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“स्वास्थ्य व्यवस्था की बदइंतज़ामी से बचने का ज़रिया है तबलीगी जमात पर ठीकरा फोड़ना”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

तबलीगी जमात की शुरुआत सन् 1927 में हज़रत मौलाना मोहम्मद इलियास ने किया था जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ धार्मिक तालीम देने का काम करना था और आज भी तबलीगी जमात अपने उसी काम को अंजाम देने का काम कर रही है। अभी तबलीगी जमात दुनिया के 100 से ज़्यादा मुल्कों में काम कर रही है।

यह जमात कहीं से भी किसी प्रकार का फंड और चंदा नहीं लेती है। इसमें जो लोग शामिल होते हैं वे अपना वक्त और अपना पैसा लगाकर तबलीग का काम करते हैं। तबलीगी जमात को धर्म के सिवा किसी भी कार्य से लेना देना नहीं है। वहां पर बस धर्म की बात होती है।

ये लोग जमात (टोलियां) बनाकर मस्जिदों में रुकते हैं और उस इलाके के मुस्लमानों को जमा करके उन्हें धार्मिक तालीम (प्रवचन) देते हैं। ये लोग घर-घर जाकर मुसलमानों को नमाज पढ़ने, रोजा रखने, हज करने आदि के बारे में समझाने का काम करते हैं और उन्हें अपनी जमात से जोड़ते हैं।

तबलीगी जमात का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी समाजिक एवं राजनीतिक संगठन से कोई लेना देना नहीं है। जैसा कि तबलीगी जमात का इतिहास रहा है, उससे यह स्पष्ट होता है कि यह जमात सिर्फ और सिर्फ धार्मिक काम करती है।

तबलीगी जमात पर जान बुझकर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप बेबुनियाद

तबलीग़ी जमात के निज़ामुद्दीन मरकज़ से COVID-19 वायरस के संक्रमण फैलने की बात पर इन दिनों देश के सभी टेलीविज़न चैनलों और सोशल मीडिया पर बहस का मुद्दा बना हुआ है और लगातार तबलीगी जमात के उपर तरह-तरह का इलज़ाम लगाया जा रहा है कि तबलीगी जमात के लोगों ने जान बुझकर COVID-19 वायरस को फैलाया है।

यही नहीं, मरकज़ के अंदर एक हज़ार से पंद्रह सौ लोगों के छुपे होने की बात की जा रही है और तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना मुहम्मद साद कांधलवी के उपर एफआईआर भी दर्ज़ हो गई है।

गौरतलब है कि 15 मार्च तक निज़ामुद्दीन मरकज़ में कार्यक्रम को जारी रखा गया। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार के सेक्रेटरी लव अग्रवाल 13 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और कहते हैं कि कोई स्वास्थ्य आपातकाल नहीं है। जबकि 13 मार्च तक भारत में COVID-19 के 81 मामले सामने आ चुके थे।

मंदिरों पर सवाल क्यों नहीं?

13 मार्च को ही दिल्ली राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का निर्देश जारी होता है जिसमें लिखा जाता है कि किसी प्रकार का सेमिनार, कॉन्फ्रेंस नहीं होगा लेकिन उसमें धार्मिक कार्यक्रम को लेकर कुछ भी नहीं कहा जाता है।

16 मार्च तक तिरूपति मंदिर, उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर और सिद्धिविनायक मंदिर खुला रहता है। शिरडी में साईं बाबा का मंदिर भी 17 मार्च तक खुला रहता है। वैष्णो देवी का मंदिर 18 मार्च तक खुला है, काशी विश्वनाथ का मंदिर 20 तक खुला रहता है।

शिवराज सिंह चौहान को शपथ ग्रहण कार्यक्रम के लिए सर्टिफिकेट किसने दिया?

23 मार्च को मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण लेते हैं और जश्न मनाया जाता है। अब आपको जानकारी होनी चाहिए कि सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी सोशल डिस्टेंसिंग की बात 19 मार्च की घोषणा के साथ ही कर देते हैं।

शाम को थाली बजाने के आयोजन का भी ऐलान किया जाता हैा अब आप थोड़ा सा अपने बुद्धि का प्रयोग करके सोच सकते हैं कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने मिलकर इस पूरे मामले का ज़िम्मेदार तबलीगी जमात को आखिर क्यों बना दिया।

तरह-तरह के हैशटैग भी ट्विटर पर ज़ोरों से ट्रेंड करवाए गए लेकिन मुझे सरकार से यह सवाल है कि आखिर सरकार क्या कर रही थी? सरकार की क्या ज़िम्मेदारी बनती है या नहीं?

क्या सरकार COVID-19 वायरस को लेकर गंभीर थी? और क्या किसी एक जमात के उपर सारा ठीकरा फोड़ना सही है? जैसा कि पता होना चाहिए निज़ामुद्दीन मरकज़ और पुलिस स्टेशन बिलकुल करीब हैं। फिर पुलिस स्टेशन को भी पता होगा कि वहां क्या हो रहा है।

लेकिन भारतीय मीडिया ने तबलीगी जमात को विलेन के रूप में दिखाया है। COVID-19 वायरस से लड़ने के लिए अवेयरनेस और स्वास्थ्य संबंधित विषयों पर डिबेट होता तो ज़्यादा बेहतर था।

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