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कोरोना: क्या बेहतर होता पर्यावरण लॉकडाउन के बाद भी ऐसा ही रहेगा?

Pollution During Lockdown

लॉकडाउन के दौरान कम हुआ प्रदूषण

मानव इतिहास ने कुदरत के तमाम झंझावातों का सामना किया है और आगे भी करता रहेगा। तकरीबन हर सौ सालों में एक मर्तबा कुछ बड़ा झटका ज़रूर लगता है लेकिन मानव किसी ना किसी तरह उससे पार पा लेता है।

आजकल एक नई बीमारी कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया के मुल्कों को परेशानी में डाल दिया है। क्या अमेरीका, क्या चीन, क्या इटली, क्या हिंदुस्तान और क्या ब्रिटेन इस बमारी से सबके हाथ-पांव फूले हुए हैं।

यह सच बात है कि हम कुदरत से कभी जीत नहीं सकते लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि हम उसका डटकर मुकाबला करते हैं और उससे आगे बढ़ते हैं। हालांकि कुदरत के साथ इस जद्दोजहद में नफा-नुकसान ज़रूर होता है।

इस वायरस ने सभी प्रभावित देशों को अपनी नीतियों पर पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया है। अब आइए ज़रा समझते हैं कि जब यह जंग खत्म होगी तब दुनिया कैसी हो सकती है? यह ज़रूरी नहीं कि सारे बदलाव वैसे ही हों जैसा हम सोच रहे हैं लेकिन फिर भी गुंज़ाइश तो बनी रहती है।

सरकारी नीतियों में बदलाव की संभावनाएं

बहुत मुमकिन है कि कुछ देशों व राज्यों की सरकारें अपनी शिक्षा एवं स्वास्थ्य सम्बन्धित बुनियादी सुविधाओं पर अधिक ध्यान देने लगें। जात-पात की राजनीति की चमक फीकी पड़ सकती है।

समाज के हर तबके, खासतौर पर मध्य वर्ग से इस बदलाव की मांग उठना लाज़मी है। वोट बैंक शायद तितर-बितर होती नज़र आने लगे लेकिन यब सब कागज़ी नहीं होना चाहिए। ज़मीनी हकीकत होने पर ही सरकार को अगले चुनाव में इसका लाभ मिलेगा।

बदल रहा है काम करने का तरीका

चूंकि तालाबंदी वाला वक्कत चल रहा है, कई संस्थानों में काम करने के तौर-तरीके और वक्त में बदलाव हो सकते हैं। ऐसे काम जो घर बैठे किए जा सकते हैं, उनके लिए कोई दफ्तर क्यों ही जाना चाहेगा? दफ्तर की मीटिंग भी अगर घर से हो सकती है, तो लोग अपना वक्त और पैसा दोनों बचाएंगे।

इसके लिए तमाम तरह की तकनीक व सॉफ्टवेयर इस्तेमाल में किए जाने लगे हैं। इन तरीकों से ईंधन भी बचता है और कार्बन उत्सर्जन में कमी भी आती है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह होगी कि प्रबंधक अपने कर्मचारियों के वेतन में कोई कमी तो नहीं करते हैं या उनके काम के घंटे तो नहीं बढ़ाए जाते हैं।

ई-कॉमर्स वाले उद्योगों को मुनाफा

ऑनलाइन के ज़माने में धीरे-धीरे ही सही लोग हर चीज़ सीधे अपनी झोले में चाहते हैं। इस वजह से ई-कॉमर्स व्यवसाय में लगी कंपनियों में होड़ लगेगी। इससे दाम गिरेंगे और अंततः लाभ अंतिम उपभोक्ता को मिलेगा। कई छोटे-मोटे व्यापारी भी इन दिनों इसी जुगत में लगे हैं।

मोटे तौर पर देखा जाए तो यह एक शानदार पहल होगी जिससे डिजिटलीकरण को फायदा होगा। इससे नकदी रखने के झंझट से लोग बचेंगे। हालांकि नोटीबंदी के वक्त भी इसी तरह के कयास लगाए गए थे जो कि असफल साबित हुए।

पर्यावरण में सुधार

कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। इस वक़्त सभी इंसान अपने-अपने घरों में कैद हैं और सारे जानवर और पक्षी आदि अपने-अपने पिंजरों से बाहर है। मौसम का माहौल खुशनुमा है।

हालांकि देखने वाली बात ये होगी कि क्या ये सिर्फ कुछ दिनों की खुशी है या आगे भी ऐसा रहेगा। सभी मुल्कों की रफ्तार पर लगाम लगाने वाला कोरोना वायरस एक न एक दिन तो इंसान से हारेगा ही, तब क्या प्रदूषण दोबारा अपने पुराने रूप में पिटारे से बाहर निकलेगा?

आंकड़े बताते हैं कि अकेले भारत में लॉकडाउन के दौरान मार्च के महीने में 2019 की तुलना में एविऐशन फ्यूल की खपत में 32 फीसद की कमी आई है।

इसके अलावा चीन में पिछले वर्ष फरवरी-मार्च की इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष नाइट्रोजन डाईआक्सॉइड की मात्रा में 35 फीसद की कमी आयी है। वहीं इटली में तो 2019 की इसी अवधि की तुलना में इस साल 50 से 60 फीसद तक की कमी आई है।

सेंटर फॉर एनर्जी एंड क्लीन एयर की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लॉकडाउन की अवधि में हाई स्पीड डीजल की खपत में 24 फीसद और सुपीरियर कैरोसिन ऑयल की खपत में 48 फीसद की गिरावट दर्ज़ की गई है। वहीं कोयले से बनने वाली बिजली की खपत में भी 26 फीसद की कमी आई है।

महात्मा गाँधी कहते थे, “यह पृथ्वी सारे इंसानों की जरूरतें पूरी करने में समर्थ है लेकिन यह एक भी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है।”


सोर्स- सत्याग्रह

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