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“जब मीडिया माउथपीस बन जाए तो समझ लीजिए लोकतंत्र खतरे में है”

फोटो साभार- Twitter

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इस मुद्दे पर लिखना बहुत ही अहम हो गया है। लगातार हमें जो देश के मीडिया की भूमिका बदलती दिख रही है, जिससे देश में एक समुदाय का वर्चस्व एवं उनके खिलाफ मुद्दा निर्धारित किया जा रहा है।

मोदी राज का आगमन

2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी का एकतरफा प्रचार करते हुए भारतीय मीडिया ने सत्ता बदलने की ठान ली थी। गुजरात के मुख्यमंत्री को देश का ब्रांड बनाने के लिए भारतीय मीडिया ऐसे लग गया जैसे देश के अंदर अन्य कोई पार्टी मौजूद ही ना हो।

जिसका असर हमें लोकसभा चुनाव के नतीजों में दिखाई दिया। NDA को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए। इस दौरान मीडिया का एक तरफा होना एक वैचारिक संदेश भी दे रहा था जिससे दूसरी वैचारिक शक्तियां भयभीत थीं।

वैचारिक मीडिया

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद मीडिया ने देश के अंदर तरह-तरह की सूचनाओं को एक वैचारिक रूप देते हुए एजेंडा चलाना शुरू कर दिया। जनता के बीच नरेंद्र मोदी को भगवान का रूप बताकर पेश किया गया।

नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए हर कदम को एक ब्रांड और देश के भविष्य के रूप में देखा गया। जिसमें कई प्रकार की खामियां भी रहीं, जिसे कई चैनलों द्वारा दर्शाया भी जाता रहा है जैसे NDTV, THE WIRE, Quint, BBC एवं अन्य।

चाहे आप नोटबंदी ले लीजिए या जीएसटी की बात कर लीजिए, जितने भी आंकड़े देश के अंदर निकलकर आए हैं, उनमें इन्हें सफल नहीं देखा गया। उसके बावजूद मीडिया ने मोदी ब्रांड का नाम लेकर जनता पर इसको जानबूझकर थोपा ताकि लोगों के बीच नरेंद्र मोदी छवि बरकरार रहे एवं उनके द्वारा लिए गए फैसलों को देशभक्ति के रूप में देखा जा सके।

गैर विपक्षी मीडिया

देश के अंदर तमाम विपक्षी पार्टियां भी हैं जिनका वर्चस्व अन्य राज्यों में होने के बावजूद भी उनके मुद्दों को मीडिया ने दिखाना ही बंद कर दिया है।

चाहे वह काँग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी या अन्य किसी भी पार्टी के मुद्दे हों। मीडिया में उनको इस तरह दबाया जा रहा है जैसे देश के अंदर विपक्ष मौजूद ही नहीं है।

मीडिया का धर्मांतरण

धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी के राज का मीडिया माउथपीस बनकर एक समुदाय के प्रति देश के अंदर ज़हर घोलने के काम में लग गया जो कि देश की धर्मनिरपेक्षता और के लोकतांत्रिक ढांचे पर खतरा बनता जा रहा है। एक समुदाय के जीवन जीने के अधिकार को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।

दिल्ली दंगों में हुई मीडिया डिबेट या मौजूदा निज़ामुद्दीन मरकज़ का मामला मीडिया की कार्यशैली पर ज़रूर सवाल खडृे करते हैं।

विपक्ष द्वारा भाजपा को दलित विरोधी एवं मुसलमान विरोधी सरकार कहा जाता है और इसे सच साबित करने में शायद मीडिया ज़ोर आज़माइस कर रहा है। शायद इसलिए मीडिया लगातार नरेंद्र मोदी का पक्ष लेते हुए विपक्ष को घेरता रहता है।

इस वजह से काफी विपक्षी दलों ने टीवी चैनलों पर अपने प्रवक्ता ही भेजने बंद कर दिए हैं। टीवी चैनलों द्वारा फैलाया हुआ ज़हर देश के लिए धीरे-धीरे घातक बनता जा रहा है जिसको रोकना बहुत ज़रूरी है। देश की जनता को तय करना है कि किस प्रकार वह मीडिया की भूमिका को स्वीकारती है।

न्यायालय के रूप में दोष सिद्ध करना मीडिया का कार्य नहीं

न्यूज़ चैनलों द्वारा मुद्दा निर्धारित किया जाता है, उसी मुद्दे पर लगातार दबाव के दौरान सरकारों को आजकल एक्शन लेना पड़ रहा है। वहीं, एक पक्ष पर कार्रवाई की जाती है और दूसरे पक्ष को मीडिया द्वारा सही ठहरा दिया जाता है।

जनता को तय करना है क्या सही है और क्या गलत? लेकिन देश के अंदर धर्मनिरपेक्षता बनी रहनी चाहिए, लोकतंत्र बना रहना चाहिए। डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाया गया संविधान पूर्ण रुप से लागू होना चाहिए।

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