Site icon Youth Ki Awaaz

दिल्ली के मंडोली जेल में सज़ा काट रहे 57 वर्षीय बुज़ुर्ग कैदी का इंटरव्यू

Thumbnail (23)

Thumbnail (23)

इंटर्नशिप के दौरान दिल्ली में मंडोली जेल विज़िट करने का मौका मिला। हमें कुछ सवाल दिए गए थे जो हमें कैदियों से बातचीत करके भरने थे। हमारा काम मूल रूप से क़ैदियों की भावनाओं को जानना समझना और उनकी समस्याओं से रूबरू होना था।

मुझे और मेरे 19 और साथियों को जेल नं 16 में भेजा गया था। वहां हमारे साथ जेल के अन्य कर्मचारी और जेल ऑफीशियल्स भी थे। हम बैरक में अंदर जा जाकर कैदियों से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान हमने देखा कि सभी की बातें सामान्य ही थीं।

कोने में अपने बिस्तर पर बैठे बुज़ुर्ग ने क्या कहा?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

कुछ के अनुसार उन्हें गलत सज़ा मिली थी। कुछ को अपने किए पर पछतावा था। फिर मेरा बैरक नं 24 जाना हुआ। उस बैरक में कुछ 12 कैदी रहे होंगे। उस बैरक के एक कोने में अपने बिस्तर पर सिकुड़ा हुआ एक बूढ़ा सा व्यक्ति बैठा हुआ था।

मैं उसके पास गई और उसे अपने आने का कारण बताया। उसका हाल पूछा और उससे सवाल करने की अमुमति ली। उसने मेरी तरफ अचरज से देखा और सकारात्मक उत्तर देने की मुद्रा में सर हिलाते हुए मुस्कुराया। बेहद ही शांतिपूर्ण ढंग से उदारता के साथ उसने मेरे सभी सवालों का जबाब दिया।

मुझे पता चला कि वह 57 साल का था और पिछले 25 सालों से जेल में था। उसने अपनी बीबी को बेवफाई में युवक को रंगे हाथ पकड़ने के बाद उसका और उसके आशिक का कत्ल किया था। यह सुनकर मुझे अंदर ही अंदर उससे नफरत हुई। डर भी लगा उस पर और तरस भी आया और दुख भी हुआ।

बुजुर्ग कैदी के शब्दों से मैं प्रेरित हुई

फिर मेरे सवाल धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। मुझे उसकी साफ़ सीधी बातें सुनकर अब अच्छा लगने लग गया था। ऐसा जैसे कि कोई बड़ा अपनी ग़लतियों से सीख दे रहा हो। मेरे एक सवाल पर उसने कहा कि व्यक्ति तब तक किसी चीज़ की अहमियत नहीं जानता जब तक वह उससे छिन नहीं जाती।

उसने आगे कहा, “हम अपनी आज़ादी के और उसे सही से उपयोग करने के मायने तभी समझ सकते हैं जब हमसे वह आज़ादी छीन ली जाती है। तब हम उसकी इज्ज़त करना शुरू कर देते हैं। जीवन में सभी ग़लतियों की माफ़ी नहीं है इसलिए ग़लती बस उतनी ही बड़ी हो जिसकी माफ़ी मिल पाए।”

ये उसके शब्द अपने साथ सीख के तौर पर मैं बांधकर ले तो आई थी मगर असल मायने इन दिनों समझ आ रहे हैं। शायद उसकी कही ये बातें सबसे अधिक सच्ची हैं और मुझे उम्मीद है इन दिनों से आगे निकलकर हम सभी प्रकृति की, अपनी आज़ादी की, दुआओं की और अधिक इज्ज़त करना सीख जाएंगे।

Exit mobile version