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LGBTQ+ कम्यूनिटी के लिए नौकरी में समानता क्यों नहीं है?

trans person at workplace

trans person at workplace

दुनियाभर में समलैंगिक घटनाओं, समलैंगिक सम्बन्धों और इसके वैधीकरण के बारे में बातें होती हैं। दरअसल, ये समुदाय आम जनमानस का हिस्सा हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उन्हें हाशिये पर क्यों धकेला जा रहा है?

समाज में हो रही उपेक्षाओं के बीच सवाल उठता है कि वे भी तो इंसान हैं फिर उन्हें आम इंसान की वे सारी सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं?

आखिर सिस्टम क्यों नहीं समझ रहा है कि उनके सुखद जीवन के लिए गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है? सच तो यह है कि उनके भले के लिए कुछ आरक्षण की सुविधा देने की ज़रूरत है।

जब समलैंगिकता कानूनन वैध है, तो समाज अपनी सोच क्यों नहीं बदल पा रहा है?

भारतीय समाज बड़े पैमाने पर समलैंगिकता को अस्वीकार करता आ रहा है। बेशक हमारे देश में इसे कानूनी मान्यता मिल गई हो लेकिन क्या इसका प्रभाव हमारे समाज के रूढ़िवादी लोगों तक पहुंच पाया है?

मेरे व्यक्तिगत विचार में तो नहीं, क्योंकि हमारे देश में इसके लिए कानून तो पारित किया गया है लेकिन लोगों की सोच को बदलने की गारंटी नहीं है।

LGBTQ+ कम्यूनिटी को रोज़गार में भेदभाव से बचाने के लिए संघीय कानून की आवश्यकता है

फिलहाल, LGBTQ+ कम्यूनिटी के श्रमिकों को रोज़गार हेतु भेदभाव का शिकार होने से बचाने के लिए कोई संघीय कानून नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समलैंगिक, उभयलिंगी व्यक्तियों से लेकर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने सहकर्मियों द्वारा कार्यस्थल में भेदभाव, उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का अनुभव किया है।

ये मुद्दे ना केवल कार्यस्थल में LGBTQ+ कम्यूनिटी के लिए परेशानी वाले हैं, बल्कि व्यवसायों के लिए भी ठीक नहीं हैं। अत: मैं अपने इस लेख के ज़रिये LGBTQ+ कम्यूनिटी के कर्मचारियों के लिए एक सकारात्मक कार्यस्थल वातावरण की मांग करता हूं।

किसी भी कार्य क्षेत्र की सफलता के लिए ज़रूरी है समस्त कर्मचारियों के प्रति समानता का भाव 

एक ऐसा कार्यालय, जहां का प्रबंधन अच्छा हो। अच्छी तरह से प्रबंध किया हुआ कार्यालय, कार्यबल लागत को कम करेगा और अधिक लाभ उत्पन्न करेगा।

यह ना केवल एक कंपनी की संस्कृति के लिए, बल्कि इसकी निचली रेखा के लिए भी कार्यस्थल में विविधता के महत्व को दर्शाता है।

विविधता का मतलब सिर्फ महिलाओं और व्यक्तियों से ही नहीं है, बल्कि कई प्रकार की नस्लीय, जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि से है। संस्था में LGBTQ+ कम्यूनिटी के कर्मचारियों को काम पर रखने और उनके लिए एक सहायक माहौल बनाने से ना सिर्फ समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा, बल्कि हम एक बेहतर कार्यस्थल की नींव भी रखने में सफल होंगे।

कार्यस्थल में परिवर्तन से LGBTQ+ कम्यूनिटी को होगा लाभ

LGBTQ+ कम्यूनिटी से संबंधित नीतियों का सकारात्मक प्रभाव ज़ाहिर तौर पर कर्मचारियों पर भी पड़ेगा जिसके परिणामस्वरूप कार्यस्थल में भेदभाव कम हो जाएगा।

व्यावसायिक प्रभाव के मद्देनज़र देखा गया है कि LGBTQ+ कम्यूनिटी के तमाम कर्मचारी कार्यस्थल में अपनी पहचान छुपाने के लिए मजबूर होते हैं। अक्सर स्वास्थ्य के मुद्दों और काम से संबंधित शिकायतों के कारण तनाव और चिंता का स्तर सिर्फ और सिर्फ बढ़ता ही जाता है।

LGBTQ+ कम्यूनिटी के अनुकूल कार्यस्थल बनाने से कंपनियां तनाव को कम कर सकती हैं और कर्मचारियों के स्वास्थ्य में भी सुधार‌ हो सकता है। नौकरी के प्रति संतुष्टि बढ़ने पर सह-कर्मियों और पर्यवेक्षकों के साथ अधिक सकारात्मक संबंध बन सकेगा।

नौकरी में LGBTQ+ कम्यूनिटी की भागीदारी कैसे बढ़े?

बाज़ार का अनुसंधान करें- LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोगों की अनूठी चिंताओं और ज़रूरतों को बेहतर ढंग से समझना सबसे ज़रूरी है। इसके लिए व्यवसायों को सकारात्मक और नकारात्मक कारकों की पहचान करने की आवश्यकता है।

सकारात्मक और नकारात्मक कारकों की पहचान करने का एक अच्छा तरीका वर्तमान LGBTQ+ कम्यूनिटी के कर्मचारियों का सर्वेक्षण करना है।

LGBTQ+ कम्यूनिटी के लिए इंटर्नशिप- कंपनियां LGBTQ+ कम्यूनिटी के इंटर्न्स की भर्ती के प्रयासों पर भी ध्यान केंद्रित कर सकती हैं और इंटर्नशिप पूरा होने के बाद उन्हें पूर्णकालिक रूप से संगठन में शामिल होने का अवसर प्रदान कर सकती हैं।

कर्मचारियों की बहाली संबंधित विज्ञापन- कंपनियां यह सुनिश्चित करें कि किसी भी जॉब प्रोफाइल के लिए विज्ञापन जारी करते वक्त उसमें साफ तौर पर इस बात का ज़िक्र हो कि LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोग भी अप्लाय कर सकते हैं।

LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोगों के लिए कार्यस्थल समावेश कार्यक्रम- विविधता समावेश कार्यक्रम बनाना LGBTQ+ कम्यूनिटी के कर्मचारियों की मदद करने का एक तरीका है। इससे कंपनी के अन्य विविध सदस्य काम में स्वागत और सहज महसूस करते हैं।

LGBTQ+ कम्यूनिटी के कर्मचारियों को सुरक्षित महसूस कराते हुए कंपनी का अभिन्न अंग बनाना- कंपनियां LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोगों को संगठनों के बाहर भी सहयोग कर सकती हैं।

LGBTQ+ कम्यूनिटी से संबंधित संगठनों के साथ मिलकर कंपनियां काम कर सकती हैं। समय-समय पर कार्यशालाएं आयोजित करके उनके प्रति एक सकारात्मक माहौल निर्माण की जा सकती है।

रोज़गार मेले का आयोजन- यह एक अत्यंत सराहनीय कदम है, इसमें LGBTQ+ कम्यूनिटी से सम्बंधित लोगों को ही प्रवेश दिया जाना चाहिए ताकि उनको वहांं का वातावरण स्वयं के लिए अनुकूल लगे।

2 महीने पहले दिल्ली में ऐसे मेले का आयोजन हुआ था। 22 फरवरी 2020 को RISE यानी ‘Reimagining Inclusion for Social Equity’ (सामाजिक समरसता के लिए समावेश को शामिल करना) द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। यह एक संस्था है जो LGBTQ+ कम्यूनिटी से सम्बंधित लोगों के लिए कार्य करती है।

इन्होंने जॉब फेयर का कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा किया और आज लगभग 200 लोगों को नौकरी तक मिल गई है। इन्होंने कई कार्यशालाओं का आयोजन किया। जैसे- कम्यूनिटी बिल्डिंग, रिज़्यूम बनाने के तरीके, इंटरव्यू में किस तरह से उत्तर दें आदि। यह एक सफल और प्रभवशाली कदम रहा।

हमें समझना होगा कि LGBTQ+ कम्यूनिटी के लोग भी इंसान हैं

LGBTQ+ कम्यूनिटी भी इंसान हैं और हमारी तरह ही जीवन जीते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि उनको समानता नहीं चाहिए। सब एक बराबर हैं, बस किसी-किसी की शारीरिक आकर्षण की सीमा बदल जाती है तो इसमें कैसी असमानता?

देश में LGBTQ+ कम्यूनिटी से सम्बंधित लोगों की आज समाज को ज़रूरत है। आइए हम प्रण लें कि समाज में एकरूपता लाएंगे और असमानता की जड़ों को निकाल फेंकेंगे।

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