गुजरात की जनसंख्या 50671017 थी, और बीबीसी न्यूज़ (2005) की रिपोर्ट के मुताबिक 2002 में गुजरात दंगों में मरने वाले लोगों की तादाद 1044 थी, जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू शामिल थें और साथ ही साथ इसमें हजारों लोग जख्मी और लापता भी हुए थे, और सब से ज्याद नुक्सान हिन्दू मुस्लिम भाई चारे को हुआ, जिसकी भरपाई किसी भी सरकार के लिए नामुमकिन है।। उस समय गुजरात में जान और माल की भीषण तबाही देखने को मिली थी, शायद जिसके बाद लोगों ने ईश्वर से प्रार्थना की होगी की ऐसी विपदा दुबारा किसी पर न आये। शायद लोगों के पास सिर्फ ईश्वर से ही प्रार्थना का ही एक मात्र सहारा था, क्योंकि अगर इस समय गुजरात के सत्ताधारी इस तबाही को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाते तो शायद गुजरात और गुजरातवासियों को जान और माल की इतनी बड़ी हानि का सामना नहीं करना पड़ता। दुर्भाग्यवश एक बार फिर 2020 में लोगों को इसी तरह की तबाही का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार, इस तबाही को भुगतने वाला कोई एक राज्य, धर्म या व्यक्ति नहीं था अपितु सम्पूर्ण भारत इसकी चपेट में आया है।
अब सवाल यह आता है की क्या हमें एक बार फिर जलते हुए गुजरात का एहसास भारत की शक्ल में करना होगा? क्या वर्तमान समय में चल रहे दंगे फिर से धार्मिक दंगो का रूप ले रहे है? अगर हम आकड़ों की बात करे तो मौजूदा समय में भारत की जनसंख्या 1210193422 (जनगणना 2011)। और अगर हम इस जनसंख्या को गुजरात की 2001 की जनसंख्या और वहां के दंगो से तुलना करे तो इस गणित* के मुताबिक गुजरात की तरह इस वक़्त भी सत्ताधारियों की नींद शायद तभी जागेगी जब इस जलते हुए भारत में लगभग 24934 भारतीयों की आहुति न दे दी जाये, जिनमें 18868 मुस्लिम और 6066 हिन्दू शामिल हो? इस बात को हम नागार्जुन की निम्न पंक्तिओं से समझ सकते हैं-
““रामराज में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है
सूरत शक्ल वही है भैय्या बदला केवल ढाँचा है
नेताओं की नीयत बदली फिर तो अपने ही हाथों
धरती माता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है”
क्या यही आज का भारत है जो विकास की ऊँचायों को छू रहा है लेकिन अपने ही देशवासियों की रक्षा करने में असफल हो रहा है। पूरे विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम् की बात कहने वाले भारत की यह कौन सी तस्वीर दिखाई दे रही है?
विश्व में गाँधी के नाम से पहचाने जाने वाले भारत की ऐसी हिंसक दुर्दशा की किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। यदि यह हिंसा यही नहीं रुकी तो शायद हमें इसके ऐसे परिणाम भुगतने पड़े जिसकी कल्पना भी नहीं जी जा सकती है।
जान चाहे मुस्लिम की जाये या हिन्दू की जाये या किसी भी धर्म के व्यक्ति की, मरने वाला अपने पूरे परिवार में अंधेरा कर जायेगा, और अपने पीछे सिर्फ और सिर्फ कुछ भीगी पलके और इंतिकाम की आग छोड़ जायेगा। अंत में मैं अपनी बात दुष्यंत कुमार की इन पंक्तिओं से ख़त्म करना चाहूंगी कि-
“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”
*1210193422/ 50671017= 23.8833
मुस्लिम: 790×23.8833= 18868
हिन्दू: 254×23.8833= 6066
कुल: 18868+6066= 24934
अफसाना
शोधार्थी (समाज कार्य विभाग)
मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद