14 अप्रैल को सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनन्द तेलतुम्बड़े ने एनआईए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
पीटीआई के मुताबिक आनन्द तेलतुम्बड़े को अदालत ने 18 अप्रेल तक नैशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की कस्टडी में भेज दिया गया है। बॉम्बे उच्च न्यायलय ने अग्रिम ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी से दोनों को अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी।
क्या है मामला?
गौतम नवलखा भीमा-कोरेगाँव घटना में हुई हिंसा के आरोपी हैं। यह मामला 31 दिसम्बर 2017 का है। पुणे में आयोजित भीमा-कोरेगाँव लड़ाई के 200 वर्ष पूरे होने पर एलगार परिषद की बैठक में भड़काऊ बयान दिया जिसके अगले ही दिन हिंसा भड़क उठी।
पुलिस ने उन्हें माओवादी समूह का सक्रिय सदस्य बताया था जिसके बाद मामला एनआईए को सौंप दिया गया था।
माओवादियों से सम्बन्ध होने के लगे आरोप
माओवादियों से सम्बन्ध के आरोप में तेलतुम्बड़े और कई अन्य कार्यकर्ताओं को गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
17 मार्च 2020 को उच्चतम न्यायालय ने इनकी याचिकाओं को खारिज़ कर दिया और तीन सप्ताह के अंदर उन्हें आत्मसमर्पण करने को कहा था।
दरअसल, जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने आत्मसमर्पण की समय सीमा को आगे बढ़ाने से स्पष्ट इंकार कर दिया था। गौतम नवलखा और तेलतुम्बड़े के वकीलों ने जहां कोविड-19 से पैदा हुए हालातों की दलील दी थी, वहीं महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अदालत में कहा मौजूदा हालात में जेल ही सबसे सुरक्षित जगह होगी।
गिरफ्तारी पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
देश और दुनिया के कई संस्थानों ने दोनों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समर्थन में बयान जारी किए हैं और गिरफ्तारी रोकने की मांग की है। एमनेस्टी इंडिया ने दोनों की गिरफ्तारी पर कहा, “कोविड-19 महामारी के समय में भी असहमति की आवाज़ को दबाया जा रहा है। महामारी के समय में भारत सरकार उन लोगों को निशाना बना रही है जो सरकार के आलोचक हैं।”
एमनेस्टी इंडिया ने आगे कहा, “बीते दो सालों में इन एक्टविस्टों को बदनाम करने के लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। उन्हें देशद्रोही बताने की कोशिश की गई है। सालों तक अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई को कमतर साबित करने की कोशिश की गई है। असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए सरकार हिरासत को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।”
आत्मसमर्पण से पहले गौतम नवलखा ने लिखा खुला पत्र
वहीं, गौतम नवलखा ने आत्मसमर्पण से पहले एक खुला पत्र जारी किया। जिसमें उन्होंने गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) की आलोचना की। उन्होंने लिखा,
ऐसे कानून सामान्य न्याय की अवधारणा को बर्बाद कर देते हैं। अब यह स्वयंसिद्ध नहीं है कि कानून में एक आरोपी तब तक दोषी है जब तक कि निर्दोष साबित ना हो जाए।
उन्होंने सबूत इकट्ठा करने एवं उन्हें पेश करने के तरीके की भी आलोचना की। उन्होनें कहा कि यूएपीए के सख्त प्रावधानों में भी ऐसी सख्त प्रक्रियाएं नहीं हैं। उ्होंने आगे लिखा, “इस दोहरे झटके में जेल मानक बन जाती है जबकि ज़मानत अपवाद बन जाती है।”
उन्होंने आगे कहा कि लॉकडाउन के कारण वो कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं कर पाएं क्योंकि वो मुंबई यात्रा नहीं कर सकते थे।
तेलतुम्बड़े ने खत में क्या लिखा?
गिरफ्तारी से पहले तेलतुम्बड़े ने भी देश के नाम पत्र लिखा। उन्होंने लिखा, “उम्मीद है आप अपनी बारी आने से पहले बोलेंगे। मैं देख रहा हूं कि मेरा भारत बर्बाद हो रहा है। इस तरह के डरावने क्षण में एक उम्मीद के साथ लिख रहा हूं।
वो आगे लिखते हैं, “आज बड़े पैमाने पर उन्माद को बढ़ावा मिल रहा है और शब्दों के अर्थ बदल दिए गए हैं। जहां राष्ट्र के विध्वंसक देशभक्त बन जाते हैं और लोगों की नि:स्वार्थ सेवा करने वाले देशद्रोही।” यही नहीं उन्होंने केस संबंधित सभी घटनाओं का ज़िक्र इस पत्र में किया।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं है कि गौतम नवलखा और आनन्द तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी पूर्ण रूप से लोकतंत्र पर चोट के समान है। वो भी ऐसे समय में जब कोरोना का संक्रमण है। क्या यह मानकर चला जाए कि सरकार उन लोगों की गिरफ्तारी करा रही है जिनसे उन्हें खतरा है?