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लॉकडाउन: कैसे मज़दूरों के अभाव में किसान खुद कर रहे हैं फसलों की कटाई

Farmers During Lockdown

Farmers During Lockdown

जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम ने पिछले कुछ सालों में बड़ा करवट लिया है। बारिश का बदलता चक्र किसानों के लिए संकट बनकर बरसता रहा है।

पूरे देश में विशेष रूप से उत्तर-मध्य और पश्चिमी भारत के किसानों के लिए बेमौसम बारिश, आंधी और ओलावृष्टि संकट का तूफान ले आती रही है। अचानक बदलते मौसम का फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहा है।

पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि असामान्य बारिश, तापमान, कीटों का प्रकोप, बाढ़, सूखा और ओलावृष्टि से खेती-बारी को बहुत नुकसान हुआ है। अतिवृष्टि (अत्याधिक बारिशऔर अनावृष्टि (अत्याधिक सूखा) कृषि के लिए बड़े संकट के समान हैं।

कोरोना के बीच अपनी फसल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं किसान

जब पूरा भारत कोरोना संकट से जूझ रहा है उसी वक्त भारत के किसान इस संकट में दोहरी मार झेल रहे हैं। कुछ दिन पहले बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने किसान की फसल को बड़ी मात्रा में तबाह कर दिया है।

अब कोरोना संकट ने किसान के सामने कई नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। लॉकडाउन की वजह से मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। इससे खेतों में पक चुकी फसल की कटाई प्रभावित हो रही हैं। फसल की कटाई में समय लग रहा है।

कई ऐसे मज़दूर हैं जो इन दिनों क्वारंटाइन में हैं, जिससे खेती-किसानी में समस्याएं बढ़ रही हैं। मज़दूरों के अभाव में किसानों को खुद रबी फसल विशेष रूप से गेहूं की कटाई करनी पड़ रही हैं।

बेमौसम बरसात से परेशान हैं किसान

इससे पहले बेमौसम बरसात का कहर हाल के दिनों में किसानों ने झेला है। अभी गेहूं की कटाई पूरी नहीं हुई थी कि पिछले दिनों उत्तर और मध्य भारत में किसानों को एक बार फिर बेमौसम बारिश की मार झेलनी पड़ी है।

आमतौर पर तेज़ बारिश की वजह से गेहूं के बालें मुड़ जाती हैं और दलहन जैसी फसलों का रंग बदल जाता है। तेज हवा और ओलावृष्टि से गेहूं का दाना कमजोर हो जाता है, उसमें कई बार दाग लग जाता है। इससे किसानों को मंडी में अपने फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

बड़े पैमाने पर जब फसल खराब हो जाती है, तो बाजार में फसल का दाम बढ़ना स्वभाविक है। परिणामस्वरूप राशन का दाम महंगा हो जाता है। अगर वक्त से पहले कटाई नहीं हो पाती है, तो सरसों और चने की फसल खेतों में ही सूख जाएं इसकी संभावना भी बढ़ जाती है और उसके दाने खेतों में ही गिर जाते हैं।

लॉकडाउन के बीच मज़दूरों का अभाव

इन दिनों फसल पक चुकी हैं और किसान मजदूर के अभाव में अपने परिवार के सहयोग से युद्धस्तर पर कटाई में लगे हैं लेकिन बेमौसम बारिश ने किसानों की उम्मीद पर फिर से पानी फेर दिया है।

ऐसा नहीं है कि किसानों को कोरोना संकट में ही बेमौसम बारिश के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। याद करिए इसी साल के मार्च महीने में जब मूसलाधार बारिश, आंधी और ओलावृष्टि हुई थी, तब भी किसानों की फसल बड़े पैमाने पर नुकसान हुई थी। ये वो समय था जब फसल तैयार होने की आखिरी चरण में थी।

आंकड़ों के मुताबिक 15 प्रदेशों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी। 6 प्रदेश अधिक बारिश वाली श्रेणी में शामिल थे। भारी बारिश उन जगहों पर हुई, जहां सबसे ज्यादा गेहूं, सरसों और दलहन की खेती होती हैं। बारिश लगभग 400 फीसद से ज्यादा हुई थी।

इन कागजी आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि किसानों की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी और किसानों को आर्थिक रूप से बड़ा झटका लगा था।

जमीन पर यह स्थिति कुछ ज्यादा ही दिखती है, क्योंकि हमारे देश में किसानों से जुड़े आंकड़े इतने भी दुरुस्त नहीं होते है कि जमीन की हकीकत कागज पर छप जाए।

कुदरत के कहर से किसानों की आर्थिक स्थिति लगातार हो रही है कमज़ोर

किसानों को एक तरफ खरीफ फसल की बुआई के दौरान सूखे की मार झेलनी पड़ती है, वहीं दूसरी तरफ उसे रबी फसल के दौरान बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का सामना करना पड़ता हैं।

इसका परिणाम कई बार इतना भयावह होता है कि किसान को इसकी कीमत अपनी जान देकर जान चुकानी पड़ी है। बैंक, सेठ, साहूकार गाँव में आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति और ना जाने किन-किन लोगों से आर्थिक मदद लेकर किसान बुआई करता है।

मध्यमवर्गीय किसान परिवार के सभी सदस्य बिना थके फसल को पकाने में मेहनत करते हैं, लेकिन अचानक किसी रोज़ उसके फसल पर कुदरत का कहर टूट पड़ता है और किसान एक बार फिर निराश हो जाता है।

किसान बाज़ारों में भी झेलता है आर्थिक शोषण

किसी तरह खुद को प्राकृतिक मार से तो किसान खुद के बचा लेता है लेकिन अपनी फसल नहीं बचा पाता। किसानों के पास बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से बचने का कोई उपाय नहीं हैं।

किसानों के संकट के कहानी कुछ ऐसी है कि वो पहले प्राकृतिक मार को झेलता है। जब थोड़ा बहुत फसल बच जाती है, तो उसे बेचने के लिए बाज़ार में जाता है, वहां उसे दलालों का सामान करना पड़ता है। ऐसे में उसका आर्थिक शोषण भी होता है।

इससे क्षुब्ध होकर कई बार किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। हमारे देश का किसान हमेशा से राजनीतिक नीतियों में पिसता आया है। फिर बेमौसम बारिश, आंधी और ओलावृष्टि उसकी कमर तोड़ देती है और अब इन दिनों कोरोना संक्रमण से किसानों प्रभावित है।

बदलते मौसम से मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी हो रही है प्रभावित

भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील है। जलवायु परिवर्तन के वजह से तापमान में लगातार वृद्धि से किसानों का क्षेत्र भी अछूता नहीं हैं। परिणामस्वरूप सूखा बढ़ता जा रहा हैं और कई क्षेत्रों में तो बाढ़ भी आ जाता है। इससे किसानों का काफी नुकसान बढ़ता जा रहा है।

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर गेहूं का उत्पादन 4 से 5 करोड़ टन कम हो जाता है। इसी तरह 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से उत्पादन 0.75 प्रति हेक्टेयर कम हो जाता है।

इस बदलते मौसम का प्रभाव सिर्फ फसलों पर ही नहीं, बल्कि खेत के मिट्टी की उर्वरक क्षमता पर भी पड़ता है। बढ़ते भूमि प्रदूषण के वजह से फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

जलवायु परिवर्तन किसानों के लिए बड़ी समस्या

पहले मानसून तय समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में आता था, जिसके लिए किसान पहले से तैयारी करके रहता था। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के वजह से बेमौसम बारिश ने कृषि क्षेत्र को संकट में ला खड़ा कर दिया है।

कुछ फसलों की पैदावार के लिए विशेष तापमान और वातावरण की जरूरत पड़ती है। जैसे इन दिनों गेहूं की फसल है। इसे ठंडक की आवश्यकता पड़ती है।

तापमान बढ़ने से ऐसे फसलों की खेती सम्भव नहीं हैं। अचानक तापमान में बदलाव और बारिश ऐसे फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं।

आमतौर पर शहर के लोगों के लिए बारिश का मौसम सुहाने पल जैसा होता है लेकिन किसानों के लिए ये परेशानी की बरसात होती है।

फसल बीमा योजना के बारे में गरीब मध्यवर्गीय किसानों को जानकारी नहीं होने के अभाव में किसान अपने फसल की आर्थिक भरपाई भी नहीं कर पाते हैं।

किसानों का एक बड़ा तबका है जो आय के लिए किसानी पर निर्भर रहता है। उदाहरण के लिए हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान में सबसे ज्यादा गेहूं की बुआई की जाती हैं। ज़्यादातर किसानों के लिए यहीं रोजी-रोटी का साधन होता है।

सरकार से मदद की उम्मीद में हैं किसान

इतने बुरे हालात के बाद किसान भी प्राकृतिक मार को झेलते हैं। ऐसे में किसान राज्य और केंद्र सरकार की तरफ उम्मीद की आस लगाए बैठे हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना किसानों को आर्थिक सहारा प्रदान करने में कुछ हद तक सहायक हो पा रही है।

ऐसे बेमौसम बारिश, आंधी और ओलावृष्टि से किसानों को राहत मिले इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार को राजनीति करने के बजाय, किसानों के लिए ठोस नीति बनाए। इससे किसान आर्थिक संकट से उभर सकेग।


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