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लॉकडाउन: पशुपालकों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट

भारत में 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। लेख लिखे जाने तक देश भर में 7987 लोग कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं और 308 लोगों की इस संक्रमण से मौत हो गई है।

देश से लेकर विदेश भर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन खोजने में लगे हैं लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं। ऐसे में हमारे पास इस महामारी से बचने का एकमात्र उपाय सामाजिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग है।

लॉकडाउन का बुरा प्रभाव हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने के साथ ही व्यापार, व्यवसाय और असंगठित क्षेत्रों के कामगारों पर भी पड़ रहा है, उनका रोज़गार संकट में है।

पशुपालकों के सामने खुद का परिवार चलाने के साथ मवेशियों के लिए चारा प्रबंध की दोहरी ज़िम्मेदारी

ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की संख्या शहरों की अपेक्षा में भले ही कम हैं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना संकट की मार ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों पर दोहरी पड़ रही है।

पशुपालकों के सामने खुद का घर-परिवार चलाने के साथ ही मवेशियों के लिए चारा प्रबंध करना मुश्किल हो गया है। 21 दिनों का लॉकडाउन पशुपालकों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इंसानों के लिए राशन घर तक पहुंचाए जाने की व्यवस्था की गई है जो कि रिहायशी इलाकों तक ही सीमित हैं। जबकि पशुओं के आहार पहुंचाने की व्यवस्था पशुपालकों के घर तक नहीं की गई है। ऐसे में पशुपालकों के सामने पशुओं के लिए चारा, खरी, चुन्नी और चोकर का इतंज़ाम करना महंगा और मुश्किल पड़ रहा है।

26 मार्च 2020 को सरकार ने पशुआहार को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने की अनुमति तो दी है लेकिन अभी भी कई जगहों के पशुआहार विक्रेताओं के पास आहार नहीं पहुंचा है। जहां पहुंच भी रहे हैं वहां दोगुने दामों में बेचे जा रहे हैं। पशुआहार विक्रेता कालाबाज़ारी कर रहे हैं। पशुपालक चारा खरीदने को मजबूर हैं।

पशुगणना से मिले आकड़ों पर एक नज़र

2012 में 20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में 14.51 करोड़ गाय और 10.98 करोड़ भैंसें हैं जबकि बैलों की संख्या 18.25 करोड़ हैं। जिनमें दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है।

इन सभी पशुओं को उचित मात्रा में चारा प्रबंध करवाने की ज़रूरत है। अगर इतनी बड़ी संख्या में पशुओं को चारा उपलब्ध नहीं कराया गया तो पशु भूख से मर जाएंगे।

लॉकडाउन के कारण शहरों में पशुपालकों के दूध की खपत कम हो गई है। दूध की मांग नहीं होने से पशुपालक दूध फेंकने को मजबूर हैं। पशुपालक होटल, चाय बनाने वाली दुकानें, वैवाहिक कार्यक्रमों में और मिठाई बनाने वाली कंपनियों को दूध बेचते थे।

जहां दूध का उपयोग बड़ी मात्रा में होता रहा है, वहीं इन दिनों लॉकडाउन की वजह से सभी चाय की दुकानें, होटल और मिठाई कंपनियों पर ताला लटका हुआ है। इस कारण दूध की खपत नहीं हो पा रही है।

सरकार ने दूध बिक्री को ज़रूरी सेवा में शामिल किया है मगर इसके बावजूद गाँव के पशुपालकों को शहर में दूध पहुंचाने के लिए पुलिस से नोंकझोंक का सामना करना पड़ रहा है।

बहुत से ऐसे पशुपालक हैं जो सार्वजनिक वाहनों से शहर में दूध ले जाकर बेचते हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण शहर जा पाने में अक्षम हैं। आर्थिक संकट की वजह से निजी वाहन का प्रबंध भी नहीं कर पा रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों के आय का स्त्रोत

आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के पशुपालकों के आय का स्त्रोत शहरों में दूध बेचकर कमाई करना होता है। इन्हीं आमदनी की मदद से वे अपने घर-परिवार का खर्चा उठाते हैं। बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए खर्च करते हैं लेकिन लॉकडाउन की वजह से पशुपालकों का जीवन बेपटरी हो गया है। 

पशुपालकों के सामने संकट खड़ा हो गया है कि उन्हें उचित दर पर दूध के खरीदार नहीं मिल रहे है। ऐसे में वे मजबूर हैं दूध को कम दाम पर बेचने के लिए। उचित दाम पर दूध ना बिकने के कारण पशुपालक पशुओं के चारा, खरी, चुन्नी, चोकर का खर्च नहीं निकाल पा रहे हैं।

लॉकडाउन की वजह से ग्रामीण इलाकों में पशुपालक के गाय, भैंस चरने के लिए बाहर नहीं जा सकते हैं। इससे पशुओं के सामने भोजन का संकट आने के साथ ही पशुपालक पर आर्थिक संकट भी मंडरा रहा हैं।

सुदूर क्षेत्रों से दूध विक्रेताओं तक नहीं पहुंच रहा

गाँव के सुदूर क्षेत्रों से दूध विक्रेताओं तक पशुपालक नहीं पहुंच पा रहे हैं जिसकारण शहरों में बड़ी कंपनियों के पैकेट बंद दूध की मांग बढ़ गई है।

कई जगहों पर प्रशासन की सख्ती के बावजूद दूध विक्रेता तय राशी से ज़्यादा में बेच रहे हैं। ऐसे में छोटे पशुपालकों के लिए दूध बेच पाना मुश्किल होता जा रहा है।

पशुपालकों पर दोहरे संकट की मार पड़ रही

दुधारू गायों और भैसों को पर्याप्त चारा नहीं मिल पाने से दूध उत्पादन की क्षमता पर प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि पशुपालकों की आमदनी लॉकडाउन से पूर्व जैसी नहीं रही है। पशुपालकों पर दोहरे संकट की मार पड़ रही है।

एक तरफ घर-परिवार को पालने का संकट और दूसरी तरफ मवेशियों को चारा उपलब्ध कराने की चुनौती। पशुपालक बेज़ुबान जानवरों को चारा की व्यवस्था करने के लिए अपने घर-परिवार का पेट तो काट सकते हैं लेकिन अपने पशुओं को कैसे समझाएं कि इन दिनों देश में कोरोना का संकट छाया हुआ है और तुम्हारा मालिक आर्थिक संकट की मार झेल रहा है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले में बड़ी दूध मंडी है जहां ज़िले का दूध शटल ट्रेन से सुबह पहुंचता था। पशुपालकों के दूध की मांग थी जिससे वे अच्छा मुनाफा कमा लेते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से दूध मंडी में सन्नाटा पसरा हुआ है।

पशुपालकों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। अगर लॉकडाउन बढ़ता है तो पशुपालकों की परेशानी और बढ़ेगी।

ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि सरकार पशुपालकों की मुश्किलों पर तुरंत ध्यान दे। खासकर पशुओं के सस्ते चारे और पशु-आहार की व्यवस्था करे और दूध को मंडी में पहुंचवाने और उसका उचित दाम दिलवाने का इंतजाम करे। इसके बिना ज़्यादातर पशुपालकों के लिए दोहरी मार झेल पाना मुश्किल होगा।


संदर्भ- गाँव कनेक्शन

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