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कोविड-19 के दौरान अपने आसपास के प्रवासी मज़दूरों के साथ कैसा बर्ताव करें

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

यह तो हम सभी जानते ही हैं कि प्रवासी लोग अपने अस्थाई निवास या नए शहरों के बारे में उतने जानकार नहीं होते हैं। ऐसे में वे इस समय सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक तनाव से जूझ रहे हैं। लोकल कम्युनिटी की उपेक्षा ने उनमें भय उतपन्न कर दिया है और इन सबके बीच उनके परिवार उनकी फिक्र और इंतज़ार में हैं।

प्रवासी मज़दूरों को रोज़गार और बेहतर कमाई के दबाव में घर छोड़ना पड़ जाता है। कई बार वे अपना पूरा परिवार भी पीछे छोड़कर चले जाते हैं। बहुत से उदहारण हैं जहां उनके परिवार कुछ परिस्थितियों में पूर्णतः इनकी कमाई और भेजे गए पैसे पर ही निर्भर रहते हैं।

प्रवासी मज़दूरों के समक्ष हैं कई मजबूरियां

लेकिन कोविड-19 जैसी महामारी के बढ़ने और तेज़ी से फैलने की वजह से इन प्रवासियों के सामान्य जीवन में बदलाव आ गया है। वहीं, इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग नियम लागू किया गया है। जिससे बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर, कामगर अपने घरों की तरफ चल पड़ने को मजबूर हो गए हैं।

सब तरफ फैलते भयानक कोविड-19 महामारी के चलते प्रवासी मज़दूर हर सम्भव प्रयास कर अपने घरों की तरफ लौट रहे हैं। वहीं, जिनमें से बहुत सारे प्रवासी सीमा रेखाओं पर अटक गए हैं। जिससे विभिन्न राज्यों, ज़िलों और देश की सीमाओं में ये लोग फंसे हुए हैं।

इन प्रवासियों में अधिकांश वही लोग हैं जिनके पास कहने के लिए कोई अधिकार नहीं हैं। ये समाज का वो हिस्सा हैं जो दैनिक मज़दूरी पर अपना जीवन-यापन करते हैं और इन विषम, कठिन परिस्थितियों में उन्हें हमारे साथ, समझ और सहयोग की ज़रूरत है।

दो वक्त की रोटी का जुगाड़ चिंता का सबब

हाल की परिस्थितियों में प्रवासी कामगारों के सामने सबसे बड़ी समस्या भोजन, आश्रय (रहने की व्यवस्था) और स्वास्थ्य सुविधाओं की है। वे इस बात से डरे हुए हैं कि उनमें संक्रमण तो नहीं है? यदि हां तो उसके फैलने का उन्हें डर है।

वे मज़दूरी का नुकसान, परिवार की चिंता, चिड़चिड़ापन और भय का सामना कर रहे हैं। साथ ही कहीं-कहीं उन्हें क्षेत्रीय (लोकल) लोगों द्वारा प्रताड़ना और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना भी करना पड़ रहा है।

तात्कालिक प्रक्रिया के तौर पर होना यह चाहिए कि सामुदायिक आश्रय (कम्युनिटी शेल्टर) और सामुदायिक किचन के साथ ही ज़रूरत की सभी राहत सामग्री सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखते हुए उपलब्ध कराई जाए।

डर के साये में जी रहे हैं प्रवासी मज़दूर

कोरोना संदिग्धों की पहचान की जाए और प्रोटोकॉल का पूरा पालन करते हुए उनकी व्यवस्था देखी जाए। साथ ही ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे वीडियो कॉल और टेलीफोन के माध्यम से उन्हें अपने परिवार से जोड़ा जा सके और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

प्रवासी कामगार अभी ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जहां उन्हें अपने घर तक पहुंचने के लिए आश्रय गृह में रहना पड़ रहा है, जिनमें कुछ क्वारन्टीन सेंटर भी रहे होंगे। अपने घरों तक पहुंचने के लिए उन्हें डर और अवसाद से लड़ना होगा जिसके लिए उन्हें मानसिक मज़बूती के लिए सामाजिक समर्थन की ज़रूरत होगी। इस सहयोग के लिए कुछ तय चीज़ों को अपनाने की ज़रूरत है।


नोट– स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी किए गए दिशा निर्देश के आधार पर इस लेख को लिखा गया है।

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