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“स्कूल कॉलेज में भेदभाव ने मुझे बाबा साहेब को जानने-समझने का अवसर दिया”

राजीव कुमार

राजीव कुमार

बचपन से बाबू जगजीवन राम और बाबा साहेब अंबेडकर के बारे में सुनता था। मेरी दादी, जगजीवन राम और बाबा साहेब के बारे में किस्से सुनाया करती थी।

दादी कहती थीं कि एक डोम अर्थात दलित के बेटे ने भारत का संविधान लिखा।

अब सवाल यह है कि बाबा साहेब अंबेडकर मेरे पथ प्रदर्शक क्यों हैं? इस बात को जानने के लिए मैं आपको अपने जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में बताना चाहूंगा।

बाबा साहेब अंबेडकर की तरह मेरा भी लालन-पालन एक कबीरपंथी परिवार में हुआ है। इसलिए बाबा साहेब को बहुत करीब से जानने का मौका मिला।

साधु-संतों के बारे में कहा जाता है कि वे हमेशा धर्मवादी होते हैं। धर्म की बात करते हैं, सामाजिक क्रांति और राजनीति से उनका कोई मतलब नहीं होता है मगर कबीरपंथी साधु-संतों का जीवन बिल्कुल अलग होता है। बाबा साहेब के बारे में मैंने जो जाना है, उसमें कबीरपंथी साधु संतों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

बाबा साहेब के विचारों से कैसे मैं प्रेरित हुआ

अंबेडकर जयंती मनाते कबीरपंथी साधू।

मैं भी एक दलित अछूत जाति में जन्मा हुआ विद्यार्थी था। बचपन से छुआछूत और भेदभाव महसूस किया था। स्कूल और उसके आसपास के भूमिहार जाति के लोगों के चापाकल से पानी नहीं पीने दिया जाता था।

मेरे ही गाँव के भूमिहार जाति के एक गाँधीवादी जयनंदन ठाकुर जी के यहां हम लोग पानी पीने जाते थे, जो स्कूल से बहुत दूर था।

मुझे अपने कॉलेज के एक जूनियर के साथ हुई एक घटना याद आती है जिसमें उसके ब्राह्मण जाति के रूम पार्टनर जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के थे, नामांकन के बाद एक रूम में रहने लगे।

मगर जब पता चला कि संबंधित विद्यार्थी दलित है तो उसके साथियों ने उसको कमरे से निकाल दिया। जब मुझे इस घटना की जानकारी मिली तो मैंने उसको दलित छात्रों के साथ एडजस्ट कराया।

स्कूल के बाद जब कॉलेज में गया तो वहां भी ऊंची जाति के शिक्षकों द्वारा भेदभाव किया जाता था। भेदभाव की घटनाओं ने मुझे बाबा साहेब को विस्तार से जानने-समझने का अवसर दिया और यही कारण है कि मैंने बाबा साहेब अंबेडकर को अपने जीवन का सबसे बड़ा आइकन माना।

मैसूर के द्रविड़ आंदोलन के लोगों ने मुझे बाबा साहेब से जुड़ने की प्रेरणा दी

राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल, नोएडा गौतम बुद्ध नगर उत्तर प्रदेश

वर्ष 2013 में मैंने कर्नाटक के मैसूर शहर में अवस्थित केंद्रीय प्लास्टिक प्रावैधिकी और अभियांत्रिकी संस्थान में प्लास्टिक इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। वहां प्रतिवर्ष अंबेडकर जयंती मनाई जाती थी, क्योंकि उक्त संस्थान में द्रविड़ आंदोलन से जुड़े हुए शिक्षकों की संख्या अच्छी खासी थी। इसलिए उनसे भी बाबा साहेब के बारे में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।

मेरे जैसे दलित और मज़दूर राईट को लेकर संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता के लिए बाबा साहेब अंबेडकर का संपूर्ण जीवन वृतांत एक संदेश है और इसलिए मैं बाबा साहेब के तमाम साहित्य को पढ़ता हूं, सीखता हूं और कोशिश करता हूं कि उनके सपनों के भारत का निर्माण करने में अपनी भूमिका निभा सकूं।

शिक्षा अर्जन के दौरान जब यह पता चला कि भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर हैं और उन्होंने दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों और महिलाओं के हित के लिए बहुत सारे कार्य किए हैं तो मैं इससे संविधान के प्रति बहुत श्रद्धावान हो गया और संविधान पढ़ने की मेरी लालसा जगी।

बाबा साहेब ने समाज और राष्ट्र की सेवा करना सिखाया

बाबा साहेब के जीवन की एक घटना जो मुझे सबसे ज़्यादा प्रेरित करती है, वो यह कि नि:स्वार्थ भाव से समाज और राष्ट्र की सेवा करने की उनकी मज़बूत इच्छा शक्ति। बाबा साहेब अंबेडकर आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण इलाज के अभाव में अपने पुत्र और पत्नी को खो बैठे मगर बावजूद इसके अपने समाज के लोगों के लिए निरंतर संघर्ष जारी रखा।

भारत के वंचित वर्ग अपने महान संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के लिए हमेशा कृतज्ञ और ऋणी रहेगा। मैं हमेशा यह प्रयास करता हूं कि जिस तरह बाबा साहेब अंबेडकर ने नि:स्वार्थ भावना से समाज की सेवा की है, उसे आज और व्यापक स्तर पर करना चाहिए।

घर में रहकर बाबा साहेब का साहित्य पढ़े और लोगों को पढाएं

मैं आप सभी को बाबा साहेब अंबेडकर के 129वें जन्मदिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। कोरोना वायरस महावारी के कारण लॉकडाउन है, जिस कराण हम एकत्रित होकर समारोह नहीं कर सकते हैं।

इसलिए आपसे निवेदन इस लिंक पर क्लिक करके बाबा साहेब अंबेडकर के साहित्य को पढ़ें और परिजनों को समझाएं। यही बाबा साहेब को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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