Site icon Youth Ki Awaaz

“मेरी दोस्त ने मुझे ज़िन्दगी में कॉमा और फुल स्टॉप का महत्व समझाया”

ट्विंकल

ट्विंकल

“एक औरत ही दूसरी औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है।” यह वाक्य अक्सर कानों में पड़ ही जाता है। इस बात से कभी कोई इनकार कर भी नहीं सकता कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में एक अन्य महिला का सबसे बड़ा हाथ होता है।

यह अपराध किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। ट्रैफिकिंग, घरेलू हिंसा, दहेज और लक्ष्मी केस के बारे में तो सुना ही होगा आपने, जिस केस में मुंह पर एसिड डालने वाली भी एक लड़की थी।

बड़ी साज़िश होने का आभास

पता है मुझे ना इन सब के पीछे एक बहुत बड़ी साज़िश लगती है। मुझे लगता है कि लोग इस बात से डरते हैं कि महिलाएं अगर एक साथ आ गईं तो उनसे ज़्यादा मज़बूत कोई नहीं होगा. इसलिए वे महिलाओं को हमेशा उनके खिलाफ ही इस्तेमाल करते हैं। मैंने ये बात अपने ग्रैजुएशन के दूसरे सालों में बड़े ही करीब से महसूस की थी।

उस वक्त मुझे एक सहेली साक्षी राय मिली। वह बाकी लड़कियों से अलग थी बेहद अलग, उसको अपने पतले बाल और चिपके हुए टॉप से दिखने वाले थुलथुले पेट से भी कोई दिक्कत नहीं थी।

वह असल में बिल्कुल अलग है मतलब एकदम हटकर। उसे ऐसे तो भीड़ में पीछे खड़े रहना होता था मगर जब कॉलेज में कोई प्रेस वाले आते तो वह सबसे आगे होती।

मैंने भी कुछ चीज़ें बिना जीतने की इच्छा लिए शुरू की

मुझे आज भी याद है कि कॉलेज में एक कॉस्मेटिक कंपनी के प्रमोशन के लिए कुछ लोग आए थे। एक बोर्ड लगाने के बाद उन्होंने बताया कि कट-आउट के साथ फोटो लेना है। लड़कियों को तीन पोज़ में फोटो खिंचवाना था, मैं तो सबसे पीछे खड़ी हो गई और मैडम सबसे आगे।

वह अपने उजड़े बालों, मटमैली सलवार की चिंता किए बगैर स्टेज पर चढ़ गई। फिर क्या था मैडम ने दाएं-बाएं देखे बिना अजीबो-गरीब तरह के मुंह बनाए और वापस आ गई।

जब वह स्टेज से उतरी तो मैंने उससे पूछा कि यह करने से क्या होगा? जबकि सच्चाई तो यही है कि सेलेक्शन नहीं होगा। मेरे इस सवाल पर उसने जवाब दिया कि हर बार जीतना ही क्यों ज़रूरी है।

कभी-कभी बस मन को खुश करने के लिए चीज़ें कर लेनी चाहिए। उसकी इस बात ने मुझे बेहद प्रभावित किया। फिर मैंने भी कुछ चीज़ें बिना जीतने की इच्छा लिए शुरू कर दी।

ज़िंदगी में कॉमा-फुल स्टॉप का इस्तेमाल

ट्विंकल सिंह और साक्षी।

अगर आपको साक्षी के बारे में जानकार ऐसा लगने लगा है कि वह हर दम खुश रहने वालों में से है तो यह अधुरा सच है। साक्षी परेशान होती है, चीखती है, चिल्लाती है, खीझती है और गिरती भी है मगर वापस खड़े होने के लिए। वह भी इस विश्वास के साथ कि इस बार वह अपनी गलतियां नहीं दोहराएगी। वह लड़की है मगर घर के बड़े बेटे वाले सारे फ़र्ज़ पूरा करती है।

साक्षी ज़िंदगी में कॉमा और फुल स्टॉप का प्रयोग करना बहुत अच्छे से जानती है। उससे ही सीखा है मैंने ज़िंदगी दूसरों से पहले खुद के लिए जीना। मुझे याद है उसकी तड़प जब सात साल के बच्चे की तरह पाले गए उसके प्रेम-सम्बन्ध ने आखिरी सांस ली थी।

वह हर दिन अपने आप को संभालने की जी तोड़ कोशिशों में लगी थी। कोशिश पुरज़ोर थी मगर अकाल मृत्यु मरे उस रिश्ते के भूत से पीछा नहीं छुटा था। गाहे-बगाहे, चौक-चौराहे नज़र आने लगा था वो भूत और एक दिन तो ऐसा पाला पड़ा कि निशान मन के अलावा गाल पर भी छप गए।

इन सब में जो सबसे बेहतर हुआ वो यह कि उसका बड़ी बहादुरी से उस जाल से बाहर निकल आना। अपने साथ हुई चीज़ों का रोना लेकर बैठने के बजाए उसने चुना अपनी ज़िंदगी को नई दिशा देना। अगर वह सही समय पर फुल स्टॉप ना लगाती तो शायद उसकी ज़िंदगी में नया पैराग्राफ शुरू ही ना होता।

उसे तो शायद पता भी नहीं होगा कि अनजाने में उसने अपनी जैसे कई लड़कियों को कितनी बड़ी सीख दे दी। जिसके भरोसे कई नए चैप्टर्स लिखे जाएंगे। वैसे इतनी सारी अच्छाइयों के बीच जो एक सबसे बड़ी समस्या है वो यह कि उसकी हरी सब्ज़ियों के प्रति नफरत।

मैडम सिर्फ आलू खाती हैं और दिन-ब-दिन आलू की तरह होती जा रही हैं। साक्षी का व्यक्तित्व भी आलू की तरह ही है। जिस प्रकार से आलू को किसी भी सब्ज़ी के साथ मिला देने पर स्वाद बढ़ ही जाता है, उसी तरह से साक्षी में भी हर रिश्ते को बखूबी निभाने का गुण है।

Exit mobile version