‘माँ’ एक ऐसा शब्द जिसमें संसार के सभी मर्म समाहित हैं। एक साउथ इंडियन फिल्म का बहुत ही फेमस डायलॉग है, “माँ से बड़ा योद्धा कोई नहीं होता।” इस वाक्य की सत्यता हर किसी ने कभी ना कभी अपने जीवन में ज़रूर महसूस की होगी।
आज जब पूरा विश्व कोरोना नाम की महामारी से जूझ रहा है, तब भी माएं अपनी ममता का परिचय देने से नहीं रुक रही हैं। समाज में इस समय अनेकों उदहारण मौजूद हैं। इन सभी उदाहरणों में एक माँ द्वारा जनहित में की गई अनेकों कोशिशें हैं।
कोविड-19 वैक्सीन का टेस्ट खुद पर कराने वाली जेनिफर हेलर
पहला उदहारण है जेनिफर हेलर का। यूएस की रहने वाली जेनिफर दो बच्चों की माँ हैं। जेनिफर पहली महिला हैं जिन्होंने कोविड-19 वैक्सीन का टेस्ट खुद पर कराया है।
कई सारी मीडिया ऑर्गेनाइज़ेशन से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वो अपनी इस कोशिश से पूरे समाज की मदद करना चाहती हैं। इस टेस्ट के अंत में जेनिफर वापस कभी अपने बच्चों को गले लगा पाएंगी भी या नहीं, इस बात की कोई गारंटी नहीं हैं।
माँ से मिलने के लिए रो रही बच्ची का वीडियो वायरल
दूसरा उदहारण सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक वीडियो से जुड़ा है। सोशल मीडिया की दुनिया में गोते लगा रहा यह वीडियो हर किसी की आंखें नम कर रहा है।
वीडियो में एक बच्ची अपनी माँ से मिलने के लिए रो रही है। वहीं, अपनी बच्ची से दूर खड़ी माँ बार-बार उसे चुप रहने और घर जाने का इशारा कर रही है।
दरअसल, बच्ची की माँ एक नर्स है। कोरोना ड्यूटी के कारण उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ रहा है। खुद के आंसू पोछकर अपनी बच्ची को मुस्कुराने की हिम्मत देनी वाली ये माँ दुनिया भर में नज़ीर पेश कर रही हैं।
रज़िया बेगम बनीं मिसाल
वहीं, तीसरा उदहारण है तेलंगाना की रज़िया बेगम का। निज़ामाबाद में बतौर हेडमिस्ट्रेस काम करने वाली रज़िया के पति की मृत्यु कई साल पहले हो चुकी थी।
उसके बाद से वो अपने दोनों बेटों के साथ अकेले रह रही थीं। क्वारंटाइन के कारण उनका एक बेटा नेल्लोर में ही फंस गया था।
अपने बेटे को वापस लाने के लिए वो तेलंगाना से नेल्लोर स्कूटी चलाकर गई। रोटी और पानी लेकर सफर पर निकली रज़िया बेगम ने 1400 किमी की दूरी को महज़ दो दिन में तय कर लिया।
चौथा उदहारण है ग्रेटर विशाखापत्तनम म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की कमिश्नर सृजना गुम्माला। पिछले महीने अपने पुत्र को जन्म देने वाली इस अफसर ने 6 महीने की मैटरनिटी लीव लेने से इनकार कर दिया है।
इतना ही नहीं, वो अपने नन्हें बच्चे को घर पर ना छोड़कर उसे ऑफिस साथ लाकर अपने माँ होने का धर्म और अफसर होने का फ़र्ज़ साथ निभा रही हैं।
एक तरफ कुछ महिलाएं जहां कांख में बड़ी मोटरी और पीठ पर दूधमुंहा बच्चा लिए अपनी मंज़िल तक जाने के लिए मीलों चल रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर कई महिलाएं अपने बच्चे को होश में लाने के लिए नंगे पैर बेसुध-बदहवास सड़कों पर दौड़ रही हैं।
वहीं, 80 साल की मिज़ो अनजान लोगों के लिए मास्क बनाकर बांट रही हैं। इन माओं की कोई उम्र नहीं होती, ये कभी थकती नहीं हैं। खुद के लिए कभी थककर भले ही दो रोटी कम बना लें मगर अपनों को किसी कमी का कभी एहसास नहीं होने देती हैं।
माएं ज़िन्दगी भर पाई-पाई जोड़कर इकठ्ठा किए अपने स्त्री-धन को भी इस दौर में जनहित के लिए देने से नहीं चूक रही हैं। “भगवान हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने माँ बनाई”, यह कहावत इस दौर में चरितार्थ होती नज़र आ रही है।