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सरकारों की व्याकुलता पर एक कविता

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

सरकारें इतनी व्याकुल हैं, कैसे तुम्हे बचाना है

समझदारी से घर मे बैठो, बायोलॉजी का ज़माना है।

 

आदेशों को अमल में लाओ

ब्रेक लगा दो रेस को।

बेवजह ना घर को छोड़ो

बचा लो अपने देश को।

 

धन्य होगा वतन हमारा

बन जाओ तुम सारथी

बोल रही यह आज खड़ी माँ भारती।

 

सरकारें इतनी व्याकुल हैं, कैसे तुम्हे बचाना है

समझदारी से घर मे बैठो, बायोलॉजी का जमाना है।

 

विश्वयुद्ध से बड़ी लड़ाई

दुश्मन का हर पल पहरा है,

बॉर्डर वाली जंग भी कुछ ना

वायरस का खंजर गहरा है।

अभी भी देर नही हुई है

संभलो और जागो तुम

भीड़ भाड़ को छोड़कर

घर की और भागो तुम।

 

सरकारें इतनी व्याकुल हैं, कैसे तुम्हे बचाना है

समझदारी से घर मे बैठो, बायोलॉजी का ज़माना है।

 

जीवन बड़ा या ज़रूरतें

तय तुम्हें यह करना है,

बना बहाने गए भीड़ में

निश्चित ही तुम्हें मरना है

ज़िद्द तुम्हारी जहां ले जाएं

मौत का सौदा लाओगे।

पता चलेगा कोरोना का

तुम बहुत पछताओगे।

 

सरकारें इतनी व्याकुल हैं, कैसे तुम्हे बचाना है

समझदारी से घर मे बैठो, बायोलॉजी का जमाना है।

 

आओ मिल हम प्रण करें, सरकार का साथ निभाएंगे

सरकारी आदेश मानकर, अपना फर्ज़ निभाएंगे,

कर्फ्यू का सम्मान करेंगे, कोरोना नही फैलाएंगे

भारत माँ को मिलकर हम, कोरोना मुक्त बनाएंगे,

हम अपनों संग बैठें घर में, औरों को यही बताएंगे

घर मे रहकर अबकी बार, वतन को हम बचाएंगे।

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