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बुंदेलखंड लॉकडाउन डायरी : कहानियां उन लोगों की, जिनकी बात कोई नहीं करता

फोटो साभार- रिज़वाना तबस्सुम

फोटो साभार- रिज़वाना तबस्सुम

मैं पहले चाय समोसा की दुकान लगाता था लेकिन लॉकडाउन में दुकान बंद हो गई, कोरोना की वजह से घर-परिवार भुखमरी के कगार पर आ गया तो अब मैं सब्ज़ी की दुकान लगाने लगा हूं।

यह कहते हुए मऊ कस्बे के छोटेलाल गुप्ता की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। अपनी आंखों से बहती आंसुओं को पोछते हुए छोटेलाल कहते हैं, “जब कोरोना की वजह से सब कुछ बंद हुआ तो मैं सब्ज़ी की दुकान लगाने लगा, दुकान लगाने का समय प्रशासन बदलता रहता है।”

वो आगे कहते हैं कि मुझे सब्ज़ी बेचना भी नहीं आता है, कई बार मेरी सब्ज़ियां खराब हो जाती हैं। सब्ज़ी के अलावा और किसी चीज़ की दुकान नहीं लगा सकते। दो वक्त की रोटी के लिए कर रहे हैं।

ये हालत केवल छोटेलाल की नहीं है, छोटेलाल जैसे उन तमाम काम-करने वालों की है जो रोज़ काम करने वाले और रोज़ खाने वाले हैं। अगर ये लोग काम नहीं करेंगे तो इनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं होगा।

लगातार कैश कम होता जा रहा है, भुखमरी और गरीबी बढ़ती जा रही है, अगर लोग दूसरे कामों को छोड़कर सब्ज़ी बेचने लगेंगे तो कितने लोग सब्ज़ी बेचेंगे? कुछ जगह से तो ये भी खबरें मिल रही हैं कि लोग नए सब्ज़ी बेचने वालों से सब्जियां नहीं ले रहे हैं।

भुखमरी के कगार पर नाई का परिवार

फोटो साभार- मीरा जाटव

मवई रोड के एक नाई की दुकान (हेयर कटिंग) पिछले 15 दिनों से  बंद पड़ी है। दुकानदार कहते हैं, “परिवार को खाना नहीं मिला तो दो दिन तक पानी पी-पीकर गुज़ारा किए लेकिन इसके बाद बच्चे भूख से तड़प रहे थे, हम घर-घर बाल काटने के लिए निकल गए।”

वो कहते हैं कि अपने जिस दुकान में हम शान से बाल काटते थे आज हमें दूसरे का दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है। कोई दरवाज़ा खोलता है, कोई बाल कटाता है तो कोई भगा देता है। पेट की आग है शांत करने के लिए कुछ भी सुन लेते हैं।

वो बताते हैं, “बाल काटना हमारे यहां पीढ़ियों से होता आया है। हमें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं आता है। कुछ लोग जो मुझे जानते हैं मुझ पर हंसते हैं और कहते हैं  कि पहले लाइन लगवाते थे, अब खुद दरवाजे़-दरवाजे़ भटक रहे हो।”

मोची परिवारों का हाल है बेहाल

फोटो साभार- मीरा जाटव

चित्रकूट ज़िले में सैकड़ों मोची परिवार हैं जो जूते-चप्पल की सिलाई से अपनी आजीविका चलाते हैं। लॉकडाउन के बाद से उनकी रोज़ी-रोटी पूरी तरीके से बंद हो गई है। सोनू नाम के एक मोची कहते हैं, “हमें समझ नहीं आ रहा है कि हमारा पेट कैसे चलेगा।”

कुछ मोची परिवार कहते हैं कि सुनने में आया है कि हम जैसे लोगों को एक-एक हज़ार रुपए मिलेंगे लेकिन अभी तक तो हमें कुछ मिला नहीं है। ना तो अब तक कोई हमारी कोई मदद करने आया है।

एक मोची परिवार कहते हैं, “हम लोगों को राशन तो पहले भी मिलता था। उसके बाद भी जितनी कमाई करते थे सब खत्म हो जाता था, अब राशन तो मिल रहा है लेकिन परिवार ज़्यादा है, पेट नहीं चल पा रहा है। छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिनके लिए रोज़ शाम को कुछ लाते थे, अब जब हम उनकी पेट ही नहीं भर पा रहे हैं तो कोई और सामान कहां से लाएंगे?”

कोरोना वायरस की वजह से देश का मज़दूर वर्ग पूरी तरह से टूट गया है। ये वो समुदाय है जो हमेशा से पीछे रहा है, अभी तक यह समुदाय विकास नाम से कोसों दूर है, अब जब एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या आ गई तो सबसे ज़्यादा परेशान भी मजदूर वर्ग ही है। ये लगातार और ज़्यादा पीछे होते जा रहे हैं। मोची तो वो समुदाय है जो सबसे पिछड़े वर्ग से आते हैं, इनकी स्थिति कितनी बदतर हो रही है।

कोटेदार राशन देने में कर रहे हैं आनाकानी

फोटो साभार- मीरा जाटव

सरकार की तरफ से कोटेदार को राशन देने के आदेश तो आ गए हैं लेकिन शायद कोटेदार को सरकार की बात ठीक से समझ नहीं आई है, तभी वे लगातार राशन देने में आनाकानी कर रहे हैं।

बायोमेट्रिक मशीनों पर अंगूठा नहीं लगने पर आधार कार्ड से राशन देने का प्रावधान है लेकिन यहां अगर अंगूठा नहीं लगा तो लोगों को तब तक कोटेदार का चक्कर लगाना पड़ता है जब तक बायोमेट्रिक मशीन अंगूठे का निशान ना ले ले।

मानिकपुर के चुरेहकेसरुहा गाँव की 60 साल की शोभा जो आदिवासी हैं, उनके पास अन्त्योदय राशन कार्ड तो है मगर कोटेदार ने इसलिए राशन नहीं दिया क्योंकि उनका अंगूठा मशीन में शो नहीं कर रहा है।

उनके पति मोतीलाल ने भी कोशिश की लेकिन उनको यह कहा गया कि तुम जाओ अधिकारी से लिखाकर लाओ ताकि बिना अगूंठा के राशन दे सके।

चुरेहकेसरुहा गाँव के एक यक्ति बताते हैं कि वे दोनों बुजुर्ग पति-पत्नी किसी तरह से तहसील में कई चक्कर लगाएं लेकिन वहां पर उनकी बात किसी ने नहीं सुनी।

फिर रसद विभाग खाद आपूर्ति विभाग में अधिकारी से राशन कार्ड में लिखवा लिया कि इनको राशन दे दिया जाए। फिर इनका आधार सीडिंग हेतु कार्यालय में जमा हो गया है। वे पति-पत्नी दोबारा राशन लेने गए तो कोटेदार ने कहा, “मैं राशन नहीं दे सकता हूं जब तक अंगूठा नहीं शो करेगा।”

महिला कोटेदार को किया जा रहा है परेशान

चित्रकूट ज़िले के गिदुरहा गाँव की संजो बताती हैं, “मेरी बेटी कोटेदार है, एक दिन रात को उसका पति आकार उससे फ्री में राशन मांगने लगा, मेरी बेटी बोली अभी तक सरकार की तरफ से ऐसा राशन नहीं आया है, उसने यह भी कहा कि जिसे ज़रूरत है उसे कहो कि यहां आए ताकि मालूम चले कि उसे ज़रूरत है भी या नहीं, ज़रूरतमन्द हुआ तो अपने पास से दे सकते हैं। फिर उसका पति उसे गालियां देने लगा।

संजो कहती हैं, “मेरी बेटी काफी परेशान हो गई, वो कहती है कि हम महिलाओं पर पुरुष इतना हक क्यों चलाते हैं, हमें क्यों हमारा काम नहीं करने दिया जाता है। पुरुष कितनी भी गलतियां कर लें कितना भी घोटाला कर लें कोई महिला नहीं बोलती है, हम अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं तो लोगों को इतना बुरा लग रहा है।”

संजो और उनकी बेटी तो एक उदाहरण मात्र हैं, देश में आज भी पुरुषों का वर्चस्व कायम है। भले ही चुनाव महिलाओं के नाम पर लड़े जाते हों लेकिन प्रधान पुरुष होते हैं, भले ही महिला प्रधान हो लेकिन बात पुरुष प्रधान ही करेंगे। कहीं जाना हो पुरुषों के साथ जाओ। कोई काम करना है पुरुषों से पूछ लो। आखिर कब तक पुरुष महिलाओं पर हावी रहना चाहते हैं, आखिर कब तक वे अपना वर्चस्व दिखाना चाहते हैं?


नोट: इस आर्टिकल को रिज़वाना तबस्सुम और मीरा जाटव द्वारा लिखा गया है।

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