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पालघर मॉब लिंचिंग कैसे बना एक सांप्रदायिक मुद्दा?

Palghar Lynching

पालघर में साधुओं को पीट-पीटकर मार डाला गया।

पालघर में दो साधुओं सहित तीन लोगों की भीड़ द्वारा हत्या की खबर पर इन दिनों सबसे ज़्यादा बात की जा रही है। इस भयावह घटना से जुड़े कई तरह के नैरेटिव सामने आ रहे हैं जिनमें इस घटना को एक सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी की गई है।

हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने यह साफ किया है कि इस घटना का कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं है। इसके बावजूद भी इस घटना को धर्म से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है, यह समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि इसे मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा किस तरह रिपोर्ट किया गया।

क्या हुआ जब पहली दफा मीडिया में आया यह मुद्दा?

पालघर में भीड़ ने दो साधुओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी।

16 अप्रैल की रात को मुंबई के पास स्थित पालघर में यह घटना होती है। नैशनल मीडिया में इसकी खबर एक मीडिया हाउस के कोरोना वायरस सम्बंधित लाइव आर्टिकल में सबसे पहले आती है।

मात्र दो लाइन की इस खबर में ना तो मृतकों के हिंदू या साधु होने का कोई ज़िक्र नहीं होता है और ना ही इस घटना के सांप्रदायिक होने की कोई बात होती है। उस वक्त तक किसी अन्य हिंदी या अंग्रेज़ी मीडिया हाउस द्वारा इस घटना को कवर नहीं किया जाता है।

मीडिया द्वारा पालघर के इस मॉब लिंचिंग की घटना को प्रमुखता से तब कवर किया जाने लगता है जब यह ऑनलाइन सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगता है।

लेकिन सोशल मीडिया पर इस घटना के साथ एक तरह का कम्युनल नैरेटिव जोड़ दिया जाता है। वायरल होते पोस्ट्स और वीडियोज़ में ना तो इस घटना की अधिक जानकारी होती है और ना ही इसे अंजाम देने वाले लोगों के बारे में बताया जाता है। अधिकतर जगह यही कहा जाता है कि दो साधुओं की भीड़ द्वारा बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।

पालघर मामले को सांप्रदायिक रंग देते हुए ट्विट।

अब हम आमलोगों द्वारा, जिनका दिमाग पिछले 7-8 सालों से हिंदू-मुसलमान की डिबेट में लगाया गया है, यह मान लिया गया कि मॉब लिंचिंग में मरने वाले हिंदू हैं, तो इनकी हत्या ज़रूर मुस्लिमों ने की होगी।

मुसलमानों को विक्टिमाइज़ कर तैयार किया गया प्रोपेगेंडा

पालघर मामले को सांप्रदायिक रंग देते हुए किया गया ट्विट।

हाल-फिलहाल में मुस्लिमों के बारे में कोरोना से जुड़ी जो खबरें चलाई गई हैं उनकी वजह से इस अवधारणा को और भी बल मिला। इस पूरे घटनाक्रम से मीडिया की कार्यशैली का पता चलता है, जो किसी खबर को प्रोपेगेंडा के तौर पर फैलने में मदद करता है।

प्राइम टाइम पर क्या जाएगा इसका फैसला न्यूज़ प्लैटफॉर्म्स इस बात से करते हैं कि सोशल मीडिया पर उस दिन क्या चल रहा है ताकि वे ज़्यादा लाइक्स, शेयर, और व्यूज़ बटोर सकें।

सोशल मीडिया के ट्रेंड जो कि पेशेवर IT सेल द्वारा बनाए और चलाए जाते हैं, आखिरकार वही न्यूज़ का हिस्सा बनने में सफल होते हैं। इन IT सेल द्वारा फेक न्यूज़ या फिर खबरों को इस तरह तोड़ मरोड़कर पेश किया जाता है जिससे उनका राजनीतिक एजेंडा पूरा हो।

अब हम एक ऐसे दौर में हैं जब खबरें सोशल मीडिया को आधार बनाकर बनाई और चलाई जाती हैं जिनका मकसद न्याय दिलवाना या अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना नहीं, बल्कि व्यूज, क्लिक्स और TRP बटोरना होता है।

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