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“कैसे कुछ मीम्स और जोक्स के बहाने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को दिया जा रहा है बढ़ावा”

Violence Against Women Amid Lockdown

देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। भारत सरकार ने इसे देखते हुए लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया है। इस बीच दो तरह की खबरें महिलाओं के संदर्भ में आ रही हैं।

पहली, घरेलू हिंसा से जुड़ी हुई और दूसरी सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ फैलते भद्दे मीम्स और जोक्स की। ये दोनों ही चीज़ें कोरोना से भी तेज़ी से फैल रही हैं। दोनों के पीछे एक ही कारण है ‘पितृसत्ता’।

कोरोना के दौर में एक जंग पितृसत्ता से भी लड़ रही हैं महिलाएं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति शारीरिक रूप से बीमार हो रहे हैं लेकिन पितृसत्ता से संक्रमित व्यक्ति मानसिक तौर पर बीमार हो चुके हैं। जब लॉकडाउन का इतिहास लिखा जाएगा, तब यह भी लिखा जाएगा कि महिलाएं कोरोना के दौर में एक जंग पितृसत्ता के खिलाफ भी लड़ रही थीं।

पितृसत्ता का एक रूप घरों में बैठकर भौतिक शोषण कर रहा है, तो दूसरा रूप ऑनलाइन दुनिया में सोशल मीडिया के ज़रिये महिलाओं की योग्यता का भद्दे मीम्स और जोक्स के ज़रिये आकलन कर रहा है।

यह सब उस देश में हो रहा है जहां के प्रधानमंत्री ने महिला दिवस के मौके पर महिलाओं को सम्मान देते हुए अपना सोशल मीडिया अकाउंट उन्हें समर्पित कर दिया था।

हाल ही में महिला दिवस पर लैंगिक भेदभाव से जुड़े मुद्दों पर सेमिनार से लेकर व्याख्यान तक आयोजित हुए, कई सारे लेख लिखे गए और सोशल मीडिया पर तो लैंगिक समानता से जुड़े लंबे-चौड़े पोस्ट्स की बारिश ही हो गई थी।

इन सब के बीच सबसे ज़्यादा दुःखद बात यह है कि वह सब कुछ सिर्फ उसी दिन के लिए था। मतलब यह कि महिला दिवस पर लैंगिक समानता की बातें फैशन थीं जिनमें तथाकथित पुरुषों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अब ऐसे लोगों की कुंठित सोच लॉकडाउन के दिनों में उमड़कर बाहर आ रही है और यही इस समाज की असल सच्चाई है।

लॉकडाउन में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

इस लॉकडाउन के बीच सबसे पहले घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों पर गौर करना बहुत ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि यह हमारे समाज की लगभग आधी आबादी से जुड़ा मामला है। कोरोना संक्रमण से भी तेज़ी से घरेलू हिंसा के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।

लॉकडाउन की वजह से जहां एक ओर लोग अपने घरों में बंद हैं, वहीं दूसरी ओर इन बंद घरों से लगातार घरेलू हिंसा की खबरें आ रही हैं।

सरकारें हर रोज़ कोरोना के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सूचना दे रही हैं। कोरोना संक्रमित मरीज़ों का युद्धस्तर पर ईलाज भी हो रहा है लेकिन सरकार घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों को नियंत्रित कर पाने में असफल साबित हो रही है।

घरेलू हिंसा के मामलों में 95 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

राष्ट्रीय महिला आयोग ने देशव्यापी बंदी से पहले और बाद के 25 दिनों में विभिन्न शहरों से मिली शिकायतों के आधार पर यह दावा किया है कि घरेलू हिंसा के मामले 95 प्रतिशत बढ़ गए हैं।

लॉकडाउन से पहले महिला आयोग को घरेलू हिंसा की 123 शिकायतें मिली थीं। वहीं, लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के 239 मामले दर्ज़ हुए हैं।

राष्ट्रीय महिला आयोग कि अध्यक्ष का कहना है, “घरेलू हिंसा की ज्यादातर शिकायतें उत्तर भारत से आ रहीं हैं। इनमें दिल्ली, यूपी और पंजाब राज्य की शिकायतें सबसे अधिक हैं।”

घरों की ‘लक्ष्मण रेखा’ के अंदर भी महिलाएं असुरक्षित 

घर बैठे पुरुष तनाव के कारण अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं। स्पष्ट तौर पर, ये वहीं उत्तर भारत है जहां शादी को पवित्र रिश्ता माना जाता है और अपने संस्कृति पर गर्व करने का स्वांग किया जाता हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि ये कैसा पवित्र रिश्ता और संस्कृति है जहां लॉकडाउन के दिनों में भी महिलाओं को अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। जब पूरा विश्व कोरोना संकट से साझी लड़ाई रहा है तब भी महिलाएं अपने घर की चाहरदीवारी में दोहरी मार झेल रही हैं।

इन महिलाओं के लिए पहला संकट 24 घण्टे उनके साथ रहने वाले उनके पति हैं, जो पितृसत्तात्मक मानसिकता के पोषक हैं और अपनी पत्नियों पर कुंठित होकर पितृसत्ता का डंडा चला रहे हैं। दूसरा संकट उनके सामने घरों के बाहर कोरोना का बढ़ता प्रकोप है। ऐसे वक्त में महिलाएं इससे निपटने के लिए घरों की ‘लक्ष्मण रेखा’ भी पार नहीं कर सकती हैं।

विश्वभर में बढ़े हैं घरेलू हिंसा के मामले

ऐसा नहीं है कि घरेलू हिंसा से जुड़ी खबरें सिर्फ भारत से ही आ रही हैं, बल्कि अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में भी घरेलू उत्पीड़न बढ़ा है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच विश्व और अरब क्षेत्र में घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं और उन्हें कई सामाजिक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा हैं।

लैंगिक समानता के लिए कानून से पहले सामाजिक जागरूकता की ज़रूरत

ये वही विश्व है जिसने हाल ही में लैंगिक सम्मानता के थीम पर महिला दिवस मनाया था। शायद मनाया नहीं था, मनाने का नाटक किया था। लॉकडाउन के दिनों में ऐसी तस्वीरें समाज को आईना दिखाती है कि समाज अभी भी लैंगिक सम्मानता से कितना दूर है।

समाज से लेकर सरकारों को लैंगिक समानता के लिए कानून बनाने से पहले सामाजिक जागरूकता पैदा करना होगा। इसके बाद ही इसे कानून में बंधन में बांधना सही होगा।

अन्यथा महिला सशक्तिकरण के नाम पर बड़े-बड़े आयोजन व्यर्थ हैं। घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों से स्पष्ट हो रहा है कि महिलाएं घर में भी सुरक्षित नहीं हैं।

सरकार ने जारी किया हेल्पलाइन नंबर 

थोड़ी राहत की बात है कि इतने दिनों से सोई हुई सरकार ने इस मामले में अब सुध लिया है। सरकार की तरफ से पीड़ित महिलाओं के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी कर दिया गया हैं और इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी हस्तक्षेप किया है।

ऐसे में ज़रूरी है कि समाजसेवी संगठनों को भी सरकार के साथ मिलकर, पत्नियों को मारने वाले पुरुषों की काउंसलिंग करनी चाहिए।

घरेलू हिंसा से निपटने के लिए हेल्पलाइन नंबर उतना कारगर सिद्ध नहीं होंगा जितना कि पीड़िता उम्मीद करती हैं। ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए सरकार को सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है।

लॉकडाउन में भद्दे मीम्स और जोक्स के सहारे ऑनलाइन दुनिया की प्रताड़ना

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेमिनिज़्म इन इंडिया

अब आते हैं दूसरे मामले पर मतलब सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ फैलाए जा भद्दे मीम्स और जोक्स पर। ऐसे मीम्स और जोक्स के फैलने की रफ्तार कोरोना से कई गुना तेज़ है।

महिलाओं को प्रताड़ित करने का ये तरीका घरेलू हिंसा से ज्यादा भयावह हैं, क्योंकि घरेलू हिंसा के ज़्यादातर मामलों में पुरूष या उसके घर वाले सहयोग करते हैं।

लेकिन मीम्स और जोक्स की ऑनलाइन दुनिया में पूरे सोशल मीडिया पर महिलाओं के खिलाफ कुंठित सोच रखने वाले लोगों की भरमार हैं। ऑनलाइन महिलाओं को प्रताड़ित करने में तथाकथित पुरुषों का एक बड़ा तबका हैं।

उदहारण के लिए, वेबसाइट टि्वटर पर कृष्णा नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘‘पहले घर में पति-पत्नी के बीच कहा जाता था-सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर ऑफिस जाना है और अब कह रहे हैं- सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर बर्तन धोना, झाडू-पोंछा भी करना है।”

इस ट्वीट को 2 हजार से अधिक लोगों ने लाइक और शेयर किया है। ट्वीट शेयर करने वाले ये लोग कुंठित मानसिकता से ग्रस्त हैं। इसी तरह के एक और मीम्स पर गौर करिए। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाथ जोड़कर आग्रह करते हुए दिखाया गया है। मीम्स में कहा गया है,

महिलाओं से निवेदन है कि शांत रहें, जिससे पुरुष घर में रह सकें।

क्या ऐसे मीम्स महिलाओं की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हैं। जब लॉकडाउन के दिनों में लोग घर पर हैं तो इस तरह के कई मीम्स सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर ये मीम्स महिलाओं के शरीर पर भद्दी टिप्पणियां करते हैं और महिला की योग्यता पर कटाक्ष करते नज़र आते हैं।

महिलाओं के खिलाफ मीम्स शेयर करेन वाले ही हैं समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के पोषक

देखने में तो मीम्स या जोक्स हास्य-व्यंग्य जैसे नज़र आते हैं लेकिन इनका उद्देश्य महिलाओं को कम आंकना होता हैं। ऐसे मीम्स या जोक्स शेयर करने वालों कि मानसकिता पितृसत्ता से ग्रसित होती हैं।

यही कुंठित लोग समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के पोषक हैं। ज्यादातर मीम्स में महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंका जाता है।

ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन के दिनों में ही ऐसे मीम्स बन रहे हैं और उसे घिनौनी मानसकिता के साथ शेयर किया जा रहा हैं। इससे पहले भी महिलाओं पर ऐसी ओछी टिप्पणियों के साथ बहुत से मीम्स सोशल मीडिया पर नज़र आते रहे हैं।

फैमिली ग्रुप्स में खुलेआम महिलाओं के खिलाफ मीम्स होते हैं शेयर

सोशल मीडिया अकाउंट्स जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप्प या इंस्टाग्राम के फैमिली ग्रुप में अक्सर ऐसे जोक्स या मीम्स देखने को मिलते हैं जो लड़कियों को लालची, घमंडी या चरित्रहीन बताने की कोशिश करते हैं।

इनमें लड़कों को असहाय और पीड़ित दिखाया जाता हैं। गौर करने वाली बात है कि ये सभी मैसेज, मीम्स और जोक्स हमारे करीबी रिश्तेदार ही भेजते हैं जो उम्र में बड़े और कथित रूप से शिक्षित कहलाना पसंद करते हैं।

कई फैमिली ग्रुप्स में पत्नियों के खिलाफ बड़ी मात्रा में ऐसे जोक्स और मीम्स शेयर किए जाते हैं जिनमें पत्नियों को क्रूर, लालची, पति को हमेशा परेशान करने वाली और उसके लिए सिरदर्द के रूप में परिभाषित किया जाता हैं। इससे स्पष्ट होता है कि ये मीम्स या जोक्स महिला को ‘वस्तु’ के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

बच्चों पर भी हो रहा है पितृसत्तात्मक सोच का असर

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेमिनिज़्म इन इंडिया

एक मीम्स में दिखाया गया है कि लॉकडाउन में पति, पत्नी के साथ रहने के लिए मजबूर है। अजीब विडंबना है कि मीम्स में पति को पीड़ित दिखाया जाता है और पत्नी को जुल्म करने वाले किरदार में रखा गया हैं लेकिन इन्हीं घरों से घरेलू हिंसा की खबरें भी आती हैं, जहां पति अपने पत्नी को प्रताड़ित करता है।

जरा कल्पना करिए कि ऐसे मीम्स और जोक्स का उन बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता होंगा जो फैमिली ग्रुप का हिस्सा हैं।

उस ग्रुप में जब तथाकथित बड़े लोग अपने संकीर्ण मानसकिता का प्रचार करते हैं, ऐसे मे संभावना बढ़ जाती है कि बच्चे भी धीरे-धीरे संकीर्ण मानसकिता के गिरफ्त में आ जाएं।

आम तौर पर हमारे समाज में जब भी स्त्री के प्रति कुंठित मानसिकता की बात होती है, तो हम अपने सोच को सिर्फ महिला अधिकार के दमन तक सीमित कर लेते हैं। क्या स्त्री का दमन या अपमान सिर्फ संविधान द्वारा प्रदत्त महिला अधिकारों से वंचित कर देने से या उसका उल्लंघन करने से ही होता हैं।

जब हम अपने बोल-चाल की भाषा में कुछ ऐसे शब्दावली का प्रयोग करते हैं जिससे महिला या लड़की की योग्यता का आंकलन होता हैं। ऐसी स्थिति का क्या?  ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी मानसिकता हमारे ज़हन में कहां से घर कर गई। इसका जवाब बहुत हद तक सोशल मीडिया पर फैलते भद्दे मीम्स और जोक्स हैं।

ये मीम्स और जोक्स सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि एक मानसिकता है

ऐसे सामग्री को आप मजाक कह कर, गंभीरता से नहीं लेने की वकालत कर सकते हैं। गौरतलब है कि मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि हम अक्सर मजाक में वो बातें कह देते हैं जो हम असल में सोचते हैं।

लेकिन सही समय और स्थिति न मिलने की वजह से हम वो बाते नहीं कर पाते हैं। अनुकूल माहौल मिलते ही हम वो बातें मजाक के रूप में सबके सामने रख देते हैं।

यकीन मानिए इसे मजाक मान के नहीं नकारा जा सकता है, ऐसी सामग्री रूढ़िवादी मानसकिता को बढ़ावा देती है। ऐसे मीम्स या चुटकले लैंगिक भेदभाव और महिला हिंसा की पैरवी करते हैं। ऐसे में यह हमारा फर्ज़ बनता है कि ऐसे भद्दे मीम्स या जोक्स का विरोध करते हुए रिपोर्ट करें।

अगर कोई शख्स ऐसे जोक्स सुना रहा है तो उसका कड़ा प्रतिकार करें। उस शख्स को समझाए कि मनोरंजन के नाम पर महिलाओं के खिलाफ फूहड़ चुटकले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।

लॉकडाउन में हिंसा करने के बजाय पत्नी के साथ घर के कामों में करिए सहयोग 

पुरुषों को मेरा व्यक्तिगत सलाह है कि आपको बहुत दिनों बाद भाग-दौड़ की जिंदगी से राहत मिली है। घर-परिवार के साथ खुशियां मनाइएं। बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने पत्नी के साथ खुद पर भी लीजिए।

पत्नी के साथ घर के काम में सहयोग करिए। पत्नी के जज्बात को समझिए, एक स्त्री के खालीपन को अपने प्यार के आगोश में भरिए। घर पर बैठकर अपने जीवन संगिनी के साथ परिवार के सुनहरे भविष्य की योजना बनाइए।

इस लॉकडाउन में हिंसा और फूहड़ मजाक करने के बजाय, उनके सहभागी बनिए वर्क फ्रॉम होम से वर्क फॉर होम के लिए।

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