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“नौकरी चली गई, पैसे भी नहीं हैं फिर भी रो नहीं सकता, क्योंकि पुरुषों का रोना वर्जित है”

फोटो सभार- pexels

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पिछले कुछ रातों से मेरा जागरण हो रहा है, क्योंकि आंखो से नींद गायब ही हो चुकी है। कई सारे विचार मन को कचोटते रहते हैं। कभी-कभी अचानक गुस्सा आता है। मन चिड़चिड़ा सा हो गया है, चिल्लाने का मन करता है ज़ोर से।

मगर क्या करूं लड़का हूं ना! अपनी भावनाओं को खुलकर ज़ाहिर नहीं कर सकता हूं। मैं जो देख रहा हूं, जो महसूस कर रहा हूं उसे लिखने का प्रयास कर रहा हूं।

मेरे लेख से अगर किसी के मन को ठेस पहुंचे तो पहले ही माफी चाहता हूं। समझ नहीं आता कि कहां से शुरू करूं लिखना, क्योंकि अगर शुरू से शुरू करूं तो मेरी खूबसूरत रात निकल जाएगी जो मुझे सुकून देती है।

शायद जन्म के वक्त ही मैं खुलकर रोया था

तो आइए शुरु करता हूं। हमारे समाज में एक स्टीरियोटाइप चला आ रहा है कि आप लड़के हो इसलिए आपको हर समय समझदारी का प्रमाण देना है। जब एक लड़के का जन्म होता है तब शायद वो पहली बार अपने मन से खुलकर रोता है।

फिर उसे यह मौका हमारा सभ्य समाज कभी नहीं देता, क्योंकि अब वो लड़का चलना सीख रहा है और बेचारा चलने की कोशिश में गिर गया है और रोना चाहता है मगर उसे समझाया जा रहा है कि आप लड़के हो और लड़के रोते नहीं हैं।

दरअसल यह कहानी मेरी ही है। गिरते-लड़खड़ाते थोड़ा बड़ा हो गया था और स्कूल भी जाने लगा था। सर पर पढ़ाई के बोझ के बीच एक रोज़  मास्टर जी ने किसी बात पर मुझे कूट दिया मगर मैं उस वक्त रो भी नहीं पाया, क्योंकि कक्षा में लड़कियां भी थीं। इसलिए दांत दबाकर मास्टर साहब की मार सह लिया।

घर पर भी रोने की इजाज़त नहीं है!

शाम को घर पर भी डांट मिली और पापा से कुटाई भी हो गई। अब मैं रोने लगा क्योंकि यहां सब मेरे अपने थे। तभी दादी आती है और बोलती है कि मत रोओ बेटा। लड़के हो ना मज़बूत बनो लड़कों को रोना शोभा नहीं देता है।

अब मैं धीरे-धीरे अपनी भावनाओं को मारने लगा। अब मेरे चेहरे को पढ़ पाना मुश्किल हो गया है। अब मैं किशोरावस्था के चरम पर था और उसी बीच एक घटना घटती है। मेरे सर से पिता का साया उठ जाता है मगर मैं फिर बी रोया नहीं, क्योंकि लड़के रोया नहीं करते।

अंदर ही अंदर घुटता रहा पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करने लगा, क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी मगर रोया नहीं! अब मुझे सब कुछ एक साथ झेलना था। काम का दबाव, परिवार चलाने का दबाव. बढ़ती मंहगाई और अपनी पढ़ाई।

मेरी गर्लफ्रेंड ने भी कह दिया कि रोते हुए लड़के अच्छे नहीं लगते

इस बीच मेरे जीवन में एक लड़की आती है और तब से मैं खुश रहने लगता हूं। अब मुझे ज़िन्दगी की तमाम परेशानियां अच्छी लगने लगती हैं।अब मुझे दूसरों के ऊटपटांग सवाल परेशान नहीं करते, बल्कि अब मैं ऐसे सवालों पर हंसते हुए जवाब देता हूं।

मैं उस लड़की से अपने मन की सारी बातें शेयर करने लगता हूं जिससे मुझे काफी सुकून मिलती है मगर एक चीज़ जो मुझे इस रिश्ते में परेशान करती थी वो यह कि मुझे इस हद तक समझने वाली लड़की भी मुझे कहती थी कि मैं लड़का हूं इसलिए मुझे रोना नहीं चाहिए।

अब तो बेरोज़गार हो गया हूं

अब वक्त बदलता है और मेरा काम सरकार की नई और मज़बूत आर्थिक नीति के आगे नतमस्तक हो जाता है। अब मैं बेरोज़गार हो जाता हूं। अब मेरा परिवार मुझे अपना नहीं लगता! मैं परेशान हो जाता हूं और अपने मन में चल रही बातों को बोलना चाहता हूं मगर अब किसी के पास समय नहीं है कि मेरी बातों को कोई सुने।

उस लड़की के पास भी समय नहीं है। वह भी मुझे ही समझाती है कि अब मैं चिड़चिड़ा हो गया हूं मगर कोई मुझे समझने की कोशिश भी नहीं करता है। परिवार वालों के लिए मैं एक बोझ सा हो गया हूं, क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं हैं।

कोई ठीक से मुझसे बात तक नहीं करता है मगर मैं रो नहीं सकता हूं, क्योंकि जबसे होश संभाला है यही सुनने को मिला कि लड़के को रोना नहीं चाहिए।

मैं घुट घुटकर जी रहा हूं। रात को अकेले में रोता हूं ताकि कोई देख ना ले और मुझ पर संदेह ना करे, क्योंकि समाज के मुताबिक लड़के तो रो नहीं सकते हैं ना!

जब मेरे पिता का देहान्त हुआ था तो भी मैं नहीं रोया था, क्योंकि मुझे बोला गया, “तू रोएगा तो घर को कौन संभालेगा।” आज मुझे संभालने वाला कोई नहीं है। खुलकर रोना चाहता हूं किसी के कंधे पर सर रखकर अपनी सारी बातें बताना चाहता हूं मगर ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि लड़का हूं ना और लड़के रोते नहीं हैं!

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