भेदभाव क्या होता हैं? आपको क्या लगता हैं? भेदभाव क्या सिर्फ जाति, मज़हब और भाषा के आधार पर ही होता है? ये सभी सवाल पहले से ही समाज में मौजूद हैं।
देशव्यापी लॉकडाउन में उसकी तरफ देखने का नज़रिया बदल दिया है। जिस तरह से गरीब लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने गाँव में दाखिल हो रहे हैं, होना चाहते हैं, वह सब भयावह है।
दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा पर हज़ारों की संख्या में लोग अपने गाँव की तरफ पलायन कर रहे हैं। शहर में रहते हैं तो नौकरी नहीं है। खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। दो वक्त की रोटी के लिए जंग लड़ना पड़ रहा हैं।
अमीरों के लिए हवाई जहाज़ और गरीबों के लिए ठीक से बस का भी इंतज़ाम नहीं
बेशक देश में संपूर्ण लॉकडाउन से पहले विदेश में फंसे भारतीय लोगों के लिए हवाई जहाज़ भेजी गई। गरीबों को अपने गाँव जाने के लिए आप ठीक से बस का इंतज़ाम भी नहीं कर पाए। यह गरीबों के साथ भेदभाव नहीं तो क्या है?
मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करते हुए गाँव पहुंच भी जाएंगे। फिर भी उन्हें डर है कि गाँव में प्रवेश करने दिया जाएगा या नहीं? हर तरफ कोरोना का खौफ फैला हुआ है। खबर तेलंगाना से है कि लोग पैदल कर्नाटक में अपने गाँव जा रहें थे। रस्ते में ट्रक ने उन्हें कुचल दिया, सात लोगों की मौत हो गई।
आनंद विहार बस अड्डे पर हज़ारों की संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। क्या वहां पर लोगों को कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता है? आनंद विहार में भीड़ इकट्ठा हो रही थी तभी आपके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बच्चे रोटी के लिए तरस रहे थे। घास खाने के लिए मजबूर थे। दिल्ली से मध्यप्रदेश के मुरैना अपने घर जा रहे व्यक्ति की मौत हो गई। वह तीन बच्चों के पिता थे।
इंतज़ाम की जगह ‘मन की बात’
“मन की बात” कार्यक्रम में आपने कहा है कि मेरे कुछ फैसलों के कारण आप लोगों को तकलीफ उठानी पड़ी, मैं क्षमा चाहता हूं। अब तो डर इस बात का है कि कोरोना को छोड़िए कहीं सैकड़ों लोगों को भुखमरी से ही अपनी जान नe गवानी पड़े। नोटबंदी में भी यही हुआ था साहब।
1 महीने के अंदर 100 लोगों की मौत हो गई थी। क्या गरीब होना उनका कसूर था? करोना संकट में केंद्र सरकार ने राहत पैकेज का ऐलान किया है मगर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
यह ठीक कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की तरह है जिसके चलते अर्थव्यवस्था को तो कुछ फायदा नहीं हुआ मगर सरकार का रेवेन्यू एक लाख करोड़ से ज़्यादा कम हो गया।
लॉकडाउन से पहले तैयारी क्यों नहीं की गई
संपूर्ण लॉकडाउन से पहले कुछ तैयारी की जानी चाहिए थी। यह ठीक उसी तरह से है जैसे नोटबंदी से पहले कुछ सोचना चाहिए था। जीएसटी को पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू करना चाहिए था। संपूर्ण लॉकडाउन आधे-अधूरे तरीके से किया गया। लोगों के मन में संदेह था ज़रूरी सामान कैसे मिलेगा।
उस दिन आपका भाषण खत्म होने से पहले ही मार्केट में लोगों की भीड़ ने अफरा-तफरी नचा दी। लॉकडाउन के 4 दिनों बाद दिल्ली सरकार स्कूलों में गरीबों को रहने की सुविधा एवं दो वक्त की रोटी दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि अब लोगों को लेने के लिए बस शुरू की जाएगी। अगर यह सब पहले ही किया जाता तो कई मज़दूरों को सुरक्षित दिल्ली में ही रोका जा सकता था।
प्रधानमंत्री जी, ज़रा सोचिए
यदि पहले से इंतज़ाम किया गया होता तो इतनी मुसीबत गरीबों को नहीं उठानी पड़ती। देश लॉकडाउन होने जा रहा है, यह बात आपके अलावा और किसी को पता ही नहीं होगी।
ऐसे में राज्य सरकार द्वारा आम लोगों को राहत कैसे मिलेगी? जब महाराष्ट्र में लॉकडाउन किया गया तो रेलवे स्टेशन पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई। उसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने रेलवे के साथ मिलकर उत्तर भारत के लिए अतिरिक्त रेलगाड़ियां चलाने का फैसला किया।
राहुल गाँधी केंद्र सरकार को काफी पहले ही कोरोना को लेकर सावधान कर रहे थे। उनके ट्विटर से यह पता चलता हैं जब केंद्र सरकार द्वारा डोनाल्ड ट्रंप की मेहमान नवाज़ी का काम चल रहा था तब से लेकर वह ट्वीट कर रहे थे।
लेकिन गोदी मीडिया ने और आईटी सेल ने उनकी इमेज पप्पू वाली बना दी है। उनकी तरफ ध्यान कोई क्यों देगा?
भारत का गरीब आपके द्वारा किए गए इस भेदभाव को भी बर्दाश्त कर जाएगा, क्योंकि उसके पास काफी सहनशीलता है। वह अपनी परिस्थिति के लिए राजनेता, सरकार आदि को ज़िम्मेदार नहीं समझता है। उसे लगता है यह सब उसके नसीब में है। जिस दिन उसका यह भ्रम टूट जाएगा, देखिएगा उसी दिन सत्ताधारियों के तख्त भी उछाले जाएंगे।