सुबह पांच बजे
कंधे पर थामे कूड़े की बोरी,
नंगे पांव घर से निकल पड़े हैं
नन्हें बचपन।
शहरों की गन्दी गलियों, कूचों, कूड़े के ढेरों पर खेल रहा है बचपन
आंखों में उदासी हैं और पेट में भूख के अंगारे लिए,
कूड़े के ढेरों पर कुछ ढूंढ रहा है बचपन।
रोटी की उलझन में उलझ गया कैसे यह बचपन
सुबह पांच बजे
कंधे पर थामे कूड़े की बोरी,
नंगे पांव घर से निकल पड़े हैं
नन्हें बचपन।