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Suno India Podcast: प्रिंटिंग और पैकेजिंग इंडस्ट्री में रोज़गार की संभावनाएं

फोटो साभार- pexels

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वर्तमान में जब सब कुछ ऑनलाइन और इंटरनेट से जुड़ा है, ऐसे में मुझे याद हे कि एक दौर हुआ करता था जब समाचार पढ़ने के लिए हमें अखबार खरीदना पड़ता था। जो एक रात पहले छपकर आता था।

मुझे आज भी याद है जब 16 अगस्त होता था, तो अखबार नहीं आता था क्योंकि एक रात पहले 15 अगस्त को सारी प्रिंटिंग प्रेस बंद होती थी। 

इन सबके बीच आज वह दौर है जहां मुझे समाचार पढ़ने के लिए समाचार पेपर के प्रिंट होने का इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। सारी सूचनाएं मेरे मोबाइल पर उपलब्ध हैं जिन्हें मैं जब चाहूं जहां चाहूं पढ़ और देख सकता हूं

तो क्या यह मान लिया जाए कि इस डिजिटल दौर में प्रिंटिंग लुप्त हो चुकी है? क्या आज भी इस इंडस्ट्री में करियर  के विकल्प उपलब्ध हैं?

इंडियन प्रिंटिंग पैकेजिंग एंड अलाइड मशीनरी मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (IPAMA) के अनुसार भारत में वर्तमान में प्रिंट और पैकेजिंग उद्योग 6-7 लाख करोड़ का है और आज भारत में 36 प्रिंट और पैकेजिंग के कॉलेज हैं, जहां से हर साल 3500 नए छात्र पढ़कर निकलते हैं, जो कि इंजीनियरिंग और अन्य प्रचलित करियर के मुकाबले बहुत कम है, तो बेशक प्रतिस्पर्धा भी कम है।

आज की युवा पीढ़ी को इस करियर के विकल्प के बारे में अवगत करवाने के लिए हमने प्रिंटिंग और पैकेजिंग उद्योग के प्राध्यापक धर्मावरपु नागार्जुन, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, हैदराबाद, व्यवसायी दयाकर रेड्डी, IPAMA (भारतीय प्रिंटिंग पैकेजिंग और एलाइड मशीनरी मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन) के अध्यक्ष और सरकारी कर्मचारी आरबीआई प्रिंटिंग प्रेस के मानव संसाधन प्रबंधक रवि कुमार से बात की और इस उद्योग के बारे में गहराई से जानने की कोशिश की।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- pexels

नागार्जुन जी के अनुसार भारत में कुछ लोग सोचते हैं कि प्रिंटिंग का व्यापर तो मीटिंग कार्ड, विज़िटिंग कार्ड प्रिंट करने तक का है लेकिन यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है। प्रिंट और पैकेजिंग उद्योग इतना फैला हुआ है पूरे देश में कि प्रिंटिंग के बिना ज़िंदगी महसूस करना भी मुश्किल होता है।

उन्होंने आगे कहा, “जैसे आप सवेरे उठते हैं तो आपका दूध का पैकेट भी  प्रिंटेड ही है। कॉफी पाउडर लेते हैं तो कॉफी पैकेट भी प्रिंटेड है। आप डबल रोटी खाते हैं, वह ब्रेड पेपर भी प्रिंटेड है। अगर हम ऐसे देखेंगे तो सवेरे जब हम नींद से उठते हैं और सोते समय सोचते हैं कि एक किताब पढ़ लें नींद आ जाएगी तो वह किताब  भी प्रिंटेड है।”

एक इंसान की पूरी ज़िन्दगी में जन्म प्रमाण पत्र से लेकर जब आदमी गुज़र जाता है तो डेथ सर्टिफिकेट भी एक प्रिंटेड आइटम ही है। यह एक ऐसा उद्योग हे जिसकी साल के 365 दिन ज़रूरत पड़ती है।  

दयाकर रेड्डी के अनुसार भारत में प्रिंट और पैकेजिंग उद्योग में भी बहुत सम्भावनएं हैं। जहां विकसित देशों में 85% उत्पाद किसी ना किसी तरह की पैकेजिंग के ज़रिये ही होते हैं लेकिन भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 19% है। तो इस क्षेत्र में हमारे देश में अभी बहुत काम होना है और आजकल पर्यावरण हितैषी उत्पाद भी आने लगे हैं जिसके चलते भी इस इंडस्ट्री में व्यापर के नए आयाम खुल गए हैं।

आरबीआई प्रिंटिंग प्रेस के मानव संसाधन प्रबंधक रवि कुमार के अनुसार सरकारी क्षेत्र में भी प्रिंटिंग और पैकैजिंग में बहुत सारे करियर विकल्प हैं। जैसे हमारी संसद खुद प्रेस चलाती है, देश के सारे बड़े विश्वविद्यालयों का अपना अपना प्रेस होता है। रेलवे से लेकर सरकार जब देश की मुद्रा छपती और पासपोर्ट से लेकर वीज़ा छपने तक में प्रिंटिंग के करियर के विकल्प उपलब्ध हैं।


राह- एक करियर पॉडकास्ट के इस एपिसोड में होस्ट तरुण निर्वाण ने मुद्रण और पैकेजिंग उद्योग के बारे में ऐसी ही बहुत सारी जानकारियां इस उद्योग के पेशवरों से जानने की कोशिश की है जिसे आप इस एपिसोड में सुन सकते हैं।

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