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कोरोना वायरस का स्टेज 3 रोकने के लिए ओडिशा के तीन ज़िलों में चल रहा है 2 दिनों का शटडाउन

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

चीन के वुहान शहर से फैलते-फैलते कोरोना 199 देशों में पैर पसार चुका है। वहीं, भारत में अब तक कोविड-19 के 2301 पॉज़िटिव केस सामने आ चुके हैं और अब तक 56 मौतें अलग-अलग राज्यों में दर्ज़ की गई हैं।

वहीं. ओडिशा में कोविड-19 का पांचवां मामला सामने आने पर ओडिशा सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। कम्युनिटी ट्रांसमिशन के खतरे को भांपते हुए शुक्रवार रात 8 बजे से रविवार रात 8 बजे तक तीन ज़िले भुवनेश्वर, कटक और भद्रक में 48 घंटे के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है।

ओडिशा के डीजीपी ने क्या कहा?

ओडिशा के डीजीपी अभय ने कहा कि इन 48 घंटों में सब्जियां, दूध डेरियां और खाद्य सामग्री आदि की बिक्री बंद रखी जाएगी। साथ ही किसी भी तरह के आवागमन पास नहीं बनाए जाएंगे और कुछ एक फार्मेसी विक्रेताओं को ही खुले रखे जाने का निर्णय लिया जाएगा।

चीफ सेक्रेटरी ने क्या अपील की?

वहीं, स्टेट चीफ सेक्रेटरी असित कुमार त्रिपाठी ने कहा, “कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। समुदाय संक्रमण का भय है इसलिए हमें आप लोगों के अधिक सहयोग की ज़रूरत है। आपका थोड़ा और त्याग आपके स्वास्थ्य को लाभ देगा।”

ओडिशा सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल उठते हैं

नवीन पटनायक। फोटो साभार- सोशल मीडिया

जहां शुरुआत से ही ओडिशा सरकार की नीतियों की तारीफ की जा रही थी, वहां इस तरह का फैसला पटनायक सरकार की संवेदनशीलता को कटघरे में खड़ा करता है। विचारणीय प्रश्न यह है जब 22 मार्च से ही पूरे देश को लॉकडाउन किया जा चुका है और ऐसे में सम्पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति क्यों उत्पन्न हुई?

कोरोना के कहर के चलते हर कोई भय की स्थिति में है। आम लोगों को अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिए ज़रूरी संसाधन जुटाने में अब पसीने छूटने लगे हैं। बगैर किसी पूर्व सूचना के किया गया लॉकडाउन पहले ही लोगों की मुसीबतों का सबब बना हुआ है।

माना यह निर्णय कोरोना के खतरे को देखते हुए और भयावह स्थितियों की पूर्व तैयारी के तौर पर लिया गया है लेकिन सरकार अगर थोड़ी सी तैयारी कर लेती तो क्या हो जाता? ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ओडिशा के तीन ज़िलों में कर्फ्यू लगाने का फैसला तानाशाही वाला है।

प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा तो पहले ही दिल्ली में सामने आ चुकी है। जाने ऐसे ही कितने मज़दूर ओडिशा के लिए भी निकल पड़े होंगे और लॉकडाउन की स्थिति में उन्हें गाड़ियां तो छोड़िए तपती सड़कों पर पानी भी नसीब नहीं होगा और बीच में ही कहीं रोक दिया जाएगा।

जब पहले ही पूरे देश में इसे लागू किया जा चुका है, तो सम्पूर्ण लॉकडाउन की ज़रूरत आखिर क्यों पड़ी?  क्या इसका सीधा मतलब यह है कि लॉकडाउन का पालन सख्ती से नहीं किया जा रहा था इसलिए यह फैसला लेना पड़ा?

इन्हें कौन समझाए कि लॉकडाउन बढ़ाने से कहीं ज़रूरत टेस्ट किट बढ़ाने की होनी चाहिए। लोगों में डर की स्थिति अब दिन-ब-दिन बढ़ने लगी है। कुछ लोग जिनके लिए कहीं जाना, ज़रूरत का कोई सामान जुटाना बेहद जरूरी है, वे सम्पूर्ण लॉकडाउन का सामना कैसे करेंगे?

कोरोना के भय के साथ-साथ लोगों में मानसिक तनाव भी बढ़ रहे हैं

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए मास्क का प्रयोग करते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कुछ लोग जो शक्ति सम्पन्न और सामर्थ्यवान हैं उन्हें यदि छोड़ दिया जाए तो बाकी लोगों में डर बहुत ज़्यादा है। केंद्र, राज्य सरकारें कितनी भी घोषणाएं कर दें मगर यह भयावहता लम्बे समय तक लोगों के बीच पसरी रहने वाली है।

वही, एक तबका ऐसा भी है जो ना तो मज़दूर की श्रेणी में आता है ओर ना ही गरीबी रेखा या किसी वर्ग विशेष में। इन सभी वर्गों की जीवन रेखा इनकी रेहड़ी, दुकानें, छोटे-मोटे धंधे हैं जो चौपट हो गया है।

इन सबके बीच लॉकडाउन से बचतखोरी, कालाबाज़ारी बढ़ गई है। वे लोग जो शक्ति सम्पन्न नहीं हैं और ज़रूरत का सामान इकट्ठा कर नहीं रख सकते हैं, उनके लिए कोरोना से भी ज़्यादा भयावह लॉकडाउन या कहिए सम्पूर्ण लॉकडाउन है।

ओडिशा सरकार एक तरफ तो जनता से सहयोग की मांग कर रही है। वहीं दूसरी ओर इतना बड़ा फैसला लेने से पहले क्या जनता की परस्थितियों का जायज़ा लेकर उन पर काम नहीं करना चाहिए था?

पूर्व तैयारी के साथ लिया गया एक गलत निर्णय भी कभी-कभी सही हो जाता है और बगैर किसी तैयारी के लिया गया सही निर्णय भी गलत साबित हो सकता है।


संदर्भ- इकोनॉमिक टाइम्स

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